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उत्तर प्रदेश में बढ़ने लगा गैर-यादवों का रसूख

विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यूपी में कुर्मी-मौर्य जाति के तले गैर-यादव जातियां जमा हो रही हैं, इनके लिए सभी दलों के अपने-अपने दांव.

अपडेटेड 14 जुलाई , 2016

इलाहाबाद में 13 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में मंच पर बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के बीच अपना दल की नेता और सांसद अनुप्रिया पटेल की मौजूदगी चौंकाने वाली थी. रैली शुरू होने के दो घंटे पहले ही मंच पर मौजूद रहने वाले नेताओं की सूची में अनुप्रिया का नाम जोड़ा गया था. वैसे इससे पहले बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में मोदी और अमित शाह की मौजूदगी में अपना दल के बीजेपी में संभावित विलय के 'समझौते' को अंतिम शक्ल मिल चुकी थी.

कुर्मी वोटों की जंग
इसी रणनीति के तहत शाह 2 जुलाई को वाराणसी में अपना दल के संस्थापक सोने लाल पटेल की जयंती पर आयोजित स्वाभिमान रैली में विशेष अतिथि के रूप में दिखे. तीन दिन बाद अनुप्रिया को केंद्र सरकार में राज्यमंत्री पद की शपथ दिलाकर बीजेपी ने पूर्वांचल में कुर्मी वोटों की जंग में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सक्रियता से निबटने के संकेत दे दिए.

स्वामी प्रसाद मौर्य पर भी नजर
बदलाव का संकेत लखनऊ के गोमतीनगर में स्थित बीएसपी के पूर्व नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के तीन मंजिला घर की दीवारें भी दे रही हैं. इन पर चढ़ा नीला बसपाई रंग हट गया है और भूरा रंग चढ़ गया है. इन दीवारों के भीतर मौर्य बीएसपी छोडऩे के बाद अगले सियासी कदम के लिए साथी नेताओं के साथ लगातर बैठकें कर रहे हैं. उनका बीएसपी छोडऩा और अनुप्रिया का केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होना, यूपी में पिछड़ी जातियों की राजनीति में हिस्सेदारी की नई जंग के आगाज का इशारा करता है. बीएचयू के समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. अजीत कुमार बताते हैं, ''पिछड़ी जातियों में सबसे अधिक फायदा इनमें संख्याबल में सबसे बड़ी यादव जाति को ही हुआ है. विधानसभा चुनाव के करीब आते ही गैर-यादव जातियां पिछड़ेपन को मुद्दा बनाकर जमा हो रही हैं. इससे पिछड़ी राजनीति में सीधा विभाजन साफ दिखने लगा है.''

गैर यादव पिछड़ी जातियों के वोट बैंक पर नजर
गैर-यादव पिछड़ी जातियों में कुर्मी के अलावा एक जैसी सामाजिक संरचना वाली जातियां मसलन सैनी, शाक्य, कुशवाहा और मौर्य हैं. पिछड़ी जातियों में इनकी सम्मिलित हिस्सेदारी 14 फीसदी से कुछ ज्यादा है. सियासी विश्लेषकों के मुताबिक, वाराणसी, कानपुर, लखीमपुर खीरी, फर्रुखाबाद समेत पूर्वांचल और बुंदेलखंड के कुल 17 जिलों में कुर्मी बिरादरी कुल आबादी की 15 फीसदी से ज्यादा है. वहीं सहारनपुर, मुजफ्फरनगर समेत आसपास के जिलों में सैनी, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, देवरिया, कुशीनगर जैसे जिलों में मौर्य बिरादरी की अच्छी-खासी तादाद है. यही वजह है कि गैर-यादव पिछड़ी जातियां कुर्मी, मौर्य जैसी कृषक जातियों के नेतृत्व तले एकत्र हो रही हैं. इन जातियों के वोटों पर कब्जे की जंग में विभिन्न पार्टियों ने अलग-अलग हिस्से में अपने सूरमा उतार दिए हैं.

मौर्य-कुर्मी की गोलबंदी
केंद्र में बीजेपी सरकार बनने के बाद पार्टी ने यूपी में आधा दर्जन कुर्मी नेताओं को जिम्मेदारी देकर पिछड़ी जातियों के एक बड़े तबके पर ध्यान लगाया था. पिछड़ी जातियों में सपा सरकार की यादवपरस्ती के खिलाफ पनप रहे असंतोष को भुनाने के लिए अप्रैल में केशव प्रसाद मौर्य को यूपी बीजेपी की कमान सौंप दी गई. 30 मई को इलाहाबाद के अंदावा चैराहे पर 'सरदार पटेल विराट किसान सम्मेलन' के जरिए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कुर्मी मतदाताओं के बीच गोलबंदी शुरू की.

