विपक्षी इंडिया गठबंधन की तरफ से लगातार 'संविधान ख़त्म करने की साजिश' के आरोपों के बीच भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में याद किए जाने की बात कहकर नया शिगूफा छेड़ दिया है. दरअसल 25 जून 1975 को ही इंदिरा गांधी के शासन के दौरान देश में आपातकाल की घोषणा की गई थी.
लोकसभा चुनाव 2024 से ही जिस इंडिया गठबंधन के नेता लगातार बीजेपी को 'संविधान बदलने' और 'आरक्षण ख़त्म करने' जैसे मुद्दों पर घेर रहे थे, अब इस नए शिगूफे ने उन्हें भी इसी मुद्दे पर प्रतिक्रिया देने को मजबूर कर दिया है. कांग्रेस के भी तमाम नेता इसे लेकर ट्वीट कर रहे हैं और मीडिया में बयान दे रहे हैं.
यह पहली बार नहीं है जब बीजेपी ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की साख को कम करने की कोशिश की है. इससे पहले भी सत्तारूढ़ पार्टी 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाने पर सवाल उठा चुकी है, और नई दिल्ली में नेहरू राष्ट्रीय संग्रहालय और पुस्तकालय का नाम बदलकर प्रधानमंत्री संग्रहालय करने जैसे कदम उठा चुकी है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने ट्विटर पर 'संविधान हत्या दिवस' से जुड़ा गजट जारी करते हुए लिखा, कि 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी तानाशाही मानसिकता को दर्शाते हुए देश में आपातकाल लगाकर भारतीय लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंट दिया था.
25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी तानाशाही मानसिकता को दर्शाते हुए देश में आपातकाल लगाकर भारतीय लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंट दिया था। लाखों लोगों को अकारण जेल में डाल दिया गया और मीडिया की आवाज को दबा दिया गया। भारत सरकार ने हर साल 25 जून को 'संविधान… pic.twitter.com/KQ9wpIfUTg
— Amit Shah (@AmitShah) July 12, 2024
इस घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमित शाह के ट्वीट को ही शेयर करते हुए कहा कि देश कांग्रेस के इस दमनकारी कदम को भारतीय इतिहास के काले अध्याय के रूप में हमेशा याद रखेगा."
25 जून को #SamvidhaanHatyaDiwas देशवासियों को याद दिलाएगा कि संविधान के कुचले जाने के बाद देश को कैसे-कैसे हालात से गुजरना पड़ा था। यह दिन उन सभी लोगों को नमन करने का भी है, जिन्होंने आपातकाल की घोर पीड़ा झेली। देश कांग्रेस के इस दमनकारी कदम को भारतीय इतिहास के काले अध्याय के रूप… https://t.co/mzQFdQOxZW
— Narendra Modi (@narendramodi) July 12, 2024
लोकसभा चुनावों के दौरान विपक्ष ने चेतावनी दी थी कि अगर मोदी सरकार तीसरा कार्यकाल हासिल करती है, तो भारतीय संविधान को खतरा हो सकता है. इसी बात को कांग्रेस नेता राहुल गांधी और दूसरे विपक्षी नेताओं ने संसद के अंदर और 18वीं लोकसभा में शपथ ग्रहण के दौरान संविधान की प्रतियों को दिखाते हुए कहा और 'जय संविधान' के नारे भी लगाए.
इसके जवाब में, बीजेपी ने भी कांग्रेस को इमरजेंसी के दिन याद दिलाने शुरू किए. ऐसा कहा गया कि प्रेस सेंसरशिप सहित उस समय की कठोर तानाशाही को झेलने वालों को 12 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी गजट नोटिफिकेशन का लंबे समय से इंतजार था. नोटिफिकेशन में इस दिन को हिंदी में 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में तो लिखा गया है, लेकिन इसका अंग्रेजी अनुवाद नहीं दिया गया है.
