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हर एक मिनट में साइबर ठगी के चार मामले! कैसे रुकेंगे साइबर क्राइम?

देश में पिछले साल 19 लाख से ज्यादा साइबर अपराध शिकायतें दर्ज की गईं, जो पांच साल पहले के मुकाबले 10 गुना ज्यादा थीं

साइबर फ्रॉड से जुड़ा सांकेतिक तस्वीर.
साइबर फ्रॉड से जुड़ा सांकेतिक तस्वीर.
अपडेटेड 30 जून , 2025

फरवरी 2025 में झारखंड की जामताड़ा पुलिस ने एक ऐसे गिरोह के खिलाफ कार्रवाई की, जो ‘एंड्रॉयड पैकेज किट’ (APK) नाम के एंड्रॉयड एप्लीकेशन की तस्करी करता था. दरअसल, इस एंड्रॉयड एप्लीकेशन का इस्तेमाल आमलोगों को धोखा देने के लिए किया जाता था. 

इस गिरोह के मुखिया 25 वर्षीय महबूब आलम था, जो कक्षा 10 की पढ़ाई बीच में छोड़कर कोडिंग सीखने लगा. महबूब आलम ने कोडिंग सिखने के लिए AI का इस्तेमाल किया. इसके बाद बिना किसी की मदद लिए आलम ने 'पीएम किसान योजना.apk' और 'पीएम फसल बीमा योजना.apk' जैसे एंड्रॉयड एप्लीकेशन बनाए.

इन एप्लिकेशन के जरिए साइबर क्रिमिनल किसानों के बैंक खातों से जुड़े अहम डिटेल और व्यक्तिगत डेटा को चुराने में सफल हो गए. इन डेटा के जरिए वो साइबर फ्रॉड की घटना को अंजाम देने लगे.

पुलिस ने जांच में ऐसे सौ से अधिक APK बरामद किए. इन एप्लिकेशन ने कुल मिलाकर लगभग 2,70,000 संदेशों को इंटरसेप्ट किया था और साथ ही 2,800 से अधिक पीड़ितों से करीब 11 करोड़ रुपये की ठगी की थी.

महबूब आलम और उनके साथियों ने पिछले वर्ष 25,000-30,000 रुपये में एक-एक ऐप्लिकेशन बेचा है. उन्होंने करीब 1 हजार से ज्यादा ऐप बेचे, जिससे धोखाधड़ी के एक फलते-फूलते काले बाजार को बढ़ावा मिला.

जामताड़ा की इस चौंकाने वाली घटना से दो बातें साफ होती हैं- पहला, आसानी से उपलब्ध AI तकनीक एक स्कूल ड्रॉपआउट को भी धोखाधड़ी में तकनीकी तौर पर विशेषज्ञ बना सकती है; दूसरा, भारत में स्मार्टफोन यूजर्स की तेजी से बढ़ती संख्या के कारण लाखों लोग इस तरह के शोषण का आसान शिकार बन रहे हैं.

हालांकि, जामताड़ा का मामला अकेला नहीं है. भारत की डिजिटल प्रगति 2025 के अंत तक 90 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं तक पहुंचने वाली है. इसकी वजह से एक ओर जहां समृद्धि और सुविधा आई है. वहीं, दूसरी तरफ साइबर अपराधों में भी तेजी आई है.

ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर रिस्ट्रक्चरिंग एनवायरनमेंट एंड मैनेजमेंट (GIREM) की 2025 की रिपोर्ट, "द राइज ऑफ एआई-पावर्ड साइबरक्राइम" के मुताबिक, 2024 में भारत में 19.2 लाख साइबर अपराध की शिकायतें दर्ज की गईं, जो 2023 के 15.6 लाख से ज्यादा हैं. यह आंकड़ा पांच साल पहले की तुलना में लगभग 10 गुना ज्यादा हैं.

2024 में साइबर अपराधों के कारण 22,812 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ, जो 2023 में 7,496 करोड़ रुपये से लगभग तीन गुना और 2022 में 2,306 करोड़ रुपये से करीब 10 गुना अधिक है.

पिछले चार वर्षों में, अपराधियों ने देशभर के आमलोगों और ऑनलाइन बिजनेस से कुल 33,165 करोड़ रुपये की ठगी की है. यह रिपोर्ट 25 जून को बेंगलुरु में कर्नाटक पुलिस के महानिदेशक और महानिरीक्षक डॉ. एम.ए. सलीम, टेकियन के संस्थापक और सीईओ जय विजयन, और जीआईआरईएम (शोध भागीदार) के अध्यक्ष श्याम सुंदर एस. पाणि द्वारा जारी की गई थी.

