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प्रधान संपादक की कलम से

बहरहाल, खेल में पहले बाजी मारना भारतीय हितों को सुरक्षित करने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. मोदी ने यूं ही इतनी सक्रियता के साथ दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाया है. यह सहयोग मुख्यत: चार स्तंभों पर टिका है—व्यापार, ऊर्जा, प्रवासन और रक्षा

इंडिया टुडे कवर : दुस्साहसी सौदा
इंडिया टुडे कवर : दुस्साहसी सौदा
अपडेटेड 9 अप्रैल , 2025

—अरुण पुरी

डोनाल्ड ट्रंप को एक अति-सक्रिय राष्ट्रपति कहें तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. वे 20 जनवरी को शपथग्रहण के बाद से अब तक 70 कार्यकारी आदेश जारी कर चुके हैं और यह सिलसिला अभी थमने वाला नहीं है. इनमें से अधिकतर महत्वपूर्ण आदेश उस विश्व व्यवस्था को बदलने के इरादे से लाए गए जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से चली आ रही है. अपने अप्रत्याशित स्वभाव के अनुरूप उन्होंने कई विरोधाभासी कदम उठाए.

मसलन, पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हट गए, अमेरिका को डब्ल्यूएचओ जैसे महत्वपूर्ण वैश्विक मंच से बाहर कर लिया. यूरोप को दरकिनार करने वाला रुख अपनाना जारी रखा और पारस्परिक शुल्क लगाने के अपने जुनून को पूरा करने के लिए डब्ल्यूटीओ को निरर्थक बना रहे हैं. ग्रीनलैंड, गजा और पनामा नहर कब्जाने की उनकी ललक और कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने संबंधी टिप्पणी दर्शाती है कि वे विस्तारवाद की मुखर आवाज बन रहे हैं.

लेकिन व्यापार मोर्चे पर ट्रंप का रवैया कुछ ज्यादा ही अजीबो-गरीब है. वैसे देखा जाए तो 2024 में अमेरिका का व्यापार घाटा बढ़कर 918.4 अरब डॉलर हो गया था. और, वे इसे कम करके आर्थिक मोर्चे पर 'अमेरिका को फिर महान बनाने' का इरादा रखते हैं और यही उनके मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य भी है.

बहरहाल, अमेरिका के साथ अपने सकारात्मक व्यापार संतुलन—जो 2024 तक बढ़कर 45.7 अरब डॉलर हो गया—के मद्देनजर भारत की चिंताएं बढ़ना लाजिमी है. लेकिन थोड़ी सावधानी बरती जाए तो तूफान के बीच उम्मीद की ऐसी धाराएं भी मौजूद हैं जो भंवर में फंसी कश्ती निकाल सकती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 12-13 फरवरी की यात्रा के साथ भारत ने पूरी तरह सोच-समझकर जो कदम आगे बढ़ाया, उसने आपदा में नए अवसर की राह तैयार कर दी.

हम एकदम नए द्विपक्षीय करार में सफल रहे, जो ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में इस तरह का पहला हस्ताक्षर है. इसे नाम दिया गया '21वीं सदी के लिए अमेरिका-भारत कॉम्पैक्ट' जो असल में सैन्य साझेदारी, वाणिज्य और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अवसरों को पूरी तीव्रता से आगे बढ़ाने का संक्षिप्त रूपांतरण है. दायरा इतना व्यापक है कि हम इसे एक साहसिक नया सौदा कह सकते हैं.

निस्संदेह, यह जोखिम भरा है और कई चेतावनियों को जन्म देता है. रूजवेल्ट सिद्धांत के विपरीत ट्रंप से नरमी की कोई उम्मीद नहीं रखी जा सकती, जो लगातार कड़े कदम उठाने की बात कर रहे हैं. हालांकि, उनके एकदम अप्रत्याशित और हैरान कर देने वाले कदम उठाने, बढ़ा-चढ़ाकर दावे करने और कई बार सुरों में घुली मिठास को दूसरे पक्ष के साथ सौदेबाजी में भारी पड़ने की कोशिश माना जाता है; आखिर में भले चीन और रूस अच्छी सौदेबाजी कर लें.

बहरहाल, खेल में पहले बाजी मारना भारतीय हितों को सुरक्षित करने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. मोदी ने यूं ही इतनी सक्रियता के साथ दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाया है. यह सहयोग मुख्यत: चार स्तंभों पर टिका है—व्यापार, ऊर्जा, प्रवासन और रक्षा. भरोसे का स्तर दर्शाने के लिए इस वर्ष के शुरुआती घटनाक्रम ही काफी हैं. हालांकि, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन हमारी तरफ से वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात उसके आयात का महज 2.7 फीसद है.

