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साइकोलाजः प्यार ही है ना, कन्फ्यूजन तो नहीं!

कन्फ्यूजन अगर कभी-कभी हो तो कोई बात नहीं लेकिन अगर यह रोजमर्रा की जिंदगा की हिस्सा बन जाए तो फिर इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है.

कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन
कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन
अपडेटेड 15 नवंबर , 2019

दफ्तर जाने से पहले क्या पहनें, क्या नहीं? खाना आर्डर करने से पहले क्या मंगाएं, क्या नहीं? रिजर्वेशन होने के बाद जाएं या नहीं? और सबसे बड़ी बात संबंधों को लेकर आप अपनी राय बदलते रहते हैं. जैसे एक व्यक्ति कुछ समय (कुछ दिन-महीने) आपको अच्छा लगा और फिर उसके बारे में आपकी राय बदल गई. खासतौर पर प्रेम संबंधों में आपका यह 'कन्फ्यूजन' भारी पड़ सकता है. रिलेशनशिप थिरेपिस्ट इसे संबंधों के लिए खतरे की घंटी के रूप में देखते हैं. और यह तब और ज्यादा खतरनाक है जबकि आप एक ही व्यक्ति से बार-बार ब्रेक-अप करें. रहा भी ना जाए और सहा भी ना जाए, ऐसा सिर्फ फिल्मों में ही अच्छा लगता है. मनोविज्ञान में आपके इस रवैए को 'रिसाइक्लिंग रिलेशनशिप' कहा जाता है. जरा संभलकर, असल जिंदगी में यह कन्फ्यूजन आपकी जिंदगी को तबाह कर सकता है.

अगर इन सारे कन्फ्यूजन से आप दिन-महीने-साल के साथ गुजर रहे हैं तो इसे हंसी मजाक में नहीं बल्कि गंभीरता से लेना चाहिए. कभी-कभार अगर आपको ऐसा महसूस होता है तो कोई बात नहीं लेकिन अगर यह कन्फ्यूजन आपकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गया है तो फिर इसका सॉल्यूशन आपको जल्द से जल्द खोज लेना चाहिए. मनोविज्ञान में इस अवस्था को डिलेरियम यानी 'एक्यूट कन्फ्यूजन स्टेट' या 'एक्यूट ब्रेन सिंड्रोम' कहते हैं.

इमोशंस को लेकर कई आर्टिकल लिख चुकी डॉ. मैरी सी लिमिया कहती हैं, '' अगर आप एक ही व्यक्ति से या फिर अलग-अलग व्यक्तियों से बार-बार ब्रेकअप करते हैं और फिर उन्हें मनाने में जुट जाते हैं तो इस संबंध पर आपको गहराई से सोचना चाहिए. लेकिन उससे भी ज्यादा सोचने की जरूरत आपको अपने इमोशंस के अस्थिर रहने के बारे में है. आपका मस्तिष्क कन्फ्यूजन का शिकार तो नहीं.''

दरअसल 'कन्फ्यूजन' होने पर डर और गुस्सा दो इमोशन हमारे अंदर पैदा होते हैं. इस उदाहरण को ऐसे समझे, जैसे आप एक कार खरीदने जाते हैं. आपको उसका रंग नहीं पसंद. लेकिन आपके दोस्त आपको कहते हैं कि देख भाई इस ब्रांड की यह आखिरी गाड़ी है. अगर चूक गए तो फिर महीनों इतंजार करना पड़ेगा. आपके ऊपर दबाव है कि अपने नापसंदगी को एक मौके के रूप में तब्दील कर दें. आप उस कार को खोने के डर से खरीद तो लेते हैं लेकिन उस गुस्से का क्या करेंगे जो आपकी पसंद का रंग ना मिलने की वजह से पैदा हुआ. गाहे-बगाहे आपको अपनी पसंद के रंग की गाड़ी की याद आती रहेगी और कहीं अगर उस रंग की गाड़ी आप किसी और के पास देखेंगे तो खुद की गाड़ी के प्रति क्षणिक ही सही थोड़ा खीझ पैदा होगी.

यही कुछ संबंधों मं भी होता है. आपने किसी के प्यार में अगर किसी डर या दबाव की वजह से पड़े हैं तो आप उसके साथ स्थिर इमोशन के साथ नहीं रह पाएंगे. गुस्सा हावी होगा तो उससे ब्रेक-अप कर लेंगे और फिर विकल्पहीनता का डर पैदा होगा तो उसे मनाने दौड़ पड़ेंगे. कई बार आप एक छोड़ दूसरे और फिर दूसरे छोड़ तीसरे और फिर न जाने कितने ब्रेक-अप रिलेशनशिप से गुजरेंगे.

कन्फ्यूजन ही है कोई पहाड़ तो नहीं जो टूटेगा ही नहीं...

कन्फ्यूजन से उपजे डर और गुस्से को दबाने की जगह उसका गहराई से विश्लेषण करने की जरूरत है. जाहिर आप खुद नहीं कर पाएंगे लेकिन कन्फ्यूजन के इस दौर से आप गुजर रहे हैं तो किसी मनोवैज्ञानिक से सलाह लें. क्योंकि डिलेरियम यानी 'एक्यूट कन्फ्यूजन स्टेट' लाइलाज नहीं है. थिरैपिस्ट आपको डर और गुस्सा दोनों इमोशंस को पहचानकर वास्तविक प्यार वाली फीलिंग जगाने में मदद करेगा. अगर जीवन साथी तलाश रहे हैं तब भी और अगर जीवनसाथी चुन चुके हैं दोनों स्थितियों में थिरैपिस्ट आपके लिए मददगार साबित होगा.

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