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अरुणाचल पर बार-बार क्यों दावा कर रहा चीन, इस स्ट्रैटजी से कैसे हड़पता है दूसरे देशों की जमीन?

अरुणाचल प्रदेश की एक भारतीय महिला को शंघाई हवाई अड्डे पर हिरासत में लेने के बाद चीनी अधिकारियों ने दावा किया कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है

भारत-चीन सीमा की तस्वीर (फाइल फोटो)
भारत-चीन सीमा की तस्वीर (फाइल फोटो)
अपडेटेड 26 नवंबर , 2025

"जंगनान (अरुणाचल प्रदेश) चीन का हिस्सा है और भारत उस पर अवैध रूप से काबिज है." 25 नवंबर को चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने ये बात कही है.

इससे पहले 4 अप्रैल 2023 को भी माओ निंग ने अरुणाचल प्रदेश को लेकर यही दावा किया था. तब चीन ने भारतीय हिस्से के 11 जगहों के नाम बदलने की एक लिस्ट जारी की थी.

भारत ने हर मौके पर चीन के इन दावों को सिरे से खारिज किया है. इस बार भी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है." लेकिन, चीन बार-बार अरुणाचल पर दावा क्यों कर रहा है और क्या इसके पीछे उसकी सोची-समझी स्ट्रेटजी है?

अरुणाचल प्रदेश की कितनी जमीन पर चीन दावा करता है?

चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किलोमीटर के इलाके को अपनी जमीन बताता है. चीन अपनी भाषा में इस क्षेत्र को जंगनान कहता है और इसे साउथ तिब्बत बताता है. अरुणाचल प्रदेश में जगहों को चीनी नाम देना, उसके एक सोची-समझी स्ट्रेटजी का हिस्सा है.

चीन ने भारतीय महिला को हिरासत में लेकर पहली बार इस तरह के विवाद को तूल नहीं दिया है, बल्कि वह और भी कई पैतरे आजमाता रहा है. चीन अपने दावे को मजबूती देने के इरादे से अरुणाचल प्रदेश में भारत के वरिष्ठ नेताओं और अधिकारियों के दौरे के समय भी अपनी आपत्ति प्रकट करता रहता है.

चीन ने अक्टूबर 2021 में उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू के दौरे पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि भारत ऐसा कोई काम न करे जिससे सीमा विवाद का विस्तार हो. चीन की इस आपत्ति पर भारत ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश में भारतीय नेताओं के दौरे पर आपत्ति का कोई तर्क नहीं है.

अरुणाचल प्रदेश पर बार-बार दावा किए जाने के पीछे चीन के क्या तर्क हैं?

इस बात को समझने से पहले भारत और चीन सीमा की पेचीदगी को समझना जरूरी है. दरअसल, भारत और चीन करीब 3500 किलोमीटर लंबी सीमा शेयर करते हैं. इसे LAC कहते हैं. ये सीमा 3 सेक्टरों में बंटी है. पूर्वी सेक्टर, मध्य सेक्टर और पश्चिमी सेक्टर.

अरुणाचल प्रदेश से लगते हुए चीनी सीमा पूर्वी सेक्टर कहलाता है. इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश से डोकलाम तक चीनी और भारतीय सीमा मध्य सेक्टर कहलाता है. वहीं, अक्साई चीन से लद्दाख होते हुए हिमाचल प्रदेश तक की सीमा पश्चिमी सेक्टर कहलाती है.

भारत और तिब्बत की सीमा को मैकमोहन लाइन कहते हैं. यह लाइन यह भारत को पूर्वी सेक्टर में तिब्बत से अलग करती है. भारत और चीन के बीच विवाद भी इसी मैकमोहन लाइन को लेकर है.

साल 1914 से पहले तक तिब्बत और भारत के बीच कोई तय सीमा रेखा नहीं थी. इस दौरान दोनों देशों पर अंग्रेजों का राज था. उस वक्त की भारत सरकार, चीन और तिब्बत की सरकारों के बीच शिमला में समझौता हुआ. भारत में मैकमोहन लाइन दर्शाता हुआ मैप पहली बार साल 1938 में ही आधिकारिक तौर पर प्रकाशित किया गया. शिमला समझौते में चीन का प्रतिनिधित्व रिपब्लिक ऑफ चीन के अधिकारी ने किया था. दरअसल, 1912 में किंग राजवंश को उखाड़ फेंकने के बाद रिपब्लिक ऑफ चीन बना था.

यह कम्युनिस्ट सरकार साल 1949 तक ही सत्ता में रह पाई. इसके बाद चीन में नई सरकार आती है और देश का नाम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन हो गया. पहली बार भारत और चीन के बीच रिश्ते तब खराब हुए जब 1951 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया. चीन का कहना था कि वो तिब्बत को आजादी दिला रहा है, इसी दौरान भारत ने तिब्बत को अलग राष्ट्र के रूप में मान्यता दी.

चीन शिमला समझौते को ये कहकर खारिज करता रहा कि तिब्बत पर चीन का अधिकार है और तिब्बत की सरकार के किसी प्रतिनिधि के हस्ताक्षर वाले समझौते को वो स्वीकार नहीं करेगा. यहीं से दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हुआ. अब चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा बताकर, उसपर अपना दावा करता है. चीन के पास कोई कागजी आधार अरुणाचल प्रदेश को अपना बताने के लिए नहीं है. ऐसे में वह तवांग मठ और ल्हासा मठ के बीच ऐतिहासिक संबंधों का जिक्र कर उसे अपनी जमीन बताने की कोशिश करता है.

क्या पहले भी भारतीय जमीन को अपना बता चुका है चीन?

