''अब तो दुधमