हर बार बड़े हादसों के बाद मारे गए लोगों की कहानियां सामने आती हैं और लोगों को दुख से भर देती हैं. फिर कुछ वे कहानियां भी होती हैं जिनमें लोग चमत्कारिक रूप से बच जाते हैं और जो लोगों में ईश्वरीय आस्था बढ़ा देती हैं. इनके बीच कभी-कभार ही ऐसी कहानियां सुनने को मिलती हैं जो प्यार और साहस की मिसाल बनती हैं. अहमदाबाद विमान हादसे के बाद अब एक ऐसी कहानी सामने आई है.
12 जून को अहमदाबाद के बीजे मेडिकल कॉलेज के आवासीय क्वार्टर पर एयर इंडिया के IC171 विमान के गिरने और हादसे में 260 लोगों की मौत हुई थी. इस दौरान मनीषा कछाड़िया ने जान पर खेलते हुए अपने आठ महीने के बेटे ध्यांश को आग की लपटों से बचाया था. भीषण आग और घने धुएं के बावजूद इस मां का पूरा ध्यान सिर्फ अपने नवजात बेटे को बचाने पर था. यह बच्चा उस हवाई दुर्घटना में जीवित बचे लोगों में सबसे कम उम्र का सर्वाइवर है.
हादसे के दौरान मां-बेटे बुरी तरह झुलस गए थे. मनीषा ने उस दिन न केवल ध्यांश को बचाया, बल्कि बाद में इलाज के दौरान बच्चे के जख्म ठीक करने के लिए उनकी स्किन का भी इस्तेमाल हुआ. अहमदाबाद में बोइंग 787-8 दुर्घटना में जीवित बचे लोगों की एक मर्मस्पर्शी दास्तां के दोनों किरदारों मनीषा और ध्यांश को पिछले सप्ताह अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
ध्यांश बीजे मेडिकल कॉलेज में यूरोलॉजी में सुपर-स्पेशलिटी एमसीएच के छात्र कपिल कछाड़िया और मनीषा का बेटा है. 12 जून को जब विमान उनके हॉस्टल पर गिरा हुआ, तब कपिल अस्पताल में ड्यूटी पर थे. कपिल ने पीटीआई को बताया कि जब विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ, तो मनीषा को भी जख्म आए लेकिन उसने अपने बेटे को बचाने पर पूरा जोर लगाया.
मनीषा ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, "एक पल के लिए चारों ओर अंधेरा छा गया और फिर हमारे घर में लपट फैल गई." उस भयावह माहौल में उसने अपने बेटे को उठाया और भागी. गहरे धुंए और लपटों के कारण कुछ भी देख पाना मुमकिन नहीं था और लपटों ने मां-बेटे को गंभीर रूप से झुलसा दिया. मनीषा ने बताया, "एक पल ऐसा भी लगा कि हम दोनों बच नहीं पाएंगे. लेकिन बच्चे की खातिर मैंने पूरी कोशिश की. हम दोनों बहुत तकलीफ में थे जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता."
मनीषा 25 फीसद जली थीं और उनका चेहरा व हाथ झुलसे थे. ध्यांश 30 फीसदी जला था और उसका पूरा चेहरा, दोनों हाथ, छाती और पेट जल गया था.
दोनों को तत्काल ही केडी अस्पताल लाया गया जहां ध्यांश को फौरन शिशु सघन चिकित्सा इकाई (पीआइसीचू) में भर्ती किया गया. शिशु को सांस लेने के लिए वेंटिलेटर के अलावा तरल, ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत थी. उसके जख्मों के लिए खास देखभाल की बहुत जरूरत थी.
डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे का इलाज उसकी उम्र के कारण थोड़ा जटिल था. उसके इलाज का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि घावों को भरने के लिए त्वचा प्रत्यारोपण की आवश्यकता थी और ऐसे में उसकी मां ने अपनी त्वचा दी. मनीषा अपने बेटे को अपनी त्वचा दान कर, सचमुच, एक बार फिर उसकी ढाल बन गई. केडी अस्पताल के प्रबंध निदेशक डॉ. अदित देसाई ने इस मामले को बेहद मार्मिक बताया.
देसाई ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, "यह दिल छू लेने वाला था क्योंकि मां ने अपने बच्चे को बचाने के लिए सहज साहस दिखाया. चिकित्सा के दृष्टिकोण से, हर विभाग ने मिलकर हरसंभव बेहतर परिणाम सुनिश्चित किया."
उन्होंने कहा कि अस्पताल ने एआई 171 विमान हादसे के शिकार छह घायलों का मुफ्त इलाज किया. प्लास्टिक सर्जन डॉ. रुत्विज पारिख ने बताया कि कैसे मेडिकल टीम ने बच्चे घावों का बेहद सावधानी से इलाज किया. उन्होंने बताया, "बच्चे की अपनी त्वचा और उसकी मां की त्वचा के स्किन ग्राफ्ट का इस्तेमाल जले वाले स्थानों के इलाज के लिए किया गया था. बच्चे की उम्र सबसे नाजुक वजह थी. हमें यह सुनिश्चित करना था कि घाव संक्रमित न हों और उसका विकास सामान्य रहे. बच्चे और मां की हालत में सुधार संतोषजनक रहा है."
चोट के कारण फेफड़ों के एक तरफ खून का प्रवाह बढ़ने से बच्चे की हालत और पेचीदा हो गई थी. डॉ. स्नेहल पटेल ने कहा, "उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था और फेफड़ों के पूरी तरह से विकसित होने तक एक इंटरकोस्टल ड्रेनेज ट्यूब डाली गई थी." पांच सप्ताह के गहन उपचार और देखभाल के बाद, मनीषा और ध्यांश दोनों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है.