हां, 2023 में भारत के 11 जगहों के नाम बदलने से पहले चीन ने 2017 और 2021 में भारतीय जगहों के नाम बदले थे. 2017 में चीन ने पहली बार अरुणाचल प्रदेश के 6 आधिकारिक नाम जारी किए थे. चीन ने अरुणाचल प्रदेश में दलाई लामा के दौरे के बाद ऐसा कदम उठाया था. जिन 6 जगहों के नाम बदले गए, उनका नाम रोमन में कुछ इस तरह लिखा था- वोग्यानलिंग, मिला री, क्वाइडेंगार्बो री, मेनकुका, बुमो ला और नामकापुब री.

इसके बाद 2021 में अरुणाचल में 15 जगहों के नामों को अपने हिसाब से बदला. इन नामों को चीनी, तिब्बती और रोमन में जारी किया था. इनमें से 8 रिहायशी इलाके, 4 पर्वत, 2 नदियां और एक पहाड़ों से निकलने वाला रास्ता था. सबसे बड़ी बात ये है कि चीन ने इन नामों की सूची अपने नए 'लैंड बॉर्डर कानून' के तहत जारी की थी, जो नया कानून एक जनवरी 2022 से लागू किया गया है.

चीन बार-बार अरुणाचल पर दावा क्यों करता है?

चीन के अरुणाचल प्रदेश पर दावा करने के दो प्रमुख वजह हैं- 1. अरुणाचल प्रदेश में चीन की दिलचस्पी सामरिक वजहों से है, क्योंकि यह भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्ट्रैटजिक एंट्री दिलाता है. 2. अरुणाचल प्रदेश में कई जगहों पर बौद्ध धर्म से जुड़े मठ आदि हैं. इनमें बौद्ध धर्म के सबसे बड़े मठों में से एक तवांग मठ भी है. यही वजह है कि चीन बार-बार अरुणाचल प्रदेश की जमीन को अपना बताकर कब्जा करने की कोशिश करता है.

चीन का बार-बार ऐसा करना क्या किसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है?

डिफेंस एक्सपर्ट जेएस सोढ़ी के मुताबिक, चीन बिना सोचे-समझे अरुणाचल प्रदेश के जगहों के नाम नहीं बदल रहा है. चीन के हर चाल के पीछे कोई न कोई वजह होती है. चीन अपने देश के अभिन्न हिस्सा अरुणाचल प्रदेश को लेकर वही रणनीति अपना रहा है, जो वह अपने दूसरे पड़ोसी देशों की जमीन हड़पने के लिए अपनाता रहा है.

चीन का 14 देशों के साथ सीमा साझा करता है. इनमें से ज्यादातर देशों के साथ चीन का सीमा विवाद है. चीन जिस जमीन पर गैरकानूनी रूप से अपना हक जताता है उनके ये नाम बदलता रहता है और करीब डेढ़ या दो दशक बाद जारी अपने नक्शों में इन जगहों को दिखाता है. इसके कुछ सालों के बाद वह उन जमीन पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों के समक्ष दावा पेश कर देता है. ऐसे में साफ है कि चीन इस तरह के दावे सोची-समझी रणनीति के तहत कर रहा है.

इसके साथ ही सोढ़ी ये भी कहते हैं कि चीन अपने बाकी पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद सुलझा रहा है, लेकिन भारत और ताइवान के मामले में ऐसा नहीं है. इसे देखते हुए ऐसा लगता है कि अगले एक दशक में चीन के दो बड़े सैन्य लक्ष्य ताइवान और अरुणाचल प्रदेश हो सकते हैं. हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए. 

अब आखिर में जानिए भारतीय महिला को शंघाई एयरपोर्ट पर हिरासत में लेने के बाद कैसे शुरू हुआ विवाद?

घटना : 21 नवंबर को शंघाई एयरपोर्ट पर एक भारतीय महिला के हिरासत में लिए जाने के बाद इस विवाद की शुरुआत हुई. दरअसल, ब्रिटेन में रहने वाली भारतीय महिला पेमा वांगजोम थोंगडोक 21 नवंबर को लंदन से जापान जा रही थीं. उन्होंने बताया कि उनका केवल तीन घंटे का ट्रांजिट शंघाई में तब 18 घंटे की यातना में बदल गया, जब चीनी इमिग्रेशन अधिकारियों ने उनके पासपोर्ट को केवल इस आधार पर “अमान्य” घोषित कर दिया. पासपोर्ट में जन्मस्थान के रूप में अरुणाचल प्रदेश दर्ज था, इसलिए उनके साथ ऐसा व्यवहार किया गया.

चीन का पक्ष : 25 नवंबर को इस घटना पर चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने किसी भी उत्पीड़न से इनकार किया. माओ ने आगे कहा कि सीमा अधिकारियों ने “कानून और नियमों के अनुसार” कार्य किया तथा एयरलाइन ने उन्हें आराम करने की जगह, भोजन और पानी उपलब्ध कराया था. इसी जवाब में माओ ने आगे कहा कि जांगनम (अरुणाचल प्रदेश) चीन का हिस्सा है और भारत उस पर अवैध रूप से काबिज है.

भारत का पक्ष : चीनी विदेश मंत्रालय की टिप्पणियों के जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने दोहराया कि भारत चीन के उस महिला की राष्ट्रीयता पर सवाल उठाने के प्रयासों को पूरी तरह खारिज करता है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने जोर देकर कहा, “अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविच्छेद्य (जिसे अलग न किया जा सके) हिस्सा है, यह एक स्वयंसिद्ध तथ्य है. चीनी पक्ष का कितना भी इनकार कर ले, यह वास्तविकता नहीं बदलने वाली.”

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