22 जुलाई की सुबह सोवियत काल का एक मालवाहक विमान एंटोनोव, दिल्ली के हिंडन एयरबेस पर उतरता है. इस मालवाहक विमान में तीन अमेरिकी ‘AH-64E अपाचे’ लड़ाकू हेलीकॉप्टर लदे थे. दरअसल, एंटोनोव विमान भारतीय सेना के लिए अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की पहली खेप लेकर भारत आया था.
यह हेलीकॉप्टर अपनी जबरदस्त मारक क्षमता और जंग के दौरान अपनी खासियतों के कारण 'फ्लाइंग टैंक' के नाम से मशहूर है. इन हेलीकॉप्टरों को पाकिस्तान से सटी पश्चिमी सीमा पर तैनात किया जाएगा, जिससे भारत की सीमा पर युद्ध क्षमताओं में इजाफा होगी.
इस हेलीकॉप्टर को अपने बेड़े में शामिल करने का लक्ष्य भारतीय सेना का काफी समय से रहा है. यही वजह है कि सेना के लंबे समय के प्रयासों और इंतजार के कारण ही सीमा पर अपाचे की तैनाती संभव हो पाई है.
फिलहाल तीन अपाचे हेलीकॉप्टर भारत आए हैं. फरवरी 2020 में भारतीय सेना के लिए छह अपाचे हेलीकॉप्टरों के लिए 5,691 करोड़ रुपये में सौदा हुआ था. इसी सौदे के तहत अपाचे की पहली खेप आई है. ये हेलीकॉप्टर राजस्थान के जोधपुर में नवगठित 451 आर्मी एविएशन स्क्वाड्रन में तैनात होंगे, जो पाकिस्तान की सीमा से लगे रेगिस्तानी इलाकों में अभियानों के लिए रणनीतिक रूप से बेहद सटीक स्थान है.
भारतीय वायु सेना (IAF) इस वक्त अपने 22 अपाचे विमानों का उपयोग एयर डिफेंस और दुश्मनों के रडार प्रतिष्ठानों और कमांड पोस्टों को निशाना बनाने के लिए करती है. जबकि भारतीय सेना यानी आर्मी अपने बेड़े में शामिल इन हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल नजदीकी हवाई सहायता, टैंकों को तबाह करने के मिशनों और बख्तरबंद मुठभेड़ों के दौरान करना चाहती है.
इस आपूर्ति से भारतीय सेना और वायुसेना के बीच हमलावर हेलीकॉप्टरों के नियंत्रण को लेकर लंबे समय से चली आ रही खींचतान फिर से शुरू हो गई है. आजादी के बाद से, वायुसेना ने हमलावर और भारी-भरकम हेलीकॉप्टरों सहित सभी आक्रामक हवाई संपत्तियों पर नियंत्रण बनाए रखा है. हालांकि, भारतीय सेना का तर्क है कि जमीनी बलों की सहायता, युद्धक्षेत्र में बेहतर समन्वय (कॉर्डिनेशन) और प्रभावशाली तरीके से हमला करने के लिए अपाचे हेलीकॉप्टर आर्मी एविएशन कोर की परिचालन कमान के अंदर होने चाहिए.
आधिकारिक सूत्रों का दावा है कि अपाचे हेलीकॉप्टरों की पहली खेप का आना न केवल मारक क्षमता में वृद्धि है, बल्कि यह IAF और सेना की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को दिखाता है. सभी छह हेलीकॉप्टरों की जल्द ही डिलीवरी होने की उम्मीद है, जिसके बाद उन्हें औपचारिक रूप से सेना में शामिल कर लिया जाएगा और अलग-अलग जगहों पर तैनाती के बाद इस्तेमाल में लिया जा सकेगा.
22 जुलाई को हुई यह डिलीवरी सिर्फ अत्याधुनिक उपकरणों की प्राप्ति से कहीं बढ़कर है. यह आधुनिक हवाई युद्ध के प्रति भारत के नजरिए में एक रणनीतिक बदलाव का संकेत देती है. अमेरिका के एरोजोना राज्य स्थित मेसा शहर में निर्मित, AH-64E अपाचे को दुनिया भर में सबसे बेहतर लड़ाकू हेलीकॉप्टर माना जाता है. यह अमेरिकी सेना के हमलावर हेलीकॉप्टर बेड़े की रीढ़ है और भारत सहित कई सहयोगी देशों के शस्त्रागार का भी हिस्सा है.
