बनारस इधर लगातार चर्चा में है, राजनीति के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी. इस प्राचीन नगरी पर केंद्रित कई कहानियों, निबंधों के अलावा डॉ. तुलसीराम के संस्मरणों की किताब मणिकर्णिका लगातार चर्चा में बनी हुई है. लेकिन सत्य व्यास का प्रस्तुत उपन्यास अपनी शैली और कथानक की रफ्तार की वजह से अपनी ओर ध्यान खींचता है. और यह थोड़ी हैरत की बात है कि पुराने साहित्यिक आस्वाद वाले पाठकों पर यह गहरा असर भले न छोड़े लेकिन उन्हें बांधता है.
लेखक सत्य व्यास काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़े हैं और यह उपन्यास भी वहां कानून की पढ़ाई करने आने वाले तीन छात्रों सूरज (बाबा), जयवद्र्धन और अनुराग डे (दादा) के आपस में परिचय और दोस्ती के साथ शुरू होता है. अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए इन युवकों के जीवन में हॉस्टल लाइफ एक नया रस पैदा करती है.
आपसी संवाद के दौरान कोई क्रिकेट की शब्दावली में बात करता है, कोई नई-पुरानी कहावतों में और कोई कविता/शायरी में. गालियां और भदेस शब्दावली बनारस के सामाजिक जीवन का स्वाभाविक हिस्सा रही हैं और यहां भी उनका इस्तेमाल गद्य को यथार्थपरक बनाता है. उपन्यास वैसे भी कल्पना के मुकाबले यथार्थ के आसपास चलता है.
उच्च शिक्षा के संस्थानों में शिक्षकों के पेनड्राइव ज्ञान पर इसमें करारा व्यंग्य किया गया है. छात्र जीवन के दिलचस्प प्रसंगों के जरिए उपन्यास बार-बार हंसाता भी है और आज के शैक्षणिक/सामानजिक परिवेश पर सोचने के लिए मजबूर भी करता है. पहले से आखिरी पन्ने तक यह एक फिल्म की तरह चलता है. उपन्यास का सहज प्रवाह फिर-फिर अपनी ओर ध्यान खींचता है.
बनारस टॉकीज़
लेखक: सत्य व्यास
हिंद युग्म
मूल्य 115 रु.
लेखक सत्य व्यास काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़े हैं और यह उपन्यास भी वहां कानून की पढ़ाई करने आने वाले तीन छात्रों सूरज (बाबा), जयवद्र्धन और अनुराग डे (दादा) के आपस में परिचय और दोस्ती के साथ शुरू होता है. अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए इन युवकों के जीवन में हॉस्टल लाइफ एक नया रस पैदा करती है.
आपसी संवाद के दौरान कोई क्रिकेट की शब्दावली में बात करता है, कोई नई-पुरानी कहावतों में और कोई कविता/शायरी में. गालियां और भदेस शब्दावली बनारस के सामाजिक जीवन का स्वाभाविक हिस्सा रही हैं और यहां भी उनका इस्तेमाल गद्य को यथार्थपरक बनाता है. उपन्यास वैसे भी कल्पना के मुकाबले यथार्थ के आसपास चलता है.
उच्च शिक्षा के संस्थानों में शिक्षकों के पेनड्राइव ज्ञान पर इसमें करारा व्यंग्य किया गया है. छात्र जीवन के दिलचस्प प्रसंगों के जरिए उपन्यास बार-बार हंसाता भी है और आज के शैक्षणिक/सामानजिक परिवेश पर सोचने के लिए मजबूर भी करता है. पहले से आखिरी पन्ने तक यह एक फिल्म की तरह चलता है. उपन्यास का सहज प्रवाह फिर-फिर अपनी ओर ध्यान खींचता है.
बनारस टॉकीज़
लेखक: सत्य व्यास
हिंद युग्म
मूल्य 115 रु.