कुछ लोगों का इसपर यह भी कहना था कि अगर लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना ही प्राथमिकता होती तो आपातकाल हटाने के दिन (21 मार्च, 1977) को चुनना ज्यादा बेहतर प्रतीक होता.
इमरजेंसी हटने के बाद जो आम चुनाव हुए थे, उसमें जनता ने इंदिरा गांधी को नकार दिया था और नई-नवेली जनता पार्टी को मौका दिया था. उन्हीं दिनों के बारे में बताते हुए इंडिया टुडे के पत्रकार अमरनाथ के मेनन बताते हैं, "आपातकाल की समाप्ति के बाद जीतकर आई जनता पार्टी की सरकार के काम भी सतही ही महसूस होते थे. जैसे, उन्होंने कोका-कोला की जगह 77 (डबल सेवन) नाम के पेय पदार्थ लाने जैसे प्रतीकात्मक परिवर्तन किए, इमरजेंसी के दौरान सभी बातें मानने के लिए मीडिया की आलोचना की और आपातकाल के काले दिनों के खिलाफ़ आवाज़ उठाई. हालांकि, न तो जनता पार्टी और न ही बाद की सरकारों ने संवैधानिक सुरक्षा को लागू करने के लिए कोई पर्याप्त कदम उठाए.
25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित करने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक खुला खत लिखा. इसमें खरगे ने कहा, "मोदी जी, आपके मुंह से संविधान की बातें अच्छी नहीं लगती. आपने देश के हर गरीब व वंचित तबके से हर पल उनका आत्मसम्मान छीना है."
.@narendramodi जी,
— Mallikarjun Kharge (@kharge) July 12, 2024
पिछले 10 वर्षों में आपकी सरकार ने हर दिन “संविधान हत्या दिवस” ही तो मनाया है।
आपने देश के हर गरीब व वंचित तबके से हर पल उनका आत्मसम्मान छीना है।
▪️जब मध्य प्रदेश में भाजपा नेता आदिवासियों पर पेशाब करता है, या जब यूपी के हाथरस की दलित बेटी का पुलिस जबरन…
इसी मामले पर बीजेपी पर पलटवार करते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी 4 जून को 'मोदी मुक्ति दिवस' मानाने की बात कह डाली. उन्होंने लिखा, "यह वही नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री हैं जिनके वैचारिक परिवार ने नवंबर 1949 में भारत के संविधान को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह मनुस्मृति से प्रेरित नहीं था. यह वही नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री हैं जिनके लिए डेमोक्रेसी का मतलब केवल डेमो-कुर्सी है."
नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री एक बार फ़िर हिपोक्रेसी से भरा एक हेडलाइन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन भारत के लोगों से 4 जून, 2024 — जिसे इतिहास में मोदी मुक्ति दिवस के नाम से जाना जाएगा — को मिली निर्णायक व्यक्तिगत, राजनीतिक और नैतिक हार से पहले उन्होंने दस सालों तक अघोषित…
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) July 12, 2024
अमरनाथ के मेनन इस पूरे घटनाक्रम पर एक महत्वपूर्ण सवाल रखते हैं. उनके मुताबिक, कांग्रेस बी.आर. आंबेडकर और वंचितों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उजागर करने पर ध्यान केंद्रित करती है, ऐसा क्षेत्र जहां वह भाजपा को कमजोर मानती है. इस रणनीति ने लोकसभा चुनावों में इंडिया ब्लॉक को फायदा पहुंचाया और विपक्षी गठबंधन को 'संविधान बचाओ' अभियान का एक बड़े तबके का समर्थन दिलाया. फिर भी, महत्वपूर्ण सवाल बना हुआ है: क्या दोनों दल भविष्य के लिए राजनीतिक प्रणाली में लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रथाओं को प्रभावी ढंग से शामिल करने और बनाए रखने के लिए केवल बयानबाजी से आगे बढ़ सकते हैं?