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आखिर हम क्यों किसी बाबा के भ्रमजाल में फंसते हैं?

आसाराम, राम रहीम, राधे मां जैसे हाइ प्रोफाइल बाबाओं और मांओं की कहानियां तो मीडिया में सामने आ भी जाती हैं पर छोटे शहरों में बाबा भुड़ुकनाथ जैसे न जाने कितने बाबा आस्था के नाम पर खुलेआम व्यापार कर रहे हैं.

राम रहीम और आसाराम
राम रहीम और आसाराम
अपडेटेड 30 अप्रैल , 2018

फैजाबाद के एक छोटे से गांव कुसमाह में अप्रैल, 2013 में मेरी मुलाकात भुड़ुकनाथ बाबा से हुई. कोई  22-23 वर्षीय बाबा के दरबार में सैकड़ों लोग सिर झुकाए खड़े थे. कोई मुर्गी तो कोई अपनी गाय उन्हें दान में दे रहा था.

भक्तों से मिले दान से बाबा सैकड़ों गायों और मुर्गियों के मालिक बन चुके थे. ये संपत्ति उन्होंने बमुश्किल एक हफ्ते के भीतर जुटा ली थी.

फैजाबाद के जिस गांव में जाओ वहीं भुड़कनाथ के चमत्कार के चर्चे चल रहे थे. कोई कहता बाबा के स्पर्श से असाध्य बीमारियां दूर हो जाती हैं. कोई कहता बाबा जिसे नजर भर देख लें उसकी जिंदगी से दुखों की कुदृष्टि खत्म हो जाती है. और तो और, भूत-प्रेत की बाधा का इलाज करने में तो बाबा माहिर थे.

तो मैंने सोचा क्यों न एक बार इस जादुई बाबा के चमत्कार को हम भी अपनी आंखों से देखें. आठ बाइ दस के कमरे में 51 घी के दीपक जलाए बैठे बाबा ने एक धोती से जैसे-तैसे खुद को ढंक रखा था.

हालांकि कमरे के एक कोने में बाबा का बरमूडा और टीशर्ट भी टंगी थी. उस कमरे में खरगोश और मोर इधर-उधर दौड़ लगा रहे थे. लोग वहां आते और बाबा उन्हें कुछ पीने को देते और कहते जाओ अब तुम्हे दुख की छाया छू भी नहीं पाएगी.

भक्त भावविह्वल हो जाता और बाबा का जयकारा करते हुए बाहर चला जाता. मेरी जिज्ञासा बढ़ती गई कि भला इस काढ़े में ऐसा क्या है जो मानसिक और शारीरिक दोनों कष्टों को एक पल में हर लेता है. काढ़े के अवयवों के बारे में मैंने पूछा. बाबा ने कहा, हिमालय की जड़ी बूटियां हैं.

मैंने कहा कृपया उन बूटियों के नाम बता दें जिससे फैजाबाद से दूर अन्य जिलों के लोगों को भी इसका लाभ दिया जा सके. बाबा ने घूरा और कहा ‘दुर्लभ’ जड़ी-बूटियां सबको नहीं मिलतीं. बाबा के भक्तों ने मुझे चेताया अगर और सवाल पूछे तो परिणाम बुरा होगा. दो मिनट की चुप्पी के बाद मैंने बाबा से फिर पूछा, इतनी मुर्गियां और गायों का क्या करेंगे? बाबा ने कहा हम धन एकत्रित कर रहे हैं.

लखनऊ के स्कूटर नगर में शिव का एक मंदिर बनवाना है. अद्भुत! एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने का संकल्प भक्तों ने कर रखा था तो दूसरी तरफ भुड़कनाथ शिवमंदिर बनवाने के लिए कृतसंकल्प थे.

