दुनियाभर में अहिंसा के ब्रांड एंबेस्डर बन चुके महात्मा गांधी के चरखे पर मनोवैज्ञानिकों की नजर पड़ गई है. सत्य के प्रयोग करने वाले महात्मा के चरखे पर मनोवैज्ञानिक प्रयोग शुरू हो चुके हैं. हालांकि अभी यह प्रयोग बेहद शुरुआती दौर में हैं. लेकिन शुरुआती प्रयोग में जो नतीजे आए हैं वे उत्साह बढ़ाने वाले हैं. दरअसल गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की निगरानी में ब्रेन बिहेवियर रिसर्च फाउंडेसन ऑफ इंडिया नाम की संस्था ने चरखे पर एक प्रयोग किया है. हालांकि अभी यह शोध सीमित समय में सीमित सैंपल के साथ किया गया है. लेकिन इस शोध नतीजों की रिपोर्ट का विश्लेषण करने वाली डॉ. मीना मिश्रा कहती हैं, ''नियमित चरखा चलाने वाले समूह में कन्संट्रेशन (एकाग्रता), प्रोसेसिंग स्पीड (इंस्ट्रक्शन समझकर उस पर प्रतिक्रिया करने की रफ्तार) और अटेंशन (ध्यान) का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया. ये तीनों ही इंटेलिजेंस क्वेशेंट (आइक्यू) यानी बुद्धि नापने के लिए तैयार किए गए स्कोर को बताते हैं. शोध विश्लेषण में पाया गया कि चरखा चलाने से (आइक्यू) बढ़ती है.''
गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति (जीएसडीएस) के डायरेक्टर दीपांकर श्री ज्ञान ने भी इस बात की पुष्टि की. उन्होंने बताया रिपोर्ट उन्हें मिल चुकी है. रिपोर्ट के नतीजे भी सकारात्मक आए हैं. अब यह रिपोर्ट कुछ विशेषज्ञों के पास भेजी जाएगी. वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) से भी इस रिपोर्ट के नतीजों को लेकर संपर्क करने की योजना है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा, शोध नतीजों पर विशेषज्ञों से राय लेने के बाद ही चरखे पर बड़े स्तर पर काम करने की योजना तैयार की जाएगी. दरअसल भारत सरकार के सांस्कृति मंत्रालय के तहत काम करने वाले गांधी स्मृति एवं दर्शन की तरफ से ब्रेन विहेवियर रिसर्च फाउंडेसन के संस्थापक आलोक मिश्रा को इस प्रोजेक्ट के लिए पायलट स्टडी करने का जिम्मा सौंपा गया था.
सूत्रों की मानें तो अगर विशेषज्ञों से इस प्रोजेक्ट को लेकर हरी झंडी मिलती है तो भविष्य में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति चरखे को लेकर बड़े स्तर पर प्रयोग करने के बाद स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने की सलाह देने की तैयारी कर रहा है. वैसे भी महात्मा के महत्व पर देश की मौजूदा सरकार बेहद सजग नजर आ रही है. महात्मा गांधी और स्वच्छता मिशन को एक दूसरे का पर्याय पहले ही यह सरकार बना चुकी है. कहीं भारत सरकार चरखे को स्कूलों से होते हुए घर-घर तक पहुंचाने की तैयारी तो नहीं कर रही? वैसे बापू के ज्ञान को व्यवहारिक बनाने की कोशिशें काबिल-ए-तारीफ हैं.
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