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बीजेपी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए सी.पी. राधाकृष्णन को ही क्यों चुना?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता से लेकर बीजेपी की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के राज्यपाल तक सी.पी. राधाकृष्णन का 40 साल का राजनीतिक करियर रहा है

PM Modi congratulated CP Radhakrishnan on being made the NDA's candidate for the post of Vice President
पीएम मोदी ने सीपी राधाकृष्णन को NDA का उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर बधाई दी है
अपडेटेड 18 अगस्त , 2025

महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन को जब एनडीए ने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया तो उत्तर भारत में कई राजनीतिक जानकारों को इससे कुछ हैरानी जरूर हुई होगी क्योंकि वे इससे पहले ज्यादा चर्चा में नहीं रहे. 

हालांकि राधाकृष्णन के राजनीतिक करियर पर नजर रखने वालों के लिए यह कोई हैरानी की बात नहीं थी. दूसरी तरफ अपने छोटे से छोटे फैसले को भी राजनीतिक लिहाज से करने वाली बीजेपी का यह फैसला जाहिर तौर पर एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है. 

राधाकृष्णन तमिलनाडु के तिरुपुर जिले से आते हैं और कोन्गू वेल्लालर (गौंडर) समुदाय से हैं, जो राज्य के पश्चिमी हिस्से में प्रभावशाली माने जाते हैं. इस इससे में आठ विधानसभा सीटें हैं जहां इस समुदाय का समर्थन चुनावी हार-जीत में अहम भूमिका निभाता है.

यह वही क्षेत्र है, जहां बीजेपी अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है. उनके चयन को इस समुदाय को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. दरअसल तमिलनाडु में पार्टी के पिछले अध्यक्ष अन्नामलै भी इसी समुदाय से आते हैं और पिछले दिनों जब उन्हें पद से हटाया गया तो इस तबके में बीजेपी के प्रति एक असंतोष देखने को मिल रहा था. लेकिन ताजा फैसला इस असंतोष को दबा सकता है. चेन्नई के पत्रकार टी. रामाकृष्णन के अनुसार, "राधाकृष्णन तमिलनाडु से बीजेपी के उन गिने-चुने नेताओं में हैं जिनकी छवि साफ़ और सम्मानजनक है."

राधाकृष्णन का चयन बीजेपी की दक्षिण भारत में पकड़ मजबूत करने की कोशिश का भी हिस्सा है. आर. वेंकटरामण (1984–1987)  के बाद उपराष्ट्रपति बनने वाले वे पहले तमिल नेता होंगे. बीजेपी की नेशनल सेक्रेटरी वनाती श्रीनिवासन ने इसे तमिलनाडु को बड़ी अहमियत देना बताया. एआईएडीएमके के नेता पलानीस्वामी ने भी इसे ‘तमिलों के लिए गर्व का क्षण’ कहा.

राधाकृष्णन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से लंबे समय से जुड़े हुए हैं और बीजेपी में कई दशकों तक सक्रिय रहे हैं. वे दो बार कोयंबटूर से सांसद रह चुके हैं और पार्टी के तमिलनाडु प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं. झारखंड और महाराष्ट्र में राज्यपाल के तौर पर उनके कार्यकाल में कोई खास विवाद नहीं हुआ. चूंकि वे संघ की विचारधारा में पले-बढ़े हैं इस वजह से माना जा रहा है कि बीजेपी ने उनके चुनाव के जरिए अपने पैतृक संगठन को भी यह संदेश देने की कोशिश की है कि राजनीतिक फैसलों में उसकी पूरी अहमियत है.

विशेषज्ञ मानते हैं कि बीजेपी इस बार उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसा चेहरा चाहती थी जो विवादों से दूर हो और संसद के ऊपरी सदन (राज्यसभा) में शांति बनाए रख सके. पिछले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के कार्यकाल में विपक्ष से टकराव की कई घटनाएं सामने आई थीं. बीजेपी अब उस गलती को दोहराना नहीं चाहती.

प्रधानमंत्री मोदी राधाकृष्णन को एनडीए का उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुने जाने पर बधाई दी है. एक्स पर उन्होंने लिखा है कि राधाकृष्णन ने अपने राजनीतिक जीवन में हमेशा समाज की जमीनी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया. उन्होंने खासकर तमिलनाडु में बड़े स्तर पर काम किया है. एनडीए परिवार ने जब उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया तो यह स्वाभाविक माना गया क्योंकि उन्होंने विभिन्न जिम्मेदारियों में हमेशा खुद को सिद्ध किया. मोदी ने विश्वास जताया कि वे उपराष्ट्रपति के रूप में प्रेरणादायी भूमिका निभाएंगे.

दिलचस्प बात यह है कि राधाकृष्णन को केवल बीजेपी ही नहीं, बल्कि विपक्ष के कुछ नेताओं ने भी एक अच्छा और साफ-सुथरा चेहरा बताया है. शिवसेना (उद्धव गुट) के संजय राउत ने उन्हें ‘अच्छा इंसान और गैर-विवादित व्यक्ति’ कहा. डीएमके के कुछ नेता पहले उन्हें ‘गलत पार्टी में अच्छा व्यक्ति’ भी कह चुके हैं.

हालांकि, कांग्रेस नेता उदित राज ने इस फैसले की आलोचना की और कहा कि यह बीजेपी का RSS को खुश करने का तरीका है और इसके पीछे तमिलनाडु में राजनीतिक लाभ लेने की मंशा है. उन्होंने कहा कि बीजेपी इस पद का भी राजनीतिक इस्तेमाल करना चाहती है.

फिर भी, बीजेपी का यह कदम कई स्तरों पर संदेश देता है – एक विचारधारात्मक निष्ठावान नेता को सम्मान देना, तमिलनाडु के प्रभावशाली समुदाय को साधना, दक्षिण भारत को राष्ट्रीय राजनीति में शामिल करना और राज्यसभा में संतुलन बनाए रखना. 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए को बहुमत हासिल है, ऐसे में राधाकृष्णन की जीत लगभग तय मानी जा रही है. लेकिन यह चयन केवल एक चुनावी प्रक्रिया नहीं है, यह एक राजनीतिक संकेत है कि बीजेपी अब सत्ता की राजनीति को प्रतीकात्मकता, समावेश और रणनीति के साथ जोड़कर आगे बढ़ाना चाहती है.

सी.पी. राधाकृष्णन की उम्मीदवारी सिर्फ तमिलनाडु नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, पुडुच्चेरी की जनता के लिए भी यह संदेश देने की कोशिश है कि बीजेपी राष्ट्रीय समावेशिता में यकीन रखती है.  यह एक ऐसा दांव है जो पार्टी को दक्षिण में नई जमीन दिला सकता है और केंद्र में उसकी साख को मजबूत बना सकता है.

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