भारत में तेजी से बढ़ रहे मोबाइल यूजर्स की संख्या और डिजिटल विस्तार ही इस तरह के अपराध की वजह नहीं है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक बनावट भी इस तरह के अपराध की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है.

शहरों से लेकर दूरदराज के गांवों तक लाखों लोग बिना किसी डिजिटल सावधानी या डिजिटल क्राइम से बचने की बुनियादी जानकारी प्राप्त किए ही मोबाइल बैंकिंग, ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया इस्तेमाल कर रहे हैं. इस उत्साह और जागरूकता के बीच गहरी खाई होने के कारण ठगों को यहां उर्वर जमीन मिल गई है.

बेंगलुरु के चमचमाते कांच के टावरों से लेकर जामताड़ा की शांत सड़कों तक, हर जगह घोटाले पनप रहे हैं. भारत के सिलिकॉन वैली, बेंगलुरु में 2023 में 17,623 साइबर धोखाधड़ी के मामले दर्ज हुए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 77 फीसद ज्यादा है.

कर्नाटक के कृषि-प्रधान जिलों में ग्रामीण शिकायतें 2022 में 880 से बढ़कर 2024 में लगभग 1,600 हो गईं. भारत का कोई भी कोना इनसे बचा नहीं है.

फोन के इनबॉक्स से लेकर मेल तक पर अक्सर फिशिंग मैसेज आते हैं. बैंक, टेलीकॉम प्रदाता या सरकारी संस्थानों के नाम से आने वाले इन ईमेल, SMS और व्हाट्सएप संदेश, पर क्लिक करते ही यूजर्स आसानी से ऑनलाइन फ्रॉड का शिकार हो सकते हैं. आपके फोन के इनबॉक्स और मेल पर आने वाले एक सिंगल लिंक से आपके जीवन भर की बचत को खाली हो सकता है.

एक कथित बैंक अधिकारी का फोन कॉल एक पेंशनर को ओटीपी बताने के लिए मना सकता है. इतना ही नहीं मालवेयर और स्पायवेयर अब आसानी से किसी एप्लिकेशन के जरिए फोन या लैपटॉप में आ सकते हैं. ये मालवेयर और स्पायवेयर तकनीकी तौर पर इतने खतरनाक होते हैं कि यह आपकी निजी जानकारी किसी साइबर ठग तक पहुंचा सकती है.

तमिलनाडु में एक विश्वविद्यालय के छात्र ने अपनी पढ़ाई के लिए पायरेटेड सॉफ्टवेयर डाउनलोड किया. इसके जरिए उसके मोबाइल में मालवेयर और स्पायवेयर आ गया, जिसने उसके निजी फाइलों और ईमेल को चुरा लिया.

इसके बाद साइबर क्रिमिनल ने उस छात्र को उसकी अंतरंग तस्वीरें फैलाने की धमकी दी और उन्हें गुप्त रखने के लिए 15,000 रुपये की मांग की. यह साइबर फ्रॉड की एकलौती घटना नहीं है. रोजाना इस तरह की कई घटना देशभर में होती रहती है.

इन सबके अलावा अब AI के जरिए होने वाली फिशिंग की घटना भी नई चुनौती पेश कर रही है. 2024 में दुनियाभर में अनुमानित 82.6 फीसद फिशिंग को AI के जरिए अंजाम दिया गया है.

AI का इस्तेमाल करके असाधारण प्रामाणिकता वाले ईमेल भेजने के साथ ही विश्वसनीय ब्रांडों की नकल करने वाले इंटरैक्टिव डैशबोर्ड और रिश्तेदारों या अधिकारियों की नकल करने वाले डीपफेक वीडियो के जरिए इस तरह के फ्रॉड को अंजाम दिया गया.

AI इस तरह के फ्रॉड को तेजी से बढ़ाने का एक जरिया बन गया है. कभी टेक्निकल स्कील वाले लोग इस तरह की फ्रॉड करते थे. अब AI की मदद से कोई भी इस तरह की घटना को अंजाम दे सकता है.  

नवंबर 2024 में बेंगलुरु के दो लोग एक ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग धोखाधड़ी के शिकार हुए. इस घटना में दो बड़े बिजनेस हस्तियों के डीपफेक वीडियो का इस्तेमाल कर उनसे 87 लाख रुपये ठग लिया गया.

ताकतवर लोगों के डीपफेक वीडियो का इस्तेमाल साइबर अपराधियों की नई रणनीति बन गई है, जिससे वे भोले-भाले लोगों को ठगते हैं. अधिकारियों ने सलाह दी है कि सोशल मीडिया पर निवेश योजनाओं को बढ़ावा देने वाले वीडियो पर सावधानी से जांच परख कर ही भरोसा करें.

एक तरफ जहां बुजुर्ग लोग फर्जी टैक्स नोटिस से परेशान हैं. वहीं, दूसरी ओर युवा नौकरी तलाशने वाले फर्जी भर्ती पोर्टल्स के शिकार बनते हैं. ये वेबसाइट ऐसी नौकरियों के लिए "रजिस्ट्रेशन फीस" मांगते हैं, जो वास्तव में है ही नहीं.

छोटे व्यवसायी मालवेयर के जरिए ऑनलाइन ठगों के शिकार बनकर फर्जी "सप्लायर" को भुगतान कर देते हैं. इस तरह की घटनाओं के शिकार होने वाले ज्यादातर लोग शर्म और डर के कारण चुप रहते हैं.

साइबर ठगी से कैसे बचा जा सकता है?

डिजिटल साक्षरता के जरिए इस तरह ठगों के शिकार होने से लोगों को बचाया जा सकता है. स्कूलों और कॉलेजों में इसके लिए छात्रों के बीच जागरूकता फैलाई जा सकती है. सामुदायिक कार्यशालाओं के जरिए साइबर सुरक्षा से जुड़ी जानकारी लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. महिलाओं, बच्चों व बुजुर्गों को इस तरह के फ्रॉड से लड़ने के लिए तैयार करना जरूरी है. क्षेत्रीय भाषाओं में इसके खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जा सकता है.  

साइबर अपराध को लेकर भारत की कानून-प्रणाली को भी बदलना होगा. साइबर अपराध सेल बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें त्वरित डेटा, कुशल फोरेंसिक विशेषज्ञ की जरूरत है, ताकी ऐसे मामले तुरंत लोकल लेवल पर भी निपटाए जा सकें. ई-गवर्नेंस की तर्ज पर तेज डिजिटल FIR सिस्टम पीड़ितों को जल्दी राहत दे सकता है.

डेटा सुरक्षा के लिए सख्त कानून, सुरक्षित ऐप फ्रेमवर्क बेहद जरूरी है. बैंकों, टेलीकॉम कंपनियों और प्लेटफॉर्म्स को अपनी सुरक्षा मजबूत करने और उपयोगकर्ताओं को शिक्षित करने की जिम्मेदारी लेनी होगी.

तकनीक को ही रक्षा के लिए हथियार बनाना होगा. भारत में AI आधारित सुरक्षा उपकरण, जैसे अनोमली डिटेक्शन बॉट्स, रियल-टाइम स्कैम अलर्ट और फ्रॉड पैटर्न पहचानने वाले एल्गोरिदम बनाने की क्षमता है.

बिहार पुलिस ने जियो-ट्रैकिंग ऐप्स का इस्तेमाल कर अपराधों को रोकने की कोशिश की है और शिकायतों में कमी देखी है. इस नवाचार को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाना होगा, लेकिन इसके लिए फंडिंग, विशेषज्ञता और राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए.

आज के समय में स्मार्टफोन आपकी पहचान है. बैंकिंग जानकारी से लेकर पर्सनल और प्राइवेट फोटोज, स्वास्थ्य रिकॉर्ड सबकुछ इसी पर सेव है. ऐसे में साइबर ठगों को लेकर हर किसी को अलर्ट रहने की जरूरत है. जासूसी सॉफ्टवेयर सिर्फ डेटा नहीं चुराता, यह आपकी हर दिन की जिंदगी पर भी नजर रखता है.

भारत का डिजिटल विकास देश के लिए एक शानदार अध्याय है. साथ ही हमें यह भी समझना होगा कि जितनी तेजी से डिजिटल विकास हो रहा है, उतनी ही तेजी से हमें सुरक्षा भी बढ़ाने की जरूरत है.

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