केंद्र सरकार ने 11 मार्च को नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA) के नियमों का नोटिफिकेशन जारी कर दिया. अब यह कानून पूरे देश में लागू हो गया है. इसमें 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में पलायन करने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.
सीएए के नियमों के लागू होने से जुड़ी जानकारी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने लिखा, "मोदी सरकार ने नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 की अधिसूचना को जारी कर दिया है. अब धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता दी जा सकेगी. इसके जरिए पीएम मोदी ने अपनी एक और प्रतिबद्धता को पूरा किया है."
भले ही सीएए को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं के अलग-अलग बयान सामने आ रहे हों, पर इस मसले से जुड़े कुछ बेहद अहम सवाल भी हैं. जैसे इस कानून के तहत नागरिकता लेने के लिए आवेदन करने का तरीका क्या है? आवेदन कहां से करना है? क्या राज्य सरकारें इस कानून को अपने यहां लागू करने से इनकार कर सकती हैं? इस तरह के कई सवाल आम लोगों के मन में आ रहे हैं.
सीएए को लेकर केंद्र सरकार ने जो फॉर्म जारी किया है, उसमें इससे जुड़े नियमों की विस्तृत जानकारी मौजूद है. इसके तहत उन शरणार्थियों को ही नागरिकता मिल पाएगी जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आकर बसे थे. आवेदकों को भारत में आने का दिन और वीजा या इमिग्रेशन स्टैंप सहित दूसरी जानकारियां भी देनी होंगी. एक जरूरी बात ये भी है कि पहले भारत की नागरिकता लेने के लिए किसी व्यक्ति को यहां कम से कम 11 साल रहना अनिवार्य था पर सीएए में यह अवधि घट कर 6 साल हो गई है. इसके अलावा अवैध तरीके से घुसने वालों को नागरिकता देने का कोई भी प्रावधान नहीं था, लेकिन अब ऐसे लोगों को भी सीएए के तहत रखा गया है.
नागरिकता के लिए अप्लाई करने की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है. इसके लिए गृह मंत्रालय ने एक पोर्टल indiancitizenshiponline.nic.in भी लॉन्च किया है. आवेदन सबसे पहले जिला कमेटी के पास जाएगा जहां से उसे एंपावर्ड कमेटी के पास भेजा जाएगा. जिसके बाद एक कमेटी जिसमें आईबी, फॉरेन सर्विसेज, रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस, पोस्ट ऑफिस और राज्य सूचना अधिकारी शामिल होंगे, वो इस पर फैसला करेगी.
आवेदन के लिए 9 तरह के दस्तावेजों में से किसी एक का होना भी जरूरी है. सबसे पहले तो यह साबित करना होगा कि आवेदक पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थी हैं. इसके लिए उनको पासपोर्ट, बर्थ सर्टिफिकेट, एजुकेशनल डॉक्युमेंट्स, ड्राइविंग लाइसेंस और जमीन से जुड़े दस्तावेज दिखाने होंगे. इसके अलावा भारत सरकार की तरफ से जारी किए गए दस्तावेज मसलन आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड, बर्थ सर्टिफिकेट, पैन कार्ड, बिजली-पानी बिल, विवाह का प्रमाण पत्र और जमीन से जुड़े कागजात दिखा कर भी आवेदन किया जा सकता है.
हालांकि अगर किसी के पास दस्तावेज नहीं है तो भी वह आवेदन कर सकता है, पर उसे कारण बताना होगा. और अगर उसके पास कोई भी दस्तावेज मौजूद है तो उसकी जानकारी देनी होगी. ऑनलाइन फॉर्म में आवेदकों को अपने माता-पिता या पति का नाम, भारत में रहने की अवधि, किस देश से आए हैं, भारत में क्या काम कर रहे हैं और किस धर्म से संबंध रखते हैं, इस तरह की जानकारियां देनी होंगी.
इसके अलावा अगर भारत आने के बाद किसी शरणार्थी ने यहां पर किसी महिला से शादी की है तो उसे इस बारे में अलग से बताना होगा. बच्चों के लिए भी अलग से फॉर्म दिया गया है. अगर किसी तरह का आपराधिक रिकॉर्ड है तो इसकी जानकारी भी मुहैया करानी होगी.
सीएए का आवेदन फॉर्म भरने के बाद इसकी सत्यता की पुष्टि भी करनी होगी और अपने दस्तखत भी करने होंगे. अगर फॉर्म में कोई गलत जानकारी पाई जाती है या फिर धोखाधड़ी वाली कोई बात सामने आती है तो फॉर्म को रिजेक्ट भी किया जा सकता है.
वहीं नागरिकता के लिए अप्लाई करने वालों को आवेदन की तारीख से पहले कम से कम 12 महीने तक भारत में रहना अनिवार्य है. इसके अलावा आवेदक कम से कम भारत में छह साल तक रह चुका हो. साथ ही यह घोषणा भी करनी होगी कि वह अपनी मौजूदा नागरिकता को अपरिवर्तनीय रूप से त्याग रहा है और वो भारत को स्थाई घर बनाना चाहता है.
लेकिन इस बीच विपक्षी पार्टियों का सीएए पर कड़ा विरोध भी शुरू हो गया है. ममता बनर्जी इस कानून के विरोध में मुखरता से आवाज उठा रही हैं. उन्होंने तो यह एलान भी कर दिया है कि वे पश्चिम बंगाल में सीएए लागू नहीं होने देंगी. केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी ममता के सुर में सुर मिलाया है. लेकिन यहां पर यह सवाल उठता है कि क्या राज्यों के पास यह अधिकार है कि वे सीएए को लागू करने से इनकार कर सकें?
इस सवाल का जवाब मिलता है भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में. जहां पर अनुच्छेद 246 के तहत राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों का बंटवारा किया गया है. इसी के तहत केंद्र सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची बनाई गई हैं. यानी कौन किस मामले पर कानून बना सकता है, वहां इसके बारे में बताया गया है.
अब अगर नागरिकता की बात करें तो यह केंद्र सूची का विषय है, यानी इस मामले में कोई भी कानून बनाने या फैसला करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है. ऐसे में अगर कोई राज्य सीएए को लागू करने से मना कर दे तो क्या होगा?
ऐसी स्थिति में राज्यों को संसद से पारित किए गए कानून को लागू करना ही होगा. हालांकि अगर किसी राज्य सरकार को ऐसा लगता है कि उसके निवासियों के मूल अधिकार का हनन हो रहा है तो वह सुप्रीम कोर्ट जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे के मुताबिक, राज्य सरकारों के पास केंद्र की तरफ से पारित किए गए कानूनों को रद्द करने की शक्ति नहीं है. हालांकि यहां उल्लेखनीय है कि सीएए को छठी अनुसूची के तहत आने वाले राज्य जैसे कि असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी इलाकों में लागू नहीं किया जाएगा.