अपना दल के विलय की रणनीति
रणनीति के तहत बीएसपी के पूर्व विधायक प्रवीण पटेल, मिर्जापुर से सपा नेता रमा शंकर पटेल समेत कई कुर्मी नेताओं को मंच से बीजेपी में शामिल कराया गया ताकि अपना दल की अनुप्रिया पर दबाव बनाया जा सके. इसके बाद पार्टी ने यूपी प्रभारी ओम प्रकाश माथुर को अपना दल का विलय कराने के मिशन पर लगाया. इसमें सफलता मिलने के बाद बीजेपी पूर्वांचल में नीतीश कुमार की बढ़ती सक्रियता से निबटने के लिए अनुप्रिया को सक्रिय करने का तानाबाना बुन चुकी है. वाराणसी में बीजेपी के एक विधायक अपना दल के दूसरे धड़े कृष्णा पटेल के भी संपर्क में हैं ताकि भविष्य में उन्हें भी भगवा खेमे में लाया जा सके. इसी तरह बीजेपी अब बीएसपी छोड़ चुके मौर्य बिरादरी के नेताओं के जरिए स्वामी प्रसाद मौर्य का मन टटोल रही है. 1 जुलाई को लखनऊ के सीएमएस सभागार में आयोजित स्वामी प्रसाद मौर्य सम्मेलन में बीएसपी विधायक उदय लाल मौर्य की सक्रियता दिखी थी. वे इलाहाबाद में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यसमिति के दौरान ओम माथुर समेत कई नेताओं के संपर्क में आए थे.

गैर-यादव संतुलन में जुटे मुलायम
यूपी में सपा सरकार बनने के बाद सरकारी नौकरियों और विकास योजनाओं में यादवों को ज्यादा महत्व देने से दूसरी पिछड़ी जातियां नाराज हो गई थीं. इसका लाभ उठाने से विपक्षी पार्टियों को रोकने के लिए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अकबरपुर के विधायक और कुर्मी नेता राममूर्ति वर्मा को पहले राज्यमंत्री और फिर कैबिनेट मंत्री बनाया. वैसे उनकी सारी रणनीति 2014 के लोकसभा चुनाव में धड़ाम हो गई. इसके बाद ही मुलायम ने सपा के प्रदेश प्रभारी शिवपाल यादव को कभी पूर्वांचल में बड़े कुर्मी नेता रहे अपने पुराने साथी बेनी प्रसाद वर्मा को वापस लाने का जिक्वमा सौंपा. वे सपा में आए तो मुलायम ने उन्हें राज्यसभा भेजा.

सपा ने भी बदली रणनीति
कुर्मी मतदाताओं को साधने के लिए सपा बेनी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह देकर पूर्वांचल के कई जिलों का प्रभारी बनाने की तैयारी में है. पार्टी ने सामाजिक रूप से मौर्य के समकक्ष दूसरी जातियों में साहब सिंह सैनी को कैबिनेट मंत्री, फैजाबाद की लीलावती कुशवाहा को विधान परिषद सदस्य बनाकर अति पिछड़ी जातियों में यादव जाति के खिलाफ बन रहे असंतोष को थामने की कोशिश की है. बीएसपी में भी दलितों खासकर जाटव जाति पर जरूरत से ज्यादा केंद्रित हो जाने से पिछड़े नेताओं में असंतोष फैला है. मौर्य के जाने के बाद पार्टी में एक शून्यता आ गई है. कुर्मी नेता लालजी वर्मा बीएसपी सरकार में प्रभावी मंत्री थे पर पिछले दो वर्षों से हाशिए पर हैं. वैसे बस्ती के विधायक कुर्मी नेता राम प्रसाद चैधरी को आगे कर बीएसपी मौर्य के जाने से अति पिछड़ी जातियों में हुए नुकसान की भरपाई करने की जुगत में है.

कुर्मी स्वाभिमान के जरिए पैठ
नीतीश कुमार ने यूपी में सियासी कदम रखते हुए अपनी छवि एक प्रभावी कुर्मी नेता की बनाने की कोशिश की है. उनकी रैलियों में कार्यकर्ता उन्हें अगले लोकसभा चुनाव में पीएम पद का दावेदार बताकर कुर्मी स्वाभिमान की भावनाएं जगाते हैं. नीतीश ने गाजीपुर, मिर्जापुर, लखनऊ, वाराणसी के पिंडरा जैसे जगहों पर रैलियां की हैं जहां कुर्मी लोग अच्छी संख्या में हैं. बीजेपी पर पलटवार करते हुए नीतीश पूर्व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और कुर्मी नेता ओम प्रकाश सिंह का जिक्र करते हैं. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने उन्हें अहमदाबाद में बनने वाली सरदार पटेल की प्रतिमा के लिए लोहा संग्रहण समिति का प्रदेश प्रभारी बनाया था. लोकसभा चुनाव के बाद हाशिए पर भेज दिए गए इस कुर्मी नेता के लिए 18 जून को चुनार (मिर्जापुर) की रैली में नीतीश बोले, ''न जाने इन दिनों ओम प्रकाश सिंह कहां किनारे कर दिए गए हैं.''

नीतीश की काट
उनके जिक्र से नीतीश बीजेपी पर कुर्मियों की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हैं. बिहार चुनाव में धोखा देने का आरोप लगा वे सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पिछड़ा वोट बैंक में सेंध मारने की कोशिश में भी हैं. उन्होंने शरद यादव को स्वामी प्रसाद मौर्य से समर्थन पाने के लिए भी लगाया है तो नीतीश अपना दल के दूसरे धड़े की अध्यक्ष कृष्णा पटेल को भी अपने साथ जोड़कर कुर्मी मतों पर एकछत्र दावेदारी की कोशिश में हैं. पहली जुलाई को गोमतीनगर के सीएमएस सभागार में सम्मेलन में स्वामी प्रसाद मौर्य ने नारा दिया, ''याचना नहीं अब रण होगा, संघर्ष बड़ा भीषण होगा.'' साफ है, पिछड़ी राजनीति की तपिश अभी और बढऩे वाली है.

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