''जिनकी हमारी जिंदगी में खास जगह होती है, जिनकी हम परवाह करते हैं, जिनसे हम प्यार करते हैं, उनके लिए खास दिन और तारीखें हमें याद रखने चाहिए.'' लड़की ने समझाया
फिर भी लड़के ने कभी नहीं कहा कि वो कोशिश करेगा.
लड़की ने भी कभी उम्मीद नहीं की कि वो कोशिश कर पाएगा.
तारीख, ऐसा मुद्दा है जिस पर प्रेमी जोड़ों के बीच खट्टी-मीठी झड़प होती ही रहती है.
वैसे तो हर लड़की खुद को बिल्कुल अलहदा मानती है लेकिन इस पूरी की पूरी जमात में एक नहीं कई कॉमन कैरेक्टर होते हैं. जैसे रोमांस के साथ 'एक्स्ट्रा केयर' बिल्कुल उतनी ही प्रिय होती जैसे केक के ऊपर रखी चेरी...
प्यार भरी छोटी-छोटी कहानियों के बीच लेखिका ने 'रोमांटिक एक्सरसाइज' के किस्से को भी कुछ ऐसे सजाया है, जैसे 300 रु. के फोन रिचार्ज पर मिलने वाली 100 मुफ्त फोन कॉल्स.
प्यार और रोमांस के चेप्टर में लिखे गए कुछेक अल्फाज से ज्यादा 'सेक्स' का हिस्सा नहीं होता. और ऑर्गेज्म तो चेप्टर की पंक्तियों के बीच में लिखी ऐसी इबारत होती है जिसे बिना खास नजर के पढ़ा ही नहीं जा सकता. वैसे लड़कियां इस मुद्दे पर खुलकर बोलें तो उन्हें...खैर छोड़िए. प्यार के बीच ऐसी रूढ़िवादी बातें बिल्कुल वैसे ही होती हैं जैसे खीर के बीच कंकड़ आ जाए. इसलिए फिलहाल अभी तो जिंदगी के समंदर के बीच बस नमक की तलाश के सफर का आनंद लेने में ही रस है. इसे किसी वाद-विवाद में पढ़कर नीरस करने वाले मूढ़ ही कहलाएंगे. तो हम कहां थे, 'रॉन्गसाइड' में...अरे नहीं-नहीं. हम गलत रास्ते की बात नहीं कर रहे. हम तो प्रेम रस में डूबी कहानी के शीर्षक का जिक्र कर रहे हैं.
''मैं आज तक कभी इतना रॉन्गसाइड नहीं चली, जितना तुमने मुझे चलवा दिया, न सड़क पर, न जिंदगी में.'' बाइक पर सवार लड़के की बगल में स्कूटी चलाती लड़की ने लड़के को शिकायती मगर शुक्रगुजार होने के लहजे में कहा...और उस वक्त लड़के के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान बिखर गई होगी...हां न...लेखिका ने भाव तो नहीं लिखे...पर हरेक आम लड़की लड़के की इस मुस्कान को बेहद सावधानी से देखती है...ऐसे जैसे उसकी शिकायत सच्ची है. और लड़के की छेड़छाड़ भरी मुस्कान से वह बेपरवाह है....
किताब की सबसे आखिरी कहानी, 'सिर्फ तुम' हर उस प्रेमी युगल की प्रेम का एक ऐसा मोड़ है जिससे हरेक लड़की और लड़के को गुजरना ही होता है.
किताब की लेखिका हिमानी ने जिंदगी में नमक की तरह जरूरी प्रेम के किस्सों को 'अति रेंडम' तरह से कह दिया है....न न बेतरतीब बिल्कुल नहीं. कहने का मतलब है कि बेझिझक, बगैर किसी सिलसिले और निष्कर्ष पर पहुंचने की कशमकश के प्रेम के यह छोटे-छोटे किस्से जिंदगी की जद्दोजहद में दब चुके दिल की धूल झाड़कर उसे धड़कने के लिए मजबूर कर देते हैं.
'जिंदगी को चाहिए नमक' शीर्षक से लिखी गई यह किताब पढ़ते-पढ़ते उस दौर में आपको बरबस खींच ले जाएगी, जहां कभी आपका दिल भी किसी के लिए धड़का था. दफ्तर में जब आपकी नजरें किसी एक को ही तलाश करती थीं. एक बार 'इश्क का नमक' चखने के बाद 'इश्क के इतवार' के इंतजार में पूरा हफ्ता बीता करता था.
संवादों की हड़बड़ी से दूर धड़कनों के उतार-चढ़ाव से भरी इन कहानियों की भाषा न कहीं अटकती है और न कहीं खटकती है.
प्रेम भरे यह किस्से आकाश में टिमटिमाते उन तारों की तरह हैं जो काले बादलों के बीच रोशनी के वजूद को बचाए रखती है. रोशनी यानी उम्मीद. उम्मीद के बिना जिंदगी बेस्वाद होती. कुछ-कुछ नमक की तरह.
किताब का शीर्षक- जिंदगी को चाहिए नमक
लेखिका-हिमानी
मूल्य 125 रु.
प्रकाशक- ऑथर्स प्राइड पब्लिशर प्रा. लि.
हिमानी की यह पहली किताब है. वे अति रेंडम नाम से अपना ब्लॉग और पोएट्रीक्लिनिक.कॉम वेबसाइट भी चलाती हैं.
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