''अटल जी का वह हतप्रभ सा चेहरा मुझे आज भी याद आता है. मैं भूल नहीं सकती''. गायिका और संगीत रचनाकार डॉ. मधुरलता भटनागर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से हुई अपनी मुलाकात के बारे में बताते-बताते खिलखिला उठती हैं.
वे कहती हैं, ''मैंने जब अटल जी को उनकी कविता 'जंग न हम होने देंगे' के अंग्रेजी अनुवाद 'वी विल नॉट लेट वॉर ब्रेकआउट' का ऑडियो सौंपा तो वे बिल्कुल हतप्रभ रह गए. और ऑडियो देखते ही बोल पड़े आखिर तुमने यह भी कर दिया.''
इस सवाल पर कि आखिर पूर्व प्रधानमंत्री की यही कविता क्यों चुनी तो डॉ. लता कहती हैं, ''बिल्कुल यही सवाल अटल जी ने भी पूछा था.'' फिर वे वही जवाब देती हैं जो उन्होंने अटल जी को दिया था, ''भारत ही नहीं दुनियाभर में इतनी उथल-पुथल चल रही है कि शांति का संदेश देने की जरूरत है. इसीलिए 'जंग न हम होने देंगे' शीर्षक को मैंने न केवल हिंदी में स्वर देने की कोशिश की बल्कि अंग्रेजी में भी इसका तर्जुमा किया.''
मधुरलता जी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से अगस्त 1997 में हुई पहली मुलाकात का जिक्र करते हुए कहती हैं, ''मुझे तो यकीन ही नहीं था कि अटल जी मुझे इतनी आसानी से मिलने के लिए बुला लेंगे. उनकी सहजता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मैंने उनके पीएस शिव कुमार जी को फोन किया और उनसे अटल जी से मिलने का आग्रह किया. मैंने कहा, दरअसल मैंने उनकी कविताओं को गानों में ढाला और अपनी आवाज में रिकार्ड किया है. इस रिकॉर्ड को ‘मैं जंग न होने देंगे’ के शीर्षक से रीलिज करना चाहती हूं.टट
''मेरा इतना कहना था कि शिव कुमार जी ने फोन अटल जी को पकड़ा दिया. अचानक अटल जी की आवाज सुनकर मैं थोड़ा अचकचा गई. लेकिन फिर संभल का बोला कि मैं आपसे मिलना चाहती हूं. किसी को भी यकीन नहीं होगा कि अटल जी इतनी आसानी से मान गए. उसी दिन शाम चार बजे अपने आवास पर मिलने के लिए बुला लिया. मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं खुश हूं या आश्चर्यचकित! एक ही फोन पर अटल जी मुझसे मिलने को राजी हो गए.''
डॉ. भटनागर उनके घर पहुंचीं. वे बताती हैं, ''बिना इंतजार करवाए अटल जी मुझसे मिले. उनकी पहली प्रतिक्रिया थी, 'आपने तो मुझे गीतकार बना दिया.'
फिर थोड़ा रुके और हंसते हुए कहा, 'आप घाटे का सौदा कर रही हैं, कौन खरीदेगा यह कैसेट, कौन सुनेगा यह गीत'. डॉ. भटनागर बताती हैं, ''मैंने कहा, कुछ चीजें सौदे से परे होती हैं. नफा-नुक्सान तो व्यापारी देखते हैं.''
''मैं तो कलाकार हूं. और आपकी कविता अनमोल है. अटल जी शांति के साथ सुनते रहे.
फिर वे हंसते हुए बोले ठीक है अगर तुम नुक्सान उठाने के लिए राजी हो तो मैं क्या कर सकता हूं.''
डॉ. भटनागर कहती हैं, ''वे 6 अगस्त 1998 में बिल्कुल टाइम पर दिल्ली के रशियन सेंटर ऑफ साइंस ऐंड कल्चर में पहुंचे. और ऑ़डियो रिकॉर्ड का विमोचन किया. फिर तो मेरा मन इतना बढ़ा कि मैंने 1999 में कारगिल युद्ध जीतने के बाद अटल जी की कविताओं पर एक और ऑडियो उन्हीं की कविता के मुखड़े के शीर्षक 'भारत का मस्तक कभी नहीं झुकेगा' रिलीज किया.''
वे बताती हैं, ''अटल जी से हुई एक और मुलाकात मुझे बार-बार याद आती है, और यह एहसास दिलाती है कि अटल बिहारी वाजपेयी क्यों अलहदा थे? 2002 की बात है मैं लखनऊ में एक कार्यक्रम में थी, उस प्रोग्राम में अटल जी आए थे.''
''जाने कैसे भीड़ के बीच में उन्होंने मुझे पहचान लिया और सबके बीच में हंसते हुए कहा, 'अरे ये दिल्ली वाले लखनऊ कैसे आ गए'. मैं अचंभित थी हो गई.'' वे कहती हैं, ''शायद ये अटल जी का कवि मन ही था जिसने उन्हें इतनी सहजत और विनम्र बनाया था.''
डॉ. मधुरलता जी की अब तक 11 आडियो रिलीज हो चुके हैं. इसके अलाव भारतीय संगीत पर कई किताबें भी प्रकाशित हुई हैं.
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