दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों के कई और शहरों में लोगों का दम घुटता रहा और नेता बयानों के ब्रह्मास्त्र चलाते रहे. दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ-साथ सरकारों ने उपायों से ज्यादा बयान देने में तेजी बरती. दिल्ली के मुख्यमंत्री 25 फीसदी प्रदूषण कम होने का दम भरते रहे. उधर केंद्र सरकार की चुप्पी तब टूटी जब पानी सिर से ऊपर चला गया. त्रिलोकपुरी में रहने वाले नियाज खान कहते हैं, ‘‘ सरकारें तो बस सियासत जानती हैं, पर अल्लाह अपने बंदों से कभी मुंह नहीं फेरता. अब तो बस दुआ है, खुलकर धूप निकले या तेज बारिस हो जाए.’’
दरअसल नियाज अपने छह साल के पोते को लेकर मैक्स हास्पिटल में इलाज के लिए पहुंचे थे, जहां डॉक्टर ने बताया कि प्रदूषण की वजह से उनके पोते के सीने में इन्फेक्शन हो गया है और वह सांस नहीं ले पा रहा है. कुल मिलाकर पिछले तीन सालों की तरह इस बार भी बयानों की बौछार के बीच दिल्ली-एनसीआर के लोग सरकार से नहीं बल्कि खुदा से ही तेज बारिस होने या फिर कड़ी धूप निकलने की उम्मीद बांधे रहे.
हर साल की तरह इस बार भी सुप्रीम कोर्ट के सब्र का बांध टूटता दिखा. कोर्ट ने कहा, ‘‘10-15 दिन हर साल यही स्थिति बन जाती है. सभ्य देशों में ऐसा नहीं होना चाहिए.’’ आगे कोर्ट ने कहा, जीने का अधिकार सबसे अहम है, इस तरह से तो हम जी नहीं सकते. सुप्रीम कोर्ट ही नहीं बल्कि सब्र का बांध तो अब लोगों का भी टूटने लगा है. हाहाकार उस वक्त मच गया जब वायु की गुणवत्ता कई बार 999 के आंकड़े को पार कर गई.
यानी खतरे के निशान से बहुत ऊपर. दिल्ली में ‘स्वास्थ्य आपातकाल’ लागू करना पड़ा. पंजाब में लगातार जल रही पराली के मामले में पंजाब कृष सचिव के.एस पन्नू कहते हैं, ‘‘राज्य के करीब 60 फीसदी किसान अब पराली निस्तारण के लिए नई तकनीकी का इस्तेमाल कर रहे हैं. उम्मीद है तीन-चार सालों में वायु प्रदूषण से छुटकारा मिल जाएगा.’’ हालांकि के.एस. पन्नू ने 100 रु. प्रति क्विंटल जो प्रोत्साहन राशि किसानों को देने की मांग केंद्र से की थी वह मान ली गई है. लेकिन डराने वाली बात यह है कि अगले साल भी तीन-चार साल दिल्ली का दम यूं ही घुंटेगा. यह खुद पंजाब कृषि सचिव चिंता जता रहे हैं.
चालू रही सियासी बयानबाजी
राज्य सरकार ने तरकस से निकाले तीखे बयान
-3 नवंबर को दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा अगर केंद्र सरकार प्रदूषण पर गंभीर होती तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविवंद केजरीवाल के पत्र लिखकर साझा बैठक के लिए किए गए आग्रह को यूं अनदेखा न कर देती. अरविंद केजरीवाल ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखे पत्र दिखाकर कहा, प्रदूषण के मुद्दे पर 12, 17 और 19 अक्तूबर को तय हुई बैठकें केंद्रीय मंत्री ने टाल दीं.
-आप नेता राघव चड्ढा ने कहा, यहां तक कि केंद्रीय मंत्रालय की एजेंसी सफर ने भी आंकड़े जारी किए हैं कि 46 फीसदी प्रदूषण पराली जलाने से होता है तो फिर केंद्र ने चुस्ती क्यों नहीं बरती. पराली मुद्दे पर राज्य को नहीं केंद्र को कदम उठाने हैं. चड्ढा ने कहा, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री धृतराष्ट्र की तरह व्यवहार कर रहे हैं. दिल्ली में जहरीली हो रही हवा उन्हें नहीं दिखती.
-दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, पराली निस्तारण के लिए अब तक 63 हजार मशीनें पंजाब और हरियाणा के किसानों को दीं. क्या इतने भर से पराली जलनी खतम हो जाएगी? जबकि दोनों राज्यों में 27 लाख किसान हैं. अगर इतनी सुस्त रफ्तार से मशीने बांटी जाएंगी तो सारे किसानों तक इसे पहुंचाने में केंद्र को लगेंगे 50-60 साल.
-दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रदूषण नामकरण सितंबर में ही कर दिया था. दिल्ली में 25 फीसदी कम हुआ प्रदूषण लेकिन अक्तूबर-नवंबर को होने वाले ‘पराली प्रदूषण’ से निपटने के लिए हमने बनाया प्लान.
-मनीष सिसोदिया भाजपा नेता विजय गोयल के ऑड-ईवन कार्यक्रम का विरोध करने पर भड़के और कहा भाजपा बताएगी कि कब तक पराली जलना बंद करवाएगी?
-दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, केंद्रीय मंत्री जनता को 15,00 करोड़ा रु. दिल्ली सरकार द्वारा विज्ञापन पर खर्च करने की गलत जानकारी दे रहे हैं. हमने महज 40 करोड़ रु. खर्च किए.
भाजपा के बयान बाण
-दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता नलिन कोहली ने ‘ऑड ईवन’ कार योजना पर उठाए सवाल कहा, केवल कार ही क्यों दूसरे वाहनों पर क्यों नहीं लागू हुई यह योजना? दरअसल, आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सड़कों पर भरपूर बसों को उतारने का जो वादा जनता से किया था. वह पूरा नहीं कर पाई. इसलिए वह कारों पर ऑड-इवन योजना लागू कर रस्म अदायगी कर रही है.
-3 नवंबर को भाजपा नेता एवं राज्यसभा सांसद विजय गोयल ने ऑड ईवन योजना फिजूल बताने के लिए 4 नवंबर को आइटीओ में जाकर चालान कटवाया.
-प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, इश्तिहार में खर्च हुए अगर 15,00 करोड़ रु. भी अरविंद केजरीवाल अगर पंजाब-हरियाणा के किसानों को दे देते तो उन्हें पराली निस्तारण में मदद मिल जाती.
किसान को गुनहगार साबित करने की साजिश ने करे सरकारें!
‘‘राज्य हो या केंद्र सभी सरकारों को पता है कि हर साल यह समस्या आनी है तो पूरे साल इस पर गंभीरता से काम किया जाए तो यह नौबत ही नहीं आएगी.’’ पोल्यूशन सेंटर ऑफ साइंस ऐंड एनवायमेंट (सीएसइ) में सीनियर प्रोग्राम मैनेजर एअर पोल्यूशन विवेक चढ्ढा की बात से सहमत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष जगत सिंह कहते हैं, ‘‘ अगर सरकार की मंशा पराली जलने से रोकने की है तो फिर साल की शुरुआत से किसानों को इस बात के लिए तैयार किया जाए कि वे पराली नहीं जलाएंगे.
लेकिन फिर उन्हें विकल्प भी दिए जाएं. सभी किसानों तक मशीने पहुंचाई जाएं. उनके लिए प्रोत्साहन राशि तय की जाए. अक्तूबर में अचानक सरकार जागती है और किसानों पर डंडा बरसाना शुरू कर देती है.’’ हरियाणा में किसान महासंघ के नेता अभिमन्यु कोहार कहते हैं, ‘‘ पिछले साल सरकार ने किसानों के लिए पराली निस्तारण की रोटावेटर मशीन पर 60 फीसदी सब्सिडी तय की. जैसे ही यह घोषणा हुई जो मशीन एक लाख, 5 हजार की मिल रही थी उसकी कीमत एक लाख 75 हजार हो गई. क्या यह सरकार को पता नहीं?’’