मेरे इन सवालों से न केवल बाबा, बल्कि भक्तों का पारा चढ़ता जा रहा था. मैंने कहा क्षमा चाहती हूं बाबा लेकिन शिवमंदिर ही क्यों? उन्होंने बड़ा अजीब किस्सा बताया. सुनिए, लखनऊ में एक बार सांप ने मुझे काट लिया लेकिन तभी एक गाय ने आकर मुझे चाट लिया और मैं बच गया. बाबा ने इस काटने-चाटने के प्रकरण की फोटो भी दिखाई. अब मैंने भारी खतरा उठाते हुए पूछा बाबा जब ये घटना हुई तो उस वक्त कैमरा कहां से क्लिक हो गया. मैंने थोड़ घबराते हुए कहा, बाबा बस सहज जिज्ञासा है.

बाबा ने कहा, मुझे रात में सपना आया था सो मैंने अपने मित्रों को ये खबर दी थी. अब वहीं से मीडिया के लोगों को पता चल गया होगा. बाहर निकली तो लोगो से जानना चाहा कि बाबा के बारे में उनकी जानकारी क्या है? जिससे पूछो बस वह यही कहता बाबा के बारे में कुछ कह पाने की उनकी हैसियत नहीं.

बाबा कौन हैं ये तो ईश्वर ही जानें. ईश्वर ने बस हमारे दुख हरने के लिए बाबा को भेजा है. लोग बिना बाबा का बैकग्राउंड जाने उनके चरणों में पैसा, जानवर, अनाज और यहां तक जमीन का कुछ टुकड़ा भी भेंट कर रहे थे.

एक समय सेंट्रल यूपी में ऐसे ही ‘निर्मल बाबा’ के चमत्कार के किस्से हर दूसरा व्यक्ति सुनाता था. भुड़ुकनाथ तो राज्य स्तरीय या कहें राज्य के कुछ हिस्सों में मशहूर हुए थे लेकिन निर्मल बाबा की प्रसिद्धि तो उत्तर भारत के कई राज्यों में फैल गई थी.

निर्मल बाबा का गुणगान करते हुए कोई कहता उनके बेटे ने आइआइटी की परीक्षा पास कर ली तो कोई कहता उनकी बेटी ने एमबीबीएस निकाल लिया. किसी की नौकरी लग गई तो किसी की बेटी की शादी हो गई बाबा के आशार्वाद से. और बाबा के टोटके भी जरा सुनिए. समोसे के साथ हरी चटनी. दुकान में रखी काली पर्स खरीदने की सलाह. दिलचस्प बात ये है कि गांव-देहात ही नहीं पढ़े लिखे लोग इन टोटकों को अपना रहे थे. आसाराम , राम रहीम, राधे मां, सत्य साईं बाबा समेत अनगिनत किस्से आपको सुनने को मिल जाएंगे.

क्या वाकई कोई बाबा चमत्कार करता है?

सवाल उठता है कि क्या ऐसे बाबा वाकई चमत्कारी हैं? आमजन तो यही समझेगा. गुरुकुल कांगड़ी के प्रोफेसर सी.पी खोखर बताते हैं. '‘चमत्कृत करने वाली कहानियां सामान्य लोगों को आकर्षित ही नहीं करतीं बल्कि अपेक्षाकृत एक आसान सुरक्षा का घेरा भी उपलब्ध कराती हैं.’' वे कहते हैं जिस तरह से करत-करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान वैसे ही ये चमत्कारी किस्सों को बार सुनने और उन पर तर्क न करने से लोग ‘मूर्ख सुजान’ हो जाते हैं.

 एम्स में साइकियाट्री डिपार्टमेंट में प्रोफेसर राजेश सागर भी डॉ. खोखर की बात से इत्तेफाक रखते हैं वे कहते हैं, ‘ये सुरक्षा का घेरा दरअसल सुकून और सकारात्मक सोच से बना एक व्यक्तिगत संसार या यों कहें आभासी सपोर्ट सिस्टम  होता है.’

डॉ खोखर कहते हैं, बस यही भ्रमजाल अंध भक्तों की भीड़ खड़ा कर देता है.

क्योंकि सवाल उठाना हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं !

डॉ खोखर कहते हैं, ‘हमारी सोसायटी में ‘सेल्फ कॉन्सेप्ट’ का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं होता.’

