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भारत में डेढ़ दशक बाद हो रही है अंटार्कटिक पार्लियामेंट की बैठक, क्या रहेगा एजेंडा?

इस साल भारत 46वें अंटार्कटिक संधि सलाहकार बैठक (ATCM) की मेजबानी कर रहा है. ATCM को अंटार्कटिक पार्लियामेंट भी कहा जाता है

केरल के कोच्चि में चल रही 46वें अंटार्कटिक संधि सलाहकार बैठक की एक झलक/फोटो-X
केरल के कोच्चि में चल रही 46वें अंटार्कटिक संधि सलाहकार बैठक की एक झलक/फोटो-X
अपडेटेड 23 मई , 2024

करीब 17 साल बाद भारत केरल के कोच्चि में 46वें अंटार्कटिक संधि सलाहकार बैठक (ATCM 46) की मेजबानी कर रहा है. ATCM को अंटार्कटिक पार्लियामेंट भी कहा जाता है. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केन्द्र, गोवा ने इसका आयोजन किया है. इसमें अंटार्कटिक संधि के 56 सदस्य देश हिस्सा ले रहे हैं. 20 मई से शुरू हुई ये बैठक 30 मई तक चलेगी. 

इससे पहले भारत ने ATCM की मेजबानी 2007 में की थी. तब ये बैठक नई दिल्ली में हुई थी. अंटार्कटिक, जिसे धरती के पांचवें सबसे बड़े महाद्वीप के रूप में मान्यता प्राप्त है, को लेकर ये बैठक काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. अब यहां कुछ सवाल उठते हैं कि इस बार इस बैठक का क्या एजेंडा रहने वाला है? अंटार्कटिक संधि की जरूरत क्यों पड़ी और इसकी क्या खासियतें हैं? 

पृथ्वी के सबसे दक्षिणी हिस्से में स्थित इस सबसे ठंडे महाद्वीप पर 1908 से सरगर्मी बढ़नी शुरू हुई जब आस-पास के सात देशों ने इसके कुछ हिस्सों पर औपचारिक रूप से दावा किया. इस निर्जन द्वीप के लिए लड़ाई की ये बस शुरुआत थी. 1940 और 1950 के दशक में कुछ देशों के बीच नौबत यहां तक आ पहुंची कि इन प्रतिस्पर्धी दावों के कारण उनमें राजनयिक विवाद पैदा हो गया. यही नहीं कुछ देशों के बीच सैन्य झड़पें भी हुईं.

आर्कटिक (सुदूर उत्तर में स्थित) के बिलकुल विपरीत होने की वजह से इसे एंटी-आर्कटिक (अंटार्कटिक) कहा जाता है
आर्कटिक (सुदूर उत्तर में स्थित) के बिलकुल विपरीत होने की वजह से इसे एंटी-आर्कटिक (अंटार्कटिक) कहा जाता है

डिस्कवरिंग अंटार्कटिका वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, 1948 में अर्जेंटीना के सैन्य बलों ने अंटार्कटिका के उस हिस्से में ब्रिटिश सैनिकों पर गोलीबारी की थी, जिसके लिए ये दोनों देश समान रूप से दावा कर रहे थे. 1950 तक आते-आते ये झड़पें और बढ़ीं. और 1955 के अंत तक स्थिति ये हो गई थी कि अर्जेंटीना, चिली, ब्रिटेन और अमेरिका सहित कई देशों ने इस महाद्वीप पर 20 से अधिक अड्डे बना लिए थे.

यह समय शीत युद्ध का भी था. एक तरफ अमेरिका तो दूसरी तरफ यूएसएसआर यानी सोवियत रूस. अपना वर्चस्व कायम करने के लिए इन दोनों के बीच गतिरोध की स्थिति बनी हुई थी. और ये कैसे हो सकता था कि जहां अमेरिका पहुंचे वहां सोवियत रूस अपनी उपस्थिति दर्ज न कराए. रूस ने भी अंटार्कटिक क्षेत्र में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी. इन दो महाशक्तियों के वहां पहुंचने से इस बात की आशंका बढ़ने लगी कि अंटार्कटिक शीत युद्ध में एक नया मोहरा बन सकता है. 

विभिन्न कूटनीतिज्ञों ने इस आशंका से बचने और अंटार्कटिका को एक सैन्य मुक्त इलाके के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से एक संधि का मसौदा तैयार किया. इस मसौदे में वहां भविष्य के क्षेत्रीय दावों को खारिज करने की बात भी शामिल थी. 1 दिसंबर, 1959 को इस संधि पर 12 देशों ने हस्ताक्षर किए. उनमें वो सात मूल देश - अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, चिली, फ्रांस, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका तो शामिल थे ही. उनके अलावा नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम, जापान और सोवियत रूस भी थे. 

1961 में यह संधि अमल में आई. मौजूदा समय में इसमें 56 देश शामिल हैं. 1983 में भारत इसमें शामिल हुआ था. इस संधि ने अंटार्कटिका को 'नो मैन्स लैंड' के रूप में नामित किया था. इसके अलावा उसे अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की सीमा से भी बाहर रखा गया था. इस संधि की कुछ और प्रमुख बातें थीं. मसलन,

- अंटार्कटिका का इस्तेमाल केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाएगा. किसी भी हालत में यहां सैन्यीकरण या फिर सैन्य ठिकानों की अनुमति नहीं दी जाएगी. 

- जितने भी हस्ताक्षरकर्ता देश हैं उन सभी को ये आजादी है कि वे यहां वैज्ञानिक अनुसंधान कर सकते हैं. वैज्ञानिक कार्यक्रमों के लिए योजनाएं साझा कर सकते हैं. सूचनाएं और आंकड़े साझा कर सकते हैं जो उन्होंने इकट्ठा किए हैं. 

- अंटार्कटिका के किसी हिस्से में परमाणु हथियारों की टेस्टिंग या फिर रेडियोएक्टिव कचरों के निस्तारण की अनुमति नहीं होगी. 

मौजूदा समय में यही संधि अंटार्कटिका में सभी शासन संबंधी गतिविधियों का आधार बनी हुई है. 1983 में इसमें शामिल होने के बाद भारत उस संधि का सलाहकार सदस्य बना हुआ है. अपनी इस भूमिका में भारत अंटार्कटिक से जुड़े उन सभी प्रमुख मसलों पर न सिर्फ वोट करता है, बल्कि निर्णायक प्रक्रियाओं में भी हिस्सा लेता है. कुल 56 में से सिर्फ 29 देशों के पास ही सलाहकार सदस्य का रुतबा हासिल है. 

भारत ने 1981 में पहली बार अंटार्कटिक क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान की शुरुआत की. उसने 'दक्षिण गंगोत्री' नाम से पहला अंटार्कटिक रिसर्च स्टेशन 1983 में स्थापित किया. यह क्वीन मॉड लैंड में स्थित था जो दक्षिणी ध्रुव से कमोबेश 2500 किलोमीटर दूर था. यह स्टेशन 1990 तक संचालन में रहा. दक्षिण गंगोत्री के छह साल बाद 1989 में भारत ने अपना दूसरा अंटार्कटिक रिसर्च स्टेशन स्थापित किया. इसका नाम 'मैत्री' रखा गया. यह शिरमाचेर नखलिस्तान (ओएसिस) में स्थित था. शिरमाचेर एक तीन किलोमीटर चौड़ा बर्फ-मुक्त पठार है जहां 100 से अधिक मीठे पानी की झीलें हैं. 

अंटार्कटिक पर मौजूद भारतीय रिसर्च स्टेशन
अंटार्कटिक पर मौजूद भारतीय रिसर्च स्टेशन

मैत्री स्टेशन अभी तक प्रयोग में है. यह रूस के नोवोलजारेस्काया स्टेशन से महज पांच किमी की दूरी पर है जबकि दक्षिण गंगोत्री से इसकी दूरी 90 किमी है. राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केन्द्र के मुताबिक गर्मियों में इस स्टेशन पर 65 लोग रह सकते हैं जबकि सर्दी के मौसम में केवल 25 लोगों के रहने की व्यवस्था है. साल 2012 में भारत ने अपना तीसरा अंटार्कटिक रिसर्च स्टेशन शुरू किया जिसका नाम 'भारती' था. प्रिड्ज बे तट पर स्थित यह स्टेशन मैत्री से करीब 3000 किमी पूर्व में स्थित है. 

हालांकि यह स्टेशन समुद्र विज्ञान और भूवैज्ञानिक अध्ययन पर केंद्रित है. लेकिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इसका उपयोग भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह (आईआरएस) डेटा प्राप्त करने के लिए करता है. गर्मियों में इस स्टेशन पर जहां 72 लोग रह सकते हैं वहीं सर्दी में ये संख्या घटकर 47 रह जाती है. अब भारत यहां एक और रिसर्च स्टेशन खोलने पर विचार कर रहा है जिसका नाम मैत्री - 2 होगा. इसे पुरानी मैत्री से महज कुछ ही किमी की दूरी पर बनाने की योजना की जा रही है. संभावना है कि यह 2029 तक काम करना शुरू कर देगा.

ATCM की जो मौजूदा बैठक हो रही है और उसमें जिन मुद्दों पर विचार किया जाना है, आइए अब उसे समझते हैं. दरअसल, ATCM का उद्देश्य कानून, रसद, शासन, विज्ञान, पर्यटन के साथ-साथ इस दक्षिणी महाद्वीप के अन्य पहलुओं पर वैश्विक बातचीत की सुविधा प्रदान करना है. बैठक के दौरान भारत अंटार्कटिका में शांतिपूर्ण शासन के विचार को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा. साथ ही, इस बात को भी रेखांकित करेगा कि दुनिया में कहीं और भू-राजनीतिक तनाव का असर अंटार्कटिक महाद्वीप और उसके संसाधनों की सुरक्षा में नहीं पड़ना चाहिए. 

भारत इस महाद्वीप पर पर्यटन को रेगुलेट करने के लिए भी कई बार आवाज उठाता रहा है. इस बार अध्यक्षता भारत के पास है तो इस सिलसिले में वो एक नया कदम उठा रहा है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम रविचंद्रन ने बताया कि भारत इस महाद्वीप पर पर्यटन को रेगुलेट करने के लिए एक नया कार्य समूह इंट्रोड्यूस कर रहा है. 

रविचंद्रन बताते हैं, "चूंकि भारत ने 2016 से ही अंटार्कटिका पर पर्यटन संबंधी गतिविधियों को लेकर कई बार चिंता जताई है. यह पहली बार है जब इसके रेगुलेशन के लिए समर्पित एक वर्किंग ग्रुप काम करेगा. वो पर्यटकों की गतिविधियों को ट्रैक करेंगे और उसके हिसाब से नियमों को लागू करेंगे." नीदरलैंड, नॉर्वे के अलावा और कुछ और पश्चिमी देश, जो भारत के इस प्रस्ताव के साथ खड़े हैं, वे भी इस वर्किंग ग्रुप का हिस्सा होंगे. 

कोच्चि बैठक में भारत आधिकारिक तौर पर मैत्री-2 के निर्माण का प्रस्ताव भी इसके सदस्य देशों के सामने रखेगा. क्योंकि अंटार्कटिका में कुछ भी नया निर्माण करने या पहल शुरू करने के पहले ATCM की मंजूरी की जरूरत होती है.

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