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पद्मावती इतिहास के आईने मेंः कितनी कल्पना और कितना सच?

इतिहासकारों की नजर में रानी पद्मावती का किस्सा.

इतिहास के आईने में पद्ममावती
इतिहास के आईने में पद्ममावती

पद्मावती को लेकर हंगामा बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में इतिहासकारों की नजर से इस किस्से को देखना दिलचस्प होगा. इतिहास के आईने में दर्ज इन किस्सों पर नजर दौड़ाएंगे तो शायद पता चले कि इस कहानी में कितना यथार्थ और कितना मिथक है?

इतिहास के तथ्यों के मुताबिक, खिलजी ने 1303 में चित्तौड़ पर हमला किया था, जहां के राजा रत्नसिंह की पत्नी का नाम पद्मिनी था. जायसी के कथानक के इतने ही तथ्य इतिहास में मिलते हैं, बाकी को कवि की कल्पना माना गया.

अब जरा एक ब्रिटिश अधिकारी जेक्वस टॉड (1782-1835) की राय भी पढ़ें. टॉड  ने राजस्थान के चारणों से सुने वृत्तांतों में एक कहानी बताई. टॉड के यहां रत्नसेन का नाम भीम सिंह है, पद्मावती का नाम पद्मिनी और उसके पिता और सिंहलदेश के राजा का नाम गंधर्वसेन की बजाए हम्मीर है.

कहानी कुछ ऐसी है कि पद्मिनी के रूप के बारे में सुन खिलजी ने चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी. भयंकर युद्ध के बाद भी कोई परिणाम न निकलने पर खिलजी ने संधि प्रस्ताव भिजवाया कि उसे बस एक बार पद्मिनी का रूप देख लेने दिया जाए. इस तरह युद्ध रुका और उसको एक दर्पण में पद्मिनी का अक्स दिखाया गया. टॉड ने अलाउद्दीन के दूसरे हमले में राणा भीम सिंह के अपने 11 पुत्रों सहित मारे जाने की बात कही है.

कुछेक बदलावों के साथ पुस्तक आईने आकबरी टॉड का समर्थन करती है. जायसी से करीब आधी सदी बाद लिखी गई आईने अकबरी में रत्नसेन का ही उल्लेख है.

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने पद्मावत की वृहद मीमांसा में जायसी के इतिहास और भूगोल के ज्ञान को काफी विस्तार से खंगाला है. उनके मुताबिक, "अलाउद्दीन के समय की और घटनाओं का भी जायसी को पूरा पता था.

मंगोलों के देश का नाम उन्होंने 'हरेव' लिखा है. अलाउद्दीन के समय में मंगोलों के कई आक्रमण हुए थे जिनमें सबसे जबरदस्त हमला 1303 में हुआ था. 1303 में ही चित्तौड़ पर अलाउद्दीन ने चढ़ाई की थी." अलाउद्दीन चित्तौड़ गढ़ को घेरे हुए है, इसी बीच में दिल्ली से चिट्ठी आती हैः

"एहि विधि ढील दीन्ह तब ताईं! दिल्ली तें अरदासैं आईं.

पछिउं हरेव दीन्हि जो पीठी, जो अब चढ़ा सौंह के दीठी.

जिन्ह भुइं माथ गगन तेहि लागा, थाने उठे आव सब भागा.

उहां साह चितउर गढ़ छावा, इहां देस अब होइ परावा."

लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या रामचंद्र शुक्ल के इस उदाहरण से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जायसी अपने बाकी वर्णनों में, भी तथ्यों को लेकर उतने ही दुरुस्त होंगे?

हालांकि वर्तमान में जायसी के पद्मावत की नायिका पद्मावती पर विवाद खड़ा हुआ है. लेकिन कम ही लोग यह जानते होंगे कि हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी दसवीं सदी के मयूर कवि के पद्मावती-कथा नाम के एक काव्य का उल्लेख किया है, और पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज की एक रानी का नाम पद्मावती भी था.

(इंडिया टुडे के 6 दिसंबर के अंक में छपे संगम पांडेय के लेख पद्मावती का मिथक और यथार्थ पर आधारित)

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