इसके बावजूद ट्रंप ने भारत को सबसे ज्यादा टैरिफ वाले देशों की सूची में 'शीर्ष पर' रखा. उनका रुख नरम बनाए रखने की कोशिश में भारत ने केंद्रीय बजट में आयात पाबंदियां घटाने की अपने इच्छा जाहिर कर दी, और इसकी शुरुआत हार्ले-डेविडसन और डुकाटी, बॉर्बन व्हिस्की जैसी शो-पीस मानी जाने वाली चीजों के साथ हुई, टेस्ला की इलेक्ट्रिक कारों के लिए अनुकूल माहौल बनाया गया.

फिर, ओवल ऑफिस में दोनों नेताओं की मुलाकात के दौरान भारत ने टैरिफ जैसे जटिल मुद्दे को दरकिनार कर व्यापार संबंधों की मजबूती और विस्तार पर जोर दिया. यही वजह है कि उनमें 2025 की शरद ऋतु तक 'पारस्परिक लाभकारी, बहु-क्षेत्रीय' द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर पहले दौर की बातचीत के लिए सहमति बनी. ट्रंप के टैरिफ वार से होने वाली क्षति से बचने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता था.

हालांकि, इसकी बारीकियों पर माथापच्ची जारी है; और इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता कि हम टैरिफ या क्षेत्र-विशिष्ट व्यवस्थाओं में एक व्यापक पुनर्समायोजन की उम्मीद कर सकते हैं या नहीं. बहरहाल, दोनों नेताओं ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार 500 अरब डॉलर तक बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है. सबसे महत्वपूर्ण भारत का यह वादा है कि वह खाड़ी देशों और रूस के बजाए अमेरिका को अपना तेल और गैस का सबसे बड़ा स्रोत बनाएगा.

भारत ने दायित्व संबंधी उन शर्तों को भी हटा दिया, जो अमेरिकी कंपनियों को यहां परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निवेश से रोकती थीं. अवैध प्रवासियों के मुद्दे ने भी सौदे को और बेहतर बनाया है. बहुप्रचारित निर्वासन, बेड़ियां लगाकर प्रवासियों को लौटाना वैश्विक समझौतों के साथ-साथ स्थानीय भावनाओं के उबाल की सीमाएं परख रहा है. भारत ने अवैध प्रवासियों को स्वीकारने पर सहमति जताते हुए कहा है कि दोनों देश संबंधित नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई करेंगे. लेकिन, इसके बदले में मोदी वैध प्रवासी छात्रों और पेशेवरों की आवाजाही आसान बनाने पर जोर दे रहे हैं.

चार स्तंभों में आखिरी भी कम महत्वपूर्ण नहीं रहा और भारत-अमेरिका ने प्रमुख रक्षा साझेदारी के 10 वर्षीय फ्रेमवर्क पर सहमति जताई. इसके तहत भारत जैवलिन ऐंटी टैंक मिसाइलें, स्ट्राइकर बख्तरबंद वाहन और दुनिया का सबसे महंगा बेहतरीन स्टील्थ फाइटर जेट एफ-35 हासिल कर सकेगा, जो 10 करोड़ डॉलर की कीमत के साथ सबसे महंगा लड़ाकू विमान है. समझौते में भारत के लिए और क्या-क्या होगा, इसे रेखांकित करते हुए पुष्टि की गई कि 'संयुक्त विकास और उत्पादन' किया जाएगा. एक अहम तथ्य यह भी है कि 'प्रौद्योगिकी हस्तांतरण' किया जाएगा.

इस अंक में ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा ने यह विश्लेषण किया है कि कैसे भारत ने भविष्य में काफी कुछ 'पाने' के लिए अभी कुछ 'चुकाना' बेहतर माना. मोदी की दोस्ताना उड़ान ट्रंप को प्रतिद्वंद्विता के बजाए परस्पर लाभ उठाने पर गौर कराने वाली रही. जैसा कि उन्होंने ट्रंप के साथ अपनी संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा, ''आपका आदर्श वाक्य मागा है तो 2047 तक विकसित भारत का हमारा लक्ष्य मिगा (मेक इंडिया ग्रेट अगेन) है...भारत-अमेरिका मिलकर काम करें तो मागा प्लस मिगा एक 'मेगा' साझेदारी बन जाती है.''

इस टिप्पणी में एक उम्मीद और आग्रह दोनों छिपे हैं. हालांकि, यह एक ऐसा क्षण भी साबित हो सकता है, जब चीन के तेजी से उभरने और रूस के अमेरिका के साथ गलबहियां करने के साथ भारत भी अपनी दुविधा से उबर आए और अतीत से सबक लेकर अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को नया आयाम प्रदान करे.

— अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह).

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