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क्या है चांदीपुरा वायरस जो गुजरात में ले रहा है बच्चों की जान?

गुजरात सरकार ने बताया है कि 10 से 15 जुलाई के बीच 6 बच्चों की इस वायरस से मौत हो चुकी है

चांदीपुरा वायरस के लिए अभी तक कोई वैक्सीन या दवा उपलब्ध नहीं है
चांदीपुरा वायरस के लिए अभी तक कोई वैक्सीन या दवा उपलब्ध नहीं है
अपडेटेड 17 जुलाई , 2024

कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद अब हर तरह की नई वायरस मन में एक आशंका पैदा कर देता है. डर लगता है कि कहीं फिर 2020 का मंजर ना देखना पड़ जाए. ऐसी ही आशंकाओं के बीच एक और वायरस है जो इस बार गुजरात में बच्चों को अपना शिकार बना रहा है.

गुजरात सरकार ने 15 जुलाई को जानकारी दी है कि राज्य में 10 जुलाई से संदिग्ध चांदीपुरा वायरस (सीएचपीवी) संक्रमण से छह बच्चों की मौत हो चुकी है और अब तक कुल 12 संदिग्ध मामले सामने आए हैं.

क्या है चांदीपुरा वायरस?

चांदीपुरा वायरस एक RNA वायरस है जो रैबडोविरिडे फैमिली से संबंधित है, जिसमें रेबीज वायरस भी शामिल है. इसे चांदीपुरा वेसिकुलोवायरस (CHPV) भी कहा जाता है. पहली बार 1965 में महाराष्ट्र के एक गांव चांदीपुरा में इस वायरस को देखा गया था. यह मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करता है और भारत में एक्यूट इंसेफेलाइटिस  (दिमागी बुखार) के प्रकोप से भी जुड़ा हुआ है.

गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री ऋषिकेश पटेल ने बताया है, "छह में से पांच मौतें साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर स्थित सिविल अस्पताल में हुई हैं. साबरकांठा के आठ समेत सभी 12 नमूनों को पुष्टि के लिए पुणे के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) भेजा गया है."

इससे होने वाली बीमारी के बारे में ऋषिकेश पटेल ने कहा कि यह बीमारी वेक्टर-संक्रमित सैंडफ्लाई के डंक से होती है और यह मुख्य रूप से 9 महीने से 14 साल की उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है. यह ग्रामीण इलाकों में अधिक देखी जाती है. बुखार, उल्टी, दस्त और सिरदर्द इसके मुख्य लक्षण हैं.

फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाई और फ्लेबोटोमस पापाटासी जैसी सैंडफ्लाई की कई प्रजातियां और एडीज एजिप्टी (जो डेंगू का भी वेक्टर है) जैसी कुछ मच्छर प्रजातियां सीएचपीवी के वाहक माने जाते हैं. वायरस इन कीड़ों की लार ग्रंथि में रहता है और डंक के माध्यम से मनुष्यों या घरेलू जानवरों में फैल सकता है. वायरस के कारण होने वाला संक्रमण फिर सेंट्रल नर्वस सिस्टम तक पहुंच सकता है जिससे इंसेफेलाइटिस होने का खतरा होता है. एन्सेफलाइटिस में दिमाग के एक्टिव टिश्यू में सूजन आ जाती है.

चांदीपुरा वायरस एक गंभीर पैथोजन (ऐसा सूक्ष्म जीव जो संक्रामक रोग पैदा करने की क्षमता रखता है) है जिसके लक्षण बहुत तेज़ी से दिखाई देते हैं, और यह मुख्य रूप से कुछ क्षेत्रों में बच्चों को प्रभावित करता है. हालांकि, यह बीमारी संक्रामक नहीं है. कुछ ख़ास एंटीवायरल उपचारों की कमी के कारण, जितनी जल्दी इस वायरस का पता लग जाए और उपचार शुरू हो जाए, उतना बेहतर है.

चांदीपुरा वायरस संक्रमण के लक्षण क्या हैं?

सीएचपीवी संक्रमण शुरू में फ्लू जैसे लक्षणों के साथ होता है जैसे कि बुखार, शरीर में दर्द और भयंकर सिरदर्द. इसके बाद यह दौरे और इंसेफेलाइटिस में भी तब्दील हो सकता है. भारत में पाए गए कुछ मरीजों में सांस की दिक्कत, ब्लीडिंग या एनीमिया जैसे अन्य लक्षण भी देखे गए हैं. इन्हीं अध्ययनों के अनुसार, इंसेफेलाइटिस के बाद संक्रमण अक्सर तेजी से बढ़ता है, जिसके कारण अस्पताल में भर्ती होने के 24-48 घंटों के भीतर ही मौत हो सकती है. इस वायरस का प्रकोप खासकर 15 साल से कम उम्र के बच्चों तक ही सीमित रहा है.