AH-64E अपाचे में युद्धक्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के लिए 26 नई तकनीकें शामिल की गई हैं. इनमें आधुनिक डिजिटल कनेक्टिविटी, सूचना वितरण प्रणाली, बेहतर ट्रांसमिशन वाले अधिक शक्तिशाली T700-GE-701D इंजन, मजबूत धातुओं से बने बेहतर रोटर ब्लेड लगाई गई हैं. इसके अलावा यह हेलीकॉप्टर UAV है. UAV का मतलब Unmanned Aerial Vehicle (मानवरहित हवाई वाहन) होता है. यह एक ऐसा हेलीकॉप्टर होता है, जिसे बिना किसी मानव पायलट के नियंत्रित किया जाता है. इसे रिमोट कंट्रोल या स्वचालित सिस्टम के माध्यम से उड़ाया जाता है.
दुनिया भर में 400 से ज्यादा AH-64E विमानों की आपूर्ति की जा चुकी है. अकेले अमेरिकी सेना के बेड़े में इस हेलीकॉप्टर ने 45 लाख से ज्यादा उड़ान घंटे पूरे किए हैं. पश्चिमी क्षेत्र में अपाचे हेलीकॉप्टर पाकिस्तान के खिलाफ भारत की क्षमताओं को मजबूत करेगा. वहीं पूर्वी मोर्चे पर भी पिछले कुछ समय से एक समानांतर और चिंताजनक घटनाक्रम देखने को मिल रहे हैं.
इन बातों को ध्यान में रखकर इसी साल मार्च में रक्षा मंत्रालय ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ 156 'प्रचंड' हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों के लिए 62,700 करोड़ रुपये (लगभग 7.3 अरब डॉलर) का समझौता किया, जो जंग के दौरान हेलीकॉप्टर इस्तेमाल करने की बढ़ती भूमिका को दिखाता है. भारतीय वायुसेना के बेड़े में ऐसे 66 हेलीकॉप्टर और भारतीय सेना के बेड़े में 90 हेलीकॉप्टर अगले पांच वर्षों में शामिल किए जाएंगे. सरकार का मानना है कि इनकी आपूर्ति तीन साल बाद शुरू हो जाएगी.
इन हेलीकॉप्टर को ज्यादा ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों के लिए डिजाइन किया गया है. प्रचंड हेलीकॉप्टर भारतीय जरूरतों के हिसाब से खासकर चीन से लगी विवादित हिमालयी सीमा पर तैनाती के लिए तैयार किया गया है. आधुनिक स्टील्थ तकनीक, कवच सुरक्षा और रात के समय में भी शक्तिशाली आक्रमण क्षमताओं के साथ यह हेलीकॉप्टर दुर्गम इलाकों में भी सटीक हमले करने में सक्षम है.
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के पास इस तरह का Z-10 अटैक हेलीकॉप्टर है, जिसे झिशेंगजी-10 या 'फियर्स थंडरबोल्ट' भी कहा जाता है. अपनी डिजाइन समानता और युद्धक्षेत्र में भूमिका के कारण इसे 'चीनी अपाचे' भी कहा जाता है. Z-10, अमेरिका और पश्चिमी देशों के हेलीकॉप्टरों को टक्कर देने की चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है.
अमेरिका निर्मित अपाचे का आगमन और भारत के स्वदेशी प्रचंड बेड़े का विस्तार है. दोनों मिलकर भारत के हवाई सुरक्षा क्षेत्र में एक व्यापक बदलाव को दर्शाते हैं. अमेरिकी और स्वदेशी प्लेटफार्मों में भारत का दोहरा निवेश यह सुनिश्चित करता है कि वह रेगिस्तान और पहाड़ी दोनों ही युद्धों में एक विश्वसनीय बढ़त बनाए रखे.