यह इत्तेफाक ही था कि 2014 में जब आम चुनाव के नतीजे आ रहे थे और नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक बढ़ रहे थे, ठीक उसी दिन सुप्रीम कोर्ट 2002 में गुजरात में हुए अक्षरधाम मंदिर हमले को लेकर उन पर तल्ख टिप्पणी कर रहा था. दरअसल हमले के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी के पास गृह मंत्रालय भी था. अदालत की टिप्पणी थी कि न तो अभियोजन पक्ष के महत्वपूर्ण गवाह गृह विभाग के प्रमुख सचिव कुलदीप चंद कपूर और न ही गृह मंत्री ने अक्षरधाम हमले के आरोपियों पर पोटा कानून के अनुमोदन में अपने विवेक का इस्तेमाल किया. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, हमले में आरोपी लोगों के खिलाफ पोटा कानून लगाने में उचित प्रक्रिया का इस्तेमाल भी नहीं हुआ. इस बिंदु के अलावा आठ अन्य बिंदुओं पर विचार करते हुए अदालत ने इस मामले में लचर और दुराग्रहपूर्ण विवेचना के लिए गुजरात पुलिस के साथ ही निचली अदालतों की आलोचना की. उसने सभी छह आरोपियों को निर्दोष बता बरी कर दिया. इन्हें हमले की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और निचली अदालतों ने इनमें से तीन को फांसी की सजा तक मुकर्रर कर दी थी. इस हमले में 33 लोग और जवाबी कार्रवाई में दोनों फिदाईन मारे गए थे.
कुछ इसी तरह यह किताब अक्षरधाम मंदिर पर कथित आतंकी हमले और उसमें फंसा दिए गए बेगुनाह अल्पसंख्यकों की पूरी पड़ताल करती है. अहम बात है कि इसमें हमले के दौरान राज्य की पृष्ठभूमि से लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक की पूरी तथ्यात्मक जानकारियां हैं, जिससे यह विश्वसनीय बन पड़ी है. इसमें मीडिया रिपोर्ट्स से लेकर पुलिस के दस्तावेज और रिकॉर्डिंग्स शामिल हैं. किताब कुल 19 शीर्षकों में बंटी है. इनमें हमले से जुड़े तात्कालिक अंतर्विरोधों, एफआइआर और पंचनामे में विरोधाभासों, एटीएस की ओर से जांच भटकाने की कोशिश, गिरफ्तारियों की पृष्ठभूमि, हर आरोपी की गिरफ्तारी और यातना की दास्तान है. इसके अलावा किताब में आरोपी अब्दुल कय्यूम, आदम अजमेरी, मौलवी अब्दुल्लाह, हनीफ शेख, अल्ताफ हुसैन और चांद खान के कबूलनामे में अंतर्विरोधों का उल्लेख है जिनसे संकेत मिलता है कि पुलिस ने उन्हें यातनाएं देकर आरोपों को स्वीकार करने को मजबूर किया. मसलन, गुजरात दंगों के पीड़ितों के लिए राहत शिविर लगाने वाले 32 वर्षीय मुफ्ती अब्दुल कय्यूम से उनके परिवार को नुक्सान पहुंचाने और एनकाउंटर कर देने की धमकी देकर कबूल करवाया गया कि फिदाईन की जेब से बरामद दिखाए गए पत्र उनके थे. कश्मीर-कनेक्शन शीर्षक में स्पष्ट है कि गुजरात पुलिस के दावे चांद खान को लेकर संदिग्ध हो गए. गुजरात पुलिस यह बताकर स्थानीय लोगों को गिरक्रतार कर रही थी कि अक्षरधाम हमला गुजरात दंगों का बदला लेने के लिए पाकिस्तानी सहयोग से किया गया था, जबकि कश्मीर पुलिस के दावे उलट थे.
इसके साथ-साथ किताब में पोटा अदालत और हाइकोर्ट में इस मामले की सुनवाई और फैसले का पूरा जिक्र है, जिनकी जांच को सुप्रीम कोर्ट ने दोषपूर्ण माना. इसमें दुराग्रहपूर्ण कार्रवाइयां करने वाले पुलिस अधिकारियों जी.एल. सिंघल और डी.जी. वंजारा और मोदी तथा उनके खास अमित शाह पर सवाल खड़े किए गए हैं. कुल मिलाकर किताब बताती है कि गुजरात दंगों के बाद सवालों से घिरी सत्ता ने अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए यह सब करवाया. जाहिर है, यह मौजूं बहस छेड़ती है कि सत्ता किस तरह आतंकवाद से मुस्लिम समुदाय को जोड़ अपने हित साधती है और इससे भी बढ़कर वह जरूरत पडऩे पर फर्जी घटनाएं गढ़ती है.
ऑपरेशन अक्षरधाम
लेखकः राजीव यादव और शाहनवाज आलम
प्रकाशकः फारोस मीडिया ऐंड पब्लिशिंग प्रा. लि.
मूल्यः 250 रु.
ऑपरेशन अक्षरधाम: अक्षरधाम मंदिर में हमले का पूरा सच बयां करती किताब
ऑपरेशन अक्षरधाम किताब 2002 में गुजरात अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमले और उसमें फंसा दिए गए बेगुनाहों की पूरी पड़ताल.

अपडेटेड 28 सितंबर , 2015
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