सियासत नहीं मंशा और सजगता की जरूरत
सीएसइ में सीनियर प्रोग्राम मैनेजर विवेक चड्ढा कहते हैं, प्रदूषण के इस आपातकाल से निपटने के लिए गंभीरता से योजना बनाने की जरूरत है न कि हंगामा करने की. केंद्र सरकार को ‘‘नेशनल ग्रीन एअर प्रोग्राम’’ को गंभीरता से लेने की जरूरत है. इसमें देश के 122 शहरों की वायु स्वच्छ करने की योजना है. एक साल बीतने को है लेकिन यह कार्यक्रम अभी कहां पहुंचा किसी को कोई खबर नहीं.’’ चड्ढा कहते हैं, अगर यह कार्यक्रम ठीक से लागू हो जाए तो फिर सर्दी के मौसम में वायु प्रदूषण की वजह से लगने वाले आपातकाल को झेलना नहीं पड़ेगा. लेकिन अगर केवल दिल्ली और एनसीआर के वायु प्रदूषण को ही खत्म करने की बात करें तो भी पूरे साल का प्लान राज्य और केंद्र सरकारों को बनाना चाहिए.
दिल्ली सरकार ने नहीं उठाए यह कदम
-दिल्ली का सार्वजनिक यातायात तंत्र बेहद कमजोर है. दिल्ली सरकार ने सत्ता में आते ही यह घोषणा भी की थी कि वह सड़कों पर बसों की संख्या बढ़ाएगी. ऐसा कर सरकार निजी वाहनों पर लगाम लगा सकती थी. लेकिन अपने वादे की तरफ सरकार एक कदम भी नहीं बढ़ी.
-दिल्ली एनसीआर में निर्माण कार्य हमेशा होता रहता है. मैट्रो को छोड़ दें तो किसी भी निर्माण कार्य के दौरान वेस्ट मैनेजमेंट की कोई योजना नहीं बनाई जाती. अचानक से सर्दियों में निर्माण कार्य बंद करने की जगह निर्माण कार्य करने वाली कंपनियों से वेस्ट मैनेजमेंट का खाका सरकार को मांगना चाहिए.
-औद्योगिक कचरा एक बड़ा मुद्दा है. लेकिन सरकार इस तरफ भी महज दो महीने ही ध्यान देती है. यहां ऐसी न जाने कितनी कंपनियां हैं जिनके पास कचरा निस्तारण की कोई योजना नहीं है.
-कूड़े का पहाड़ तो दिल्ली-एनसीआर की पहचान ही बन चुका है. लेकिन इस तरफ भी हमारा ध्यान नहीं जाता.
पंजाब-हरियाणा की सरकारें भी सुस्त
-किसानों के अनुपात में मशीने पहुत कम हैं. उस पर भी बिना प्रशिक्षण पाए किसान मशीनों से पराली निस्तारण से कतराते हैं. पूरे साल प्रशिक्षण शिविर लगाने की जरूरत.
-सवाल यह उठता है कि पंजाब का किसान दिल्ली के प्रदूषण के बारे में क्यों सोचे? ऐसे में प्रोत्साहन राशि किसानों को प्रेरित कर सकती है.
-पराली से खाद बनाने के लिए एक योजना बनानी चाहिए.
-कई राज्यों में पराली से घरेलू ईंधन बनाया जाता है. तो पंजाब-हरियाणा के किसानों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए.
-पराली का इस्तेमाल चारे के रूप में कैसे हो? सरकार इसके लिए भी योजना तैयार कर सकती है.
-पावर प्लांट में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है. अभिशाप बनी पराली वरदान बन सकती है. बस सरकार थोड़ी सजग हो जाए.
‘‘ वाकई वायु प्रदूषण से हमेशा के लिए हमें छुटकारा पाना है तो जमीनी और दूरगामी योजनाएं बनानी होंगी. कोयला और दूसरे प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले ईंधन से प्राकृतिक गैस या फिर बिजली से जलने वाले चूल्हों की तरफ हमें रुख करने की जरूरत है. कार की जगह सार्वजनिक यातायात से यात्रा करने की आदत डालनी होगी. सरकारें ईंधन और पब्लिक यातायात को सस्ता, सहज बनाए और सुविधाजनक बनाए.’’
सुनीता नारायण, डायरेक्टर, सीएसइ
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