यह संक्रमण कैसे फैलता है और किस तरह इसे काबू में किया जा सकता है?

मुख्यतः तीन तरीके से चांदीपुरा वायरस का संक्रमण जीवों में फैलता है. पहला, वेक्टर से - संक्रमण का प्राथमिक तरीका सैंडफ्लाई का डंक होता है. दूसरा, पशुओं से - कुछ पशु प्रजातियां वायरस के भंडार के रूप में काम कर सकती हैं, हालांकि इस पर अभी-भी जांच चल ही रही है. और तीसरा, पर्यावरणीय कारक - चांदीपुरा वायरस के संक्रमण को कुछ ख़ास मौसमों से भी जोड़ा जाता है जो सैंडफ्लाई के प्रजनन के लिए अनुकूल हैं.

चांदीपुर वायरस के संक्रमण को केवल लक्षण देखकर ही रोका जा सकता है क्योंकि फिलहाल इसके उपचार के लिए कोई खास एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है. इस वायरस से होने वाली मौतों को कम करने के लिए मस्तिष्क की सूजन का उपाय करना जरूरी हो जाता है क्योंकि उसके बाद कोई भी दवा या इलाज मरीजों के काम नहीं आती. इस वायरस से संक्रमित होने के बाद रोग इतनी तेज़ी से फैलता है कि अगर किसी मरीज़ को सुबह तेज़ बुखार हो तो शाम तक उसके गुर्दे या लीवर ख़राब हो सकते हैं. कई बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार, इसी वजह से लक्षण देखकर भी रोकथाम करना मुश्किल हो जाता है.

रोकथाम में मुख्य रूप से लक्षणों से राहत और जटिलताओं को रोकने के लिए सहायक देखभाल शामिल है -

अस्पताल में भर्ती - गंभीर लक्षण वाले रोगियों, विशेष रूप से बच्चों को अक्सर अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत होती है.

हाइड्रेशन: उचित हाइड्रेशन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, खासकर अगर लगातार उल्टियां हो रही हों.

एंटीपायरेटिक्स - बुखार को कम करने के लिए दवाएं.

एंटीकॉन्वल्सेंट्स - दिल के दौरे से बचाव इन दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है.

गहन देखभाल - गंभीर न्यूरोलॉजिकल लक्षण के मामलों में, न्यूरोलॉजिकल और सांस लेने से जुड़ी जटिलताओं को संभालने गहन देखभाल की जरूरत होती है.

चांदीपुरा वायरस के संक्रमण से रोकथाम के लिए आप क्या कर सकते हैं?

इसके रोकथाम से जुड़े उपाय सैंडफ्लाई की आबादी को काबू में रखने और इंसानों में इसके फैलाव को जोखिम कम करने पर केंद्रित हैं. इसके लिए कीट निरोधक का इस्तमाल करें, लंबी आस्तीन वाले कपड़े पहनें और मच्छरदानी का उपयोग करें. घर और आस-पड़ोस में कीटनाशक का छिड़काव कर सैंडफ्लाई के अड्डों को कम करें. सरकार को चाहिए कि इस वायरस से प्रभावित क्षेत्रों में समुदायों को चांदीपुरा वायरस के जोखिमों और उससे बचाव के उपायों के बारे में शिक्षित करे.

भारत में सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र कौन से हैं?

सीएचपीवी संक्रमण को पहली बार 1965 में महाराष्ट्र में डेंगू/चिकनगुनिया के प्रकोप की जांच के दौरान देखा गया था. हालांकि, भारत में इस बीमारी का सबसे बड़ा प्रकोप 2003-04 में महाराष्ट्र, उत्तरी गुजरात और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में देखा गया था, जहां तीनों राज्यों में 300 से ज़्यादा बच्चों की मौत हुई थी. 2004 के प्रकोप के दौरान गुजरात में मृत्यु दर लगभग 78% थी, जबकि 2003 के प्रकोप के दौरान आंध्र प्रदेश में मृत्यु दर लगभग 55% थी. यह संक्रमण मुख्य रूप से भारत के मध्य भाग में ही फैला हुआ है, जहां सीएचपीवी संक्रमण फैलाने वाले सैंडफ़्लाई और मच्छरों की आबादी ज़्यादा है.

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