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क्या सीमा विवाद सुलझाने भारत आए हैं चीनी विदेश मंत्री; क्यों खास है उनका यह दौरा?

चीनी विदेश मंत्री वांग यी तीन साल के बाद दो दिवसीय यात्रा पर भारत आए हैं

अजीत डोभाल से मुलाकात करते वांग यी
अजीत डोभाल से मुलाकात करते वांग यी
अपडेटेड 19 अगस्त , 2025

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत पर 25 फीसद टैरिफ के ऊपर इतना ही टैरिफ और लगाने की घोषणा के बाद दोनों देशों में तनाव देखने को मिल रहा है. इस सबके बीच चीनी विदेश मंत्री वांग यी तीन साल बाद दो दिवसीय यात्रा पर भारत आए हैं. 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद वांग की यह पहली भारत यात्रा है.

ऐसे में माना जा रहा है कि गलवान के बाद भारत और चीन के रिश्ते में जो तल्खी देखने को मिल रही थी, उसमें अब सुधार हो सकता है. 18 अगस्त को दिल्ली पहुंचने के बाद वांग ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की. इस दौरान भारत और चीन के रिश्ते बेहतर बनाने को लेकर दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई.

19 अगस्त यानी मंगलवार को चीनी विदेश मंत्री भारत के प्रधानमंत्री समेत कई विशेष प्रतिनिधियों से मुलाकात करेंगे. वांग यी और पीएम मोदी के साथ मुलाकात के वक्त वहां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी मौजूद रह सकते हैं. प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात से पहले चीनी विदेश मंत्री विशेष प्रतिनिधि वार्ता करेंगे.

यह बैठक ऐसे समय में हो रही है, जब भारत और चीन के सीमा विवाद और तनाव में कमी आई है. रूस के कजान में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बाद से ही दोनों देशों के रिश्ते बेहतर हो रहे हैं. शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक ने गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक निर्णायक मोड़ दिया.

वांग के साथ अपनी बैठक के दौरान, जयशंकर ने कहा कि भारत-चीन संबंधों में सुधार के लिए सीमा पर शांति आवश्यक है. उन्होंने अपने चीनी समकक्ष से यह भी कहा कि दोनों देश कठिन दौर से गुजरे हैं और उन्हें साफ और एक-दूसरे को सहयोग करने के नजरिए के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.

पूर्वी लद्दाख में 2020 से चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए भारत और चीन ने कजान ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले एक बड़ा फैसला लिया. डेमचोक और देपसांग में सैनिकों की वापसी पूरी हो गई है और पैंगोंग, गलवान, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स जैसे चार प्रमुख विवादित जगहों से भी सेनाएं पीछे हट गई हैं. हालांकि, इन इलाकों में गश्त में अभी भी कोई प्रगति नहीं हुई है.

पिछले साल 21 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक के बाद यह तय हुआ था कि विवाद सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधि स्तर पर बातचीत होगी. पहली बैठक पिछले साल दिसंबर में बीजिंग में हुई थी, जिसमें भारत का नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने किया था. अब दूसरी बैठक दिल्ली में होगी.

सीमा विवाद सुलझाने में तीन बड़े चेहरों की अहम भूमिका रही. पीएम मोदी ने भारतीय सेना को ज़मीनी स्तर पर तुरंत फैसले लेने की पूरी आजादी दी. साथ ही, चीन पर आर्थिक दबाव भी बनाया. दूसरी ओर, जयशंकर ने लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाया और समाधान के लिए कूटनीतिक रास्ता अपनाया. वहीं, डोभाल ने वांग से सीधी बातचीत करके वार्ता को विशेष प्रतिनिधि स्तर तक पहुंचाया है.

चीन के साथ जारी सीमा विवाद के दौरान भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में अपनी मजबूत स्थिति दिखाई. दक्षिण पैंगोंग की चोटियों पर कब्जा करके और तेजी से भारी हथियारों की तैनाती करके, उसने चीन को संदेश दिया कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं रहा. सेना की रणनीति ने चीन को बातचीत की मेज पर आने पर मजबूर कर दिया.

कजान शिखर सम्मेलन के बाद से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थिति शांत है और दोनों देशों की सेनाएं अपने-अपने क्षेत्रों में गश्त कर रही हैं. अब, दिल्ली में होने वाली विशेष प्रतिनिधि बैठक से उम्मीद है कि भारत और चीन पूर्वी लद्दाख विवाद का स्थायी समाधान निकालने की दिशा में आगे बढ़ेंगे.

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