सोसायटी आने वाली जेनरेशन को विरासत में केवल भौतिक चीजें ही नहीं ट्रांसफर नहीं करती बल्कि कुछ ऐसी चीजें भी ट्रांसफर करती है जो हमारे बिलिव सिस्टम को विकसित करती है. कई धारणाएं अनजाने ही हमारे भीतर जड़ जमा लेती हैं.

हमारे यहां धारणाओं की तार्किक व्याख्या करने वालों को हतोत्साहित किया जाता है. यानी सेल्फ कॉन्सेप्ट विकसित करने की कोशिश करने वालों को सोसायटी बड़े- बुजुर्गों की सोच का अपमान करने वाला मानती है.

इसके उलट जो सोसायटी जितना विकसित होगी वहां उतना ही व्यक्ति को अनुभव आधारित बिलिव सिस्टम विकसित करने के लिए प्रेरित किया जाएगा.

तो बेहद पढ़े लिखे लोग, बड़े- बड़े अधिकारी इस भ्रमजाल के चक्कर में कैसे आ जाते हैं? डॉ. खोखर कहते हैं ‘ज्यादा पढ़ाई लिखाई या फिर संपन्नता आपको अंधविश्वासों से आजाद नहीं कराती है. मैं फिर कहता हूं कि जैसे ही बात लौकिक से ऊपर उठकर परालौकिक होती है. लोग दिमाग के भीतर उपजने वाले तर्कों को शैतानी खुराफात  का नतीजा मानते हैं.’

आसाराम बापू हों या बाबा राम रहीम या फिर कोई दूसरा बाबा, ये लोग समाज के इसी बिलिव सिस्टम का फायदा उठाकर लोगों को ठगते और बरगलाते रहते हैं. ऐसा डर समाज में पैदा कर दिया जाता है कि तथाकथित किसी चमत्कार का विश्लेषण करने को घोर पाप मान लिया जाता है.

एम्स में साइकियाट्री विभाग में प्रोफेसर राजेश सागर भी अंध विश्वास और आस्था को कल्चर से जुड़ा हुआ मसला मानते हैं. वे कहते हैं ‘हम जिस समाज में जी रहे होते हैं. लगभग वैसा ही सोचने- समझने का सिस्टम हमारे भीतर विकसित होता है.

खासतौर पर भारतीय सभ्यता में धर्म की बहुत बड़ी भूमिका रही है. हम बचपन से ही ईश्वर, चमत्कार जैसे शब्दों और इनसी जुड़ी कहानियां सुनते आ रहे होते हैं.  

हमारे दिमाग की ट्रेनिंग इस तरह से होती है कि हमें ईश्वर, आस्था, धर्म, परालौकिक बातों पर सवाल उठाने से रोका जाता है. मजेदार बात ये है कि तार्किक से तार्किक व्यक्ति को ये बात पात ही नहीं चलती कि उसके दिमाग में एक ऐसा कोना है जिसे वो नहीं समाज और घर से मिली धारणाएं नियंत्रित कर रही होती हैं.’

वे आगे कहते हैं, ‘हर व्यक्ति के भीतर ‘फियर ऑफ आइसोलेशन’ यानी ये भी डर बैठा होता है कि अगर उसने आस्था, श्रद्धा जैसे मसलों पर सवाल उठाए तो उसे समाज में अलग-थलग कर दिया जाएगा.

अनिष्ट की आशंका हमारे तर्कों को भोथरा बना देती है

डॉ. सी.पी. खोखर भी कुछ इसी तरह का विश्लेषण कहते हैं, ‘हमारे भीतर एक डर पैदा किया जाता है कि अगर हमने तर्कों की कसौटी में धर्म या आस्था को कसने की कोशिश की तो हमारा अनिष्ट हो जाएगा. हमारे परिवार, मित्रजनों को इस अनिष्ट की आग में झुलसना पड़ेगा. इसलिए ज्यादातर मामलों में आस्था एक डर के रूप में मन के कोने में गहरी और मजबूत जड़ जमा लेती है.’ एक मजबूत बिलिव सिस्टम बन जाता है. बिल्कुल वैसे ही जैसे वे हंसते हुए कहते हैं, हमारे यहां कहावत है न, ''करत-करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात सिल पर पड़त निशान.

