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न खुदा मिला न विसाले सनम...

कभी मोदी और तोगड़िया की दोस्ती के चर्चे भाजपा और संघ में मशहूर थे.

प्रवीण तोगड़िया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रवीण तोगड़िया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
अपडेटेड 16 अप्रैल , 2018

जय श्री राम, पूरी ताकत के साथ बोलिये जय श्री राम. कभी जिसके इतना बोलने के साथ ही किसी भी सभा में राम नाम की गंगा बहने लगती थी, जोश से लबालब कार्यकर्ता अयोध्या में राम मंदिर के मॉडल को ही पूरे देश के रामराज्य का मॉडल बताने लगते थे. आज उसी विश्व हिन्दू परिषद् (विहिप) के अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष 'प्रवीण तोगड़िया' संगठन से हमेशा के लिए बेगाने हो गए.

लगभग 52 वर्षों के बाद होने वाले विहिप के चुनाव में प्रवीण तोगड़िया गुट के उम्मीदवार राघव रेड्डी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है. 32 वर्ष तक विश्व हिन्दू परिषद् में रहने के बावजूद आज क्यों संगठन ने तोगड़िया को तीन तलाक दे दिया.

दरअसल इसके लिए हमें पिछले कुछ महीनो में होने वाली घटनाओं पर एक नजर डालनी होगी. कभी तोगड़िया का गायब होना तो कभी खुलकर सरकार के खिलाफ बोलना, घटनाएं ऐसी थीं कि प्रवीण तोगड़िया के साथ सत्ता पक्ष की रस्साकस्सी जगजाहिर होने लगी थी.

मोदी विरोध में पिस गए

प्रवीण तोगड़िया की विहिप से विदाई ने आज संघ परिवार के भीतरखाने चल रही राजनीति को सतह पर लाने का काम किया है. नरेंद्र मोदी के समर्थन और विरोध में आज कहीं न कहीं संघ और इसके आनुषंगिक संगठन बंटे हुए दिखते हैं.

एक नेता के रूप में आज मोदी इतने मजबूत हो चुके हैं कि उनके विरोध की गुंजाइश दिखती नहीं है. इसीलिए आज तोगड़िया का वही हाल हुआ जो कभी संजय जोशी का हुआ था. खुलकर सरकार की नीतियों की आलोचना करना और उसे किसान विरोधी, हिन्दू विरोधी, युवा विरोधी बताना ही इनके विदाई का एकमात्र कारण है.

कभी मोदी और तोगड़िया की प्रगाढ़ दोस्ती का कोई दूसरा उदाहरण जल्दी मिलता नहीं था. संघ के विचारों को दोनों ने गुजरात के हर कोने तक पहुंचाया. नरेंद्र मोदी के बीजेपी में जाने के बाद  भी इनके संबंध बने रहे.

जब अपने राज्य से ही मोदी को राजनीतिक वनवास दे दिया गया तो गुजरात में वो प्रवीण तोगड़िया ही थे जिन्होंने मोदी की वापसी सुनिश्चित करने के लिए अपने स्तर पर उनका भरपूर सहयोग किया. कभी गुजरात की भाजपा सरकार में बड़े स्तर पर दखल रखने वाले तोगड़िया आज हाशिये पर क्यों खड़े हैं?

दरअसल स्थितियां साल 2002 के गुजरात दंगों के बाद पूरी तरह से बदल गईं. कभी मोदी की राजनीतिक छवि में हिंदुत्व का छौंक डालने वाले प्रवीण तोगड़िया अब नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत का सबब बन रहे थे. दंगों के आरोप गुजरात की मोदी सरकार के ऊपर लग रहे थे और मुस्लिम विरोधी हिंसा को सरकार के स्तर पर प्रायोजित बताया जा रहा था.

नरेंद्र मोदी ने अपने आपको राजनीतिक जीवनदान देने के लिए प्रवीण तोगड़िया, विहिप और बजरंग दल जैसे संगठनो के पर कुतरने शुरू कर दिए. यही आरोप तोगड़िया भी हमेशा से लगाते आएं हैं कि मोदी ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए उन्हें बलि का बकरा बनाया.

आरोप तो ये भी लगाए गए कि दंगों में पुलिस की गोली से 300 हिन्दुओं को मारने का पाप गुजरात सरकार ने किया और दंगों के पश्चात पचास हजार हिन्दुओं को जेल में डाल दिया गया .   

तोगड़िया हुए किसान और युवा प्रेमी

तोगड़िया के ही मुताबिक साल 2004 के बाद से उनके और मोदी के बीच में व्यक्तिगत दूरियों का फासला बहुत ज्यादा बढ़ गया. लेकिन तोगड़िया ने कभी भी मोदी विरोध को लोगों के सामने जाहिर नहीं होने दिया. पिछले कुछ महीनो में जिस तरह से वो सरकार के विरोध में खुलकर सामने आएं हैं वो कहीं ना कहीं मोदी और तोगड़िया दोनों को नुकसान पहुंचाने वाला है.

राम मंदिर, कश्मीर तक तो सही था, लेकिन अब तोगड़िया किसान और युवाओं के मुद्दे को भी बड़े जोर -शोर से उठा रहे हैं .

पहले संजय जोशी आज तोगड़िया तो फिर अगला कौन ? दरअसल बीजेपी और संघ के भीतर मोदी युग की प्रासंगिकता को बरकरार रखने का एक प्रबल प्रयास है. अब तोगड़िया 17 अप्रैल से अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठने वाले हैं तो इसका मतलब है कि अभी राजनीतिक तापमान और बढ़ने वाला है.  

आरएसएस भी इस बार सवालों से बच नहीं सकता . संघ और बीजेपी के काडर के बीच में भी ये सन्देश तो जाना तय है कि मौज़ूदा वक़्त में एक व्यक्ति की छवि आज पूरे संगठन पर हावी है.

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