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AI भारत में रेलवे की नौकरियां खाएगा! 'वंदे भारत' बनाने वाली कंपनी के चीफ का क्या है कहना?

भारत के मेट्रो रेल को विस्तार दे रही दिग्गज मास-मोबिलिटी कंपनी एल्सटॉम के सीईओ हेनरी पॉपर्ट-लफार्ज के साथ एक खास बातचीत

एल्सटॉम के सीईओ हेनरी पॉपर्ट-लफार्ज
अपडेटेड 30 जुलाई , 2025

क्या आने वाले समय में ट्रेनों और मेट्रो रेल दोनों का संचालन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के हाथ में होगा और वह तमाम लोगों की नौकरियां खा जाएगा? अच्छा लगे या खराब लेकिन यह सवाल वैश्विक स्तर पर मास-मोबिलिटी क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है. 

इस पर पेरिस स्थित एल्सटॉम के सीईओ हेनरी पॉपर्ट-लफार्ज से बेहतर राय शायद ही कोई दे सकता हो. एल्सटॉम दुनिया की सबसे बड़ी स्वतंत्र मास-मोबिलिटी कंपनी है जिसने भारत में मेट्रो रेल के विस्तार में अहम भूमिका निभाई है.

पॉपर्ट-लफार्ज ने भारत की अपनी हालिया यात्रा के दौरान एक विशेष इंटरव्यू में इंडिया टुडे को बताया, “AI (मास मोबिलिटी में) आंतरिक और बाहरी दोनों ही स्तर, और इससे भी आगे अपनी पैठ बढ़ा सकता है.”

उन्होंने बताया, “रेलवे की दुनिया में एक सवाल पर खासी बहस होती है कि ट्रेन चलाने के लिए आप AI पर कितना भरोसा कर सकते हैं. और, फ्रांस या जर्मनी आदि में इसका जवाब अलग-अलग है.”

बात सीधी-सी यह है कि संसाधन आवंटन और संचालन में AI की कितनी भूमिका होगी. पॉपर्ट-लफार्ज ने इसे स्पष्ट करते हुए बताया, “आज, मेट्रो रेल ट्रैफिक को प्रबंधित करने के लिए आपके पास दो मॉडल हैं. आप टाइम टेबल का पालन करते हैं और सभी मेट्रो यह सुनिश्चित करेंगी. यह एक विकल्प है.”

उन्होंने आगे कहा, “दूसरा विकल्प यह है कि चाहे कुछ भी हो जाए, दो मेट्रो ट्रेनों के बीच 90 सेकंड का अंतराल रखा जाए. इसलिए, अगर एक लेट होती है तो आप दूसरी को भी 90 सेकंड के लिए लेट कर दें. अब, AI की बात करें तो मेट्रो रेल नेटवर्क कैमरों के जरिए प्लेटफॉर्म पर लोगों की संख्या देखकर फैसला लिया जा सकता है. यानी मेट्रो ट्रेन तुरंत भेजनी है या थोड़ा इंतज़ार करना है.” वे बताते हैं कि यह एक ट्रेन के बहुत ज्यादा लोगों से भरी होने और दूसरी ट्रेन में बहुत कम लोगों वाली स्थिति से बचाने में कैसे मददगार है. उनके मुताबिक, “अब, आप हर जगह वीडियो कैमरे लगा सकते हैं जो प्लेटफॉर्म पर लोगों की संख्या पर नजर रखेंगे, जिससे ट्रैफिक प्रबंधन संभव होगा.”

हम ऐसे भविष्य से कितनी दूर हैं? इस पर लफार्ज का अनुमान है, “तीन-चार साल.” वैसे, उनकी बात में दम है. आखिरकार, एल्सटॉम ही दिल्ली, चेन्नई, लखनऊ, कोच्चि, मुंबई, कानपुर, इंदौर, भोपाल और आगरा में मेट्रो प्रणालियों के लिए कोच, सिग्नलिंग सिस्टम, दूरसंचार सॉल्यूशन और अन्य घटकों की आपूर्ति कर रही है.

एल्सटॉम वंदे भारत ट्रेन-सेट निर्माण से जुड़ी है, दिल्ली और मेरठ के बीच नमो भारत आरआरटीएस (रीजनल रैपिड ट्रांजिट सर्विस) की निर्माता है. यह बिहार के मधेपुरा स्थित अपने कारखाने में आधुनिक, उच्च-शक्ति वाले मालवाहक इंजन निर्माण करने में भारतीय रेलवे की साझेदार भी है.

AI पर किसी भी चर्चा में सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि लोगों की नौकरियों का क्या होगा. क्या इसकी वजह से उद्योग में रोजगार घटेंगे? इस पर पॉपर्ट लफार्ज का जवाब है, “हां भी और नहीं भी. नहीं इसलिए क्योंकि यह अभी अस्तित्व में नहीं है. निश्चित तौर पर आप कह सकते हैं कि स्वचालित मेट्रो में कोई ड्राइवर नहीं होता. लेकिन यह अपेक्षाकृत सीमित ही होता है.”

यूरोप में AI एक समस्या का समाधान कर सकता है. पॉपर्ट लफार्ज के मुताबिक, “यूरोप में ऑपरेटर्स के लिए लोगों की भर्ती करना काफी कठिन होता है. इसलिए, ऊर्जा बचत लचीलेपन आदि के अलावा ऑटोमेशन का एक कारण ड्राइवर उपलब्धता की कमी भी है, जो यूरोप में एक बमुश्किल उपलब्ध संसाधन है.” साथ ही जोड़ा, भारत के मामले में स्थिति एकदम अलग है. “भारत में जनसंख्या बहुत अधिक है, फिर भी ये वो नौकरियां नहीं हैं जिन्हें लोग जीवनभर करना चाहते हों.”

इंटेलिजेंट ऑटोमेशन पर प्रयोग पहले ही शुरू हो चुका है. वे बताते हैं, “फ्रांस में हम प्रति घंटे 13 ट्रेन से बढ़कर प्रति घंटे 16 ट्रेनें चलाने तक पहुंच गए हैं. इस तरह हमारी क्षमता में 25 फीसद की वृद्धि हुई है. रेलवे प्रोजेक्ट्स पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा. पॉपर्ट-लफार्ज ने पूरे उत्साह के साथ बताया, “क्या आप सोच सकते हैं कि यह हाई-स्पीड लाइन की लागत की तुलना में 25 फीसद है? हाई-स्पीड लाइन की कीमत 10, 15, 20 अरब डॉलर तक आती है...ऑटोमेशन में बहुत ज्यादा इसका एक-चौथाई खर्च ही आ सकता है. इसीलिए डिजिटाइजेशन बहुत जरूरी है.”

एल्सटॉम (Alstom) एक 97 वर्ष पुरानी कंपनी है, जिसे पहले Alsthom कहा जाता था. यह भारत में अपने छह यूनिटों के जरिये 12,000 से अधिक लोगों को रोजगार देती है. पांच इंजीनियरिंग केंद्रों के अलावा बेंगलुरु स्थित डिजिटल एक्सपीरियंस सेंटर देश-दुनिया में 120 से अधिक प्रोजेक्ट के लिए विभिन्न स्तरों पर सिग्नलिंग प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास और विभिन्न स्तरों प्रोजेक्ट डिप्लॉमेंट के हब के तौर पर काम करता है.

एल्सटॉम की भारतीय रेलवे की जरूरतें पूरी करने की प्रतिबद्धता पूरी हो जाने के बाद भविष्य में मधेपुरा लोकोमोटिव कारखाने से उच्च क्षमता वाले इलेक्ट्रिक इंजनों का निर्यात भी किया जा सकता है. उन्होंने कहा, “हमारे वैश्विक ट्रैक्शन प्रोपल्शन सेटों का एक तिहाई हिस्सा कोयंबटूर में निर्मित हो रहा है. यह एक विशाल कारखाना है. जब हम भारत में मेट्रो बेचते हैं तो 90 फीसद सामग्री भारतीय होती है, जो ‘मेक इन इंडिया’ की अपेक्षित सीमाओं से कहीं अधिक है.”

क्या भारत के मेट्रो रोलिंग स्टॉक बाजार में एकाधिकार उभर रहा है? इस सवाल पर पॉपर्ट-लफार्ज ने एल्सटॉम के बाजार पर हावी होने का बचाव किया. उन्होंने कहा, “सच कहूं तो कई बहुत अच्छी भारतीय कंपनियां हैं. भारत में कड़ी प्रतिस्पर्धा है, इसलिए मुझे नहीं लगता कि हम किसी भी तरह से एकाधिकार कायम करने वाली स्थिति में हैं.”

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