तो लगातार अंधविश्वास और इन धारणाओं का अभ्यास करते-करते लोग मूर्ख सुजान बन जाते हैं.'' यानी लगातार लगातार इन धार्मिक धारणाओं को पोषण करने से दिमाग इसे सच मान लेता है. और सवाल उठाने वालों के लिए इन धारणाओं के पक्ष में कई तर्क गढ़ने लगता है.

प्रोफेसर राजेश कहते हैं, 'डर' और 'असुरक्षा' की भावना हमें आस्था के अंधे कुएं में फेंक देती हैं. जहां से निकलना कठिन होता है. यही वजह होती है कि जब किसी धर्म गुरु या बाबा का पर्दाफाश होता है तो उसके भक्त और जोर-जोर से चिल्लाते हैं.

दरअसल वो भक्त बाबा से ज्यादा अपने लिए बनाए गए एक झूठे सपोर्ट सिस्टम को बचाने की पुरजोर कोशिश कर रहा होता है. क्योंकि जब किसी मशहूर बाबा को पुलिस, प्रशासन के सामने  उसके भक्त लाचार देखते हैं तो उन्हें अपना अस्तित्व डगमगाता सा लगता है.

डॉ. सी.पी. खोखर कहते हैं, हमारी सोसायटी ऐसी है जहां बड़ों के सामने सवाल उठाना गलत माना जाता है.

माता-पिता के फैसलों पर तर्क करने को गलत समझा जाता है. ऐसे में जब ये कहा जाता है कि धर्म और ईश्वर और इनके तथाकथित स्वाघोषित एजेंटों का दर्जा तो मां-बाप से भी ऊपर है. तो ऐसे में फिर इन मसलों पर सवाल उठाना तो गुनाह-ए-अजीम समझा जाएगा न!  

क्या क्या कभी टूटेगा चमत्कारों का ये काल्पनिक संसार ?

लेकिन क्या इस बिलिव सिस्टम को तोड़ा जा सकता है? डॉ. खोखर कहते हैं, ये सिस्टम सालों या कहें सदियों के बाद बना है. इस बिलिव सिस्टम ने कई पीढ़ियों के अवचेतन मन के सफर को तय किया है.  इस बिलीव सिस्टम को बनने में इतना वक्त लगा है तो टूटने में भी वक्त लगेगा और मेहनत भी.

सवाल ये उठता है कि क्या अब समाज को और सजग होना होगा? क्या संत के चोले पहने ढोंगी बाबाओं के खिलाफ प्रशासन को ही नहीं बल्कि समाज को भी एक अभियान छेड़ना होगा?  

क्योंकि डॉ. सी.पी. खोखर के मुताबिक सदियों से बने इस बिलीव सिस्टम को तोड़ने वक्त तो लगेगा ही साथ ही खासी मशक्कत भी. हमें उस झूठे सुरक्षा घेरे से भी बाहर आना होगा जिसका जिक्र डॉ.राजेश सागर ने किया है.

आस्था और धर्म को तर्कों की कसौटी पर कसना ही होगा. एक बात और जिस बाबा भुड़ुकनाथ के चमत्कार के गुणगान फैजाबाद से लेकर पूर्वांचल के कई जिलों तक फैल गई थी. उसी बाबा की मौत 2016 में एक सांप के काटने से ही हुई.

भुड़ुकनाथ को एक साधारण व्यक्ति की मौत मिली. निर्मल बाबा की किस्से भी न जाने कहां खो गए. आशाराम बापू, रामरहीम और राधे मां समेत कई और बाबाओं की सच्चाई समाने है पर क्या लोग अब भी बाबाओं के भ्रमजाल में नहीं फंसेंगे?

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