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गलत इरादे से छूना भी अपराध तो जबरन ब्रेस्ट टच रेप क्यों नहीं? हाईकोर्ट के किस फैसले पर मचा बवाल

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ब्रेस्ट टच और पाजामे के नाड़ा तोड़ने को रेप के आरोप के लिए पर्याप्त सबूत नहीं माना है

रेप के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित फैसला सुनाया है
रेप के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित फैसला सुनाया है
अपडेटेड 20 मार्च , 2025

“स्तनों को पकड़ना, उसके पजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना… बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है.”

यह बात मार्च की 17 तारीख को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राममनोहर नारायण मिश्रा ने एक मामले की सुनवाई के बाद अपने फैसले में कही है. नवंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने गलत नीयत से छूने को भी यौन शोषण का अपराध माना है.

ऐसे में रेप को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर बहस तेज हो गई है. आखिर गलत नीयत से देखना और छूना पॉक्सो के तहत यौन शोषण का अपराध है तो जबरन ब्रेस्ट छूना और पाजामे का नाड़ा तोड़ना, पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना रेप या रेप के प्रयास का अपराध क्यों नहीं? क्या सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट का यह फैसला पलट सकता है? 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिस केस में फैसला सुनाया वो पूरा मामला क्या है?

यह मामला 10 जनवरी 2022 का है. पूजा देवी (बदला हुआ नाम) नाम की महिला शाम के करीब 5 बजे अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज स्थित पटियाली में अपनी ननद के घर से लौट रही थीं. कच्ची सड़क पर पैदल चलते वक्त उन दोनों का सामना आरोपी पवन, आकाश और अशोक से हुआ. वो तीनों दो बाइक से वहां से होकर गुजर रहे थे.

पवन उन दोनों के गांव से ही था. उसने पूजा देवी से कहा कि वह उनकी बेटी को अपनी मोटरसाइकिल से घर तक सुरक्षित छोड़ देगा. पवन की बातों पर भरोसा करते हुए आशा देवी ने अपनी बेटी को उसके साथ जाने दिया.

FIR की कॉपी के मुताबिक, पवन और आकाश ने एक पुलिया के पास मोटरसाइकिल रोकी, जहां उन्होंने गलत नीयत से लड़की का ब्रेस्ट टच किया  और आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया.

इस जोर-जबरदस्ती में नाबालिग बच्ची के पाजामे का नाड़ा टूट गया. वहां से ट्रैक्टर पर गुजर रहे दो गवाहों, सतीश और भूरे ने लड़की की चीखें सुनकर आरोपियों को रोकने की कोशिश की लेकिन, उन्होंने कथित तौर पर देसी पिस्तौल दिखाकर गवाहों को जान से मारने की धमकी दी और फिर वे दोनों घटनास्थल से भाग गए.

बाद में, जब आशा देवी ने आरोपी पवन के पिता अशोक से शिकायत की तो वह कथित तौर पर महिला के साथ दुर्व्यवहार करने लगा. अशोक ने महिला को धमकी दी, जिसके बाद वह पुलिस के पास पहुंची. जब पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की, तो पूजा देवी ने कासगंज के विशेष न्यायाधीश के कोर्ट में आवेदन दायर किया जिसके कारण शिकायत दर्ज की गई.

विशेष न्यायाधीश ने आवेदन को धारा 200 CrPC के तहत शिकायत मानते हुए आशा देवी और गवाह सतीश के बयान क्रमशः धारा 200 और 202 CrPC के तहत दर्ज किए.  23 जून, 2023 को ट्रायल कोर्ट ने इसे POCSO कानून के तहत बलात्कार के प्रयास या यौन उत्पीड़न के प्रयास का मामला मानते हुए, POCSO अधिनियम की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) के साथ धारा 376 को लगाया और इन धाराओं के तहत समन आदेश जारी किया. इसी आदेश को आरोपियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जबरन ब्रेस्ट छूने और पाजामे का नाड़ा तोड़ने को रेप या रेप का प्रयास क्यों नहीं माना?

हाईकोर्ट ने ब्रेस्ट छूने और पाजामे का नाड़ा तोड़ने को रेप या रेप का प्रयास क्यों नहीं माना, इसे फैसला सुनाते वक्त न्यायमूर्ति राममनोहर नारायण मिश्रा की पीठ द्वारा की गई टिप्पणियों से समझने की कोशिश करते हैं. ​​​​​​

न्यायमूर्ति राममनोहर नारायण मिश्रा ने आरोपियों की याचिका को आंशिक तौर पर स्वीकार करते हुए कहा, "आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ लगाए गए आरोप और तथ्य देखकर लगता है कि इस मामले में बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं बनते हैं. बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि यह तैयारी के चरण से आगे निकल गया था.”

लाइव लॉ के मुताबिक इसके आगे जज ने कहा, "आकाश के खिलाफ विशेष आरोप यह है कि उसने पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसके पाजामे का नाड़ा तोड़ दिया. गवाहों ने यह भी नहीं बताया कि आरोपी के इस कृत्य के कारण पीड़िता नग्न हो गई या उसके कपड़े उतर गए. ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता के साथ पेनिट्रेशन किया या करने की कोशिश की."

इसके साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी पर रेप या रेप के प्रयास के बजाय दो मामूली धाराओं में केस दर्ज करने के आदेश दिए. इनमें एक IPC की धारा 354-बी  (कपड़े उतारने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और पोक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाया जाए.

क्या सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को पलट सकता है?

हां, सुप्रीम कोर्ट के साल 2021 के एक फैसले को देखें तो इस बात की पूरी संभावना है. तब भी सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक ऐसे ही फैसले को रद्द कर दिया था. दरअसल, 19 जनवरी 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने अपने आदेश में कहा था, “ब्रेस्ट को कपड़े के ऊपर से सिर्फ छूने भर को यौन हमला नहीं कहा जा सकता.”

जस्टिस गनेडीवाला ने सेशन कोर्ट के फैसले में संशोधन करते हुए दोषी को पॉक्सो एक्ट के तहत दी गई सजा से बरी कर दिया था, जबकि IPC की धारा 354 के तहत सुनाई गई एक साल की कैद को बरकरार रखा था.

जनवरी में ही इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था, “इस फैसले के लिहाज से तो कोई ग्लव्स पहनकर किसी महिला के शरीर पर हाथ फेर सकता है, लेकिन उसे यौन शोषण का आरोपी नहीं माना जाएगा.”

27 जनवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी थी. रोक लगाते हुए कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के फैसले खतरनाक उदाहरण कायम करेंगे, इसलिए इसे बदल देना चाहिए. अब ये बदल दिया गया है.

10 महीने बाद नवंबर 2021 में इसी मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ ने कहा, “खराब नीयत ही जुर्म का आधार है और इसे पॉक्सो एक्ट का मामला माना जाएगा. अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे को टच करना यौन शोषण नहीं है. ऐसी परिभाषा बच्चों को शोषण से बचाने के लिए बने पॉक्सो एक्ट के मकसद को ही खत्म कर देगी.”

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी हुए आरोपी को भी दोषी ठहराया. आरोपी को पॉक्सो एक्ट के तहत तीन साल की सजा दी गई है. सर्वोच्च अदालत ने साफ किया था कि POCSO अधिनियम के तहत यौन शोषण के आरोप के लिए ‘स्किन टू स्किन’ टच होना ही जरूरी नहीं है. 
 

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