भारत-चीन के बिगड़े रिश्तों को पटरी पर लाने की कोशिशें जारी रहने के बीच चीन सरकार तिब्बत में एक रेलवे लाइन बिछाने की योजना पर काम कर रही है, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारतीय सीमाओं के करीब से गुजरेगी.
फिलहाल दोनों देश परस्पर सीधी उड़ानें और चुनिंदा बॉर्डर पोस्ट के जरिये व्यापार फिर शुरू करने की प्रक्रिया में हैं. इसे 2020 की गर्मियों के बाद रिश्तों में सुधार की दिशा में बड़ी प्रगति माना जा रहा है. 2020 में चीनी सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ की थी और गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के जवानों के बीच खूनी झड़प के कारण रिश्तों में खटास बहुत ज्यादा बढ़ गई थी.
रेलवे लाइन बनाने की योजना ऐसे समय सामने आई है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी महीने के अंत में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए चीन के तियानजिन का दौरा करने वाले हैं. 2019 के बाद ये मोदी की पहली चीन यात्रा होगी.
चीन ने मोदी की यात्रा का स्वागत किया है और SCO शिखर सम्मेलन को “एकजुटता, मित्रता और सार्थक परिणामों का संगम” बताया है. मोदी की प्रस्तावित तियानजिन यात्रा से पूर्व पिछले कुछ समय में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर चीन में SCO से जुड़ी विभिन्न बैठकों में हिस्सा ले चुके हैं.
करीब पांच वर्षों के अंतराल के बाद 2025 में तिब्बत में कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू होने को भी भारत-चीन संबंधों में सुधार का एक प्रमुख संकेत माना जा रहा है.
चीन ने शिनजियांग-तिब्बत रेलवे परियोजना की तैयारी शुरू कर दी है, जो 2035 तक शिनजियांग (पूर्वी तुर्किस्तान) के होटन को तिब्बत के ल्हासा से जोड़ेगी. ये रेल लाइन करीब 2,000 किलोमीटर लंबी होगी और मौजूदा ल्हासा-शिगात्से रेल लाइन से जुड़ेगी, जिससे ल्हासा के आसपास लगभग 5,000 किलोमीटर का एक रणनीतिक पठारी रेल नेटवर्क तैयार होगा.
नई रेलवे परियोजना को चीन की ‘सीमा के करीब बुनियादी ढांचा बढ़ाने की रणनीति’ के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जो लद्दाख और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास भारत की सीमाओं के बेहद करीब से गुजरेगी. यही नहीं, ये अक्साई चिन जैसे विवादित क्षेत्रों से होकर भी गुजरेगी, जिससे चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के लिए ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में सैनिक, सैन्य उपकरण और रसद तेजी से पहुंचा पाना आसान हो जाएगा.
चीन मामलों के जानकारों का दावा है कि वैसे तो इसे एक विकास परियोजना के तौर पर सामने रखा जा रहा है लेकिन शिनजियांग-तिब्बत रेलवे लाइन योजना विवादित क्षेत्रों में सैन्य नियंत्रण मजबूत करने और क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने का एक सुनियोजित प्रयास है. संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों में महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर स्थापित करके चीन एक तरह से क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है और भारत की संप्रभुता को चुनौती दे रहा है.
रेलवे परियोजना की दोहरे उपयोग की प्रकृति और ग्रे-जोन रणनीति, कनेक्टिविटी के नाम पर धौंसपट्टी की एक व्यापक रणनीति को दर्शाती है. जानकारों की राय है कि भारत को सतर्कता बरतनी चाहिए और रक्षा लिहाज से अपने बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी लाने के साथ ही चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं से प्रभावी ढंग से निपटना चाहिए. अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को ध्यान में रखकर भारत को अंतरराष्ट्रीय साझेदारी को मजबूत करने पर भी ध्यान देना चाहिए.
परियोजना का प्रबंधन संभाल रही शिनजियांग-तिब्बत रेलवे कंपनी का पूर्ण स्वामित्व चाइना स्टेट रेलवे ग्रुप के पास है, जिसकी प्रारंभिक पंजीकृत पूंजी 95 अरब युआन (करीब 13.2 अरब डॉलर) है. ये रेल लाइन चीन के पश्चिमी क्षेत्रों से जोड़ने के लिए बनाई गई चार रेल योजनाओं में एक है. किंघई-तिब्बत रेलवे 2006 से चालू है, जबकि अन्य अभी निर्माणाधीन हैं. इनकी कुल लागत 300 अरब युआन के प्रारंभिक अनुमान से कहीं अधिक रहने का अनुमान है.
प्रस्तावित रेलवे लाइन तिब्बती पठार के कुछ सबसे ऊंचे और दुर्गम भूभागों से गुजरेगी, जिनमें कुनलुन, काराकोरम, कैलाश और हिमालय की पर्वतमालाएं शामिल हैं. इसे ग्लेशियर, बर्फीली नदियों, पर्माफ्रॉस्ट यानी अत्यंत कम तापमान (शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे तक) और अत्यंत कम ऑक्सीजन स्तर (सामान्य से लगभग 44 फीसद कम) जैसी गंभीर इंजीनियरिंग चुनौतियों से भी निपटना होगा. रेलवे लाइन के निर्माण के लिए उन्नत तकनीक, भारी-भरकम निवेश और मजबूत पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों की जरूरत होगी.
चीन ने तिब्बत में पांच रेललाइनें बिछाने की योजना बनाई है: शिनजियांग-तिब्बत रेलवे, किंघई-तिब्बत रेलवे, गांसु-तिब्बत रेलवे, सिचुआन-तिब्बत रेलवे और युन्नान-तिब्बत रेलवे. किंघई-तिब्बत लाइन यातायात के लिए खोली जा चुकी है, जबकि सिचुआन-तिब्बत रेलवे का निर्माण 2020 से जारी है.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली स्थित चीन एवं दक्षिण पूर्व एशियाई अध्ययन केंद्र की सीनियर असिस्टेंट प्रोफेसर गीता कोचर कहती हैं, “चीन इस पूरे नेटवर्क का इस्तेमाल दो उद्देश्यों के लिए करना चाहता है: एक अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना को बढ़ावा देने और दूसरे माल निर्यात और रणनीतिक सैन्य सहयोग के लिए पड़ोसी देशों के साथ सीमा पार संपर्क बनाना. बतौर उदाहरण, चीन ने नेपाल तक अपने रेलवे नेटवर्क के विस्तार की योजना बनाई है.
वैसे तो इसे तिब्बत के आर्थिक विकास का हिस्सा बताया जा रहा लेकिन जानकारों का मानना है कि इस रेलवे लाइन का सैन्य उद्देश्य स्पष्ट है और चीन तेज सैन्य तैनाती और सीमावर्ती क्षेत्रों पर मजबूत नियंत्रण की अपनी क्षमता को बढ़ाना चाहता है. इस तरह का बुनियादी ढांचा चीन की सैन्य क्षमताओं को काफी मज़बूत करने वाला है. और, संभावित संघर्षों या गतिरोधों के दौरान उसे भारत पर महत्वपूर्ण बढ़त की स्थिति में लाने वाला है.
चीन ‘सीमा रक्षा गांव’ की रणनीति भी अपनाता है, जिसमें आम लोग सीमावर्ती क्षेत्रों में निरंतर उपस्थिति बनाए रखने में मदद करते हैं, और किसी आक्रामक संघर्ष के बिना धीरे-धीरे ‘सलामी स्लाइसिंग’ के जरिये क्षेत्रीय नियंत्रण बढ़ाते जाते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक जमीनी स्तर पर स्थितियों में लगातार बदलाव तनाव बढ़ाता है और भारत की सीमा सुरक्षा के लिए खतरा साबित हो सकता है.
हरियाणा के सोनीपत स्थित ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में चीन अध्ययन की प्रोफेसर डॉ. श्रीपर्णा पाठक की राय है कि चीन के ये कदम उठाने का समय महत्वपूर्ण संकेत है. डॉ. पाठक ने कहा, “चीन भारत के लिए सबसे बड़ा सुरक्षा खतरा था, है और हमेशा रहेगा. ये भारत के पास बनाए जा रहे बांधों, इस रेलवे लाइन और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की मदद करने के तरीक़ों से भी स्पष्ट तौर पर जाहिर है. ये बात अलग है कि वो अमेरिका के खिलाफ भारत का साथ देने का दावा भी कर रहा है.”
क्या है भारत की तैयारी
हालांकि, भारत भी सीमा पर अपना बुनियादी ढांचा मजबूत करने में जुटा है. रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीएसडीबीओ) मार्ग को टैंकों और लंबी दूरी की मिसाइल वाहकों की आवाजाही के लिहाज से मजबूत किया जा रहा है, गलवान घाटी के लिए एकमात्र जमीनी संपर्क है. इस खुले रास्ते पर निर्भरता घटाने के लिए चीनी गश्ती दल की नजरों से परे 130 किलोमीटर लंबे एक वैकल्पिक मार्ग का निर्माण कार्य भी जारी है.
भारत कुछ और नए उपायों के तौर पर बड़े कार्यबलों की तैनाती, निर्माण में तेजी लाने के लिए मजदूरी बढ़ाने और निगरानी एवं रसद नेटवर्क को उन्नत करने में भी जुटा है. इन सभी कदमों का उद्देश्य संकट की स्थिति में त्वरित सैन्य तैनाती सुनिश्चित करना तथा वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर भारत को मजबूत स्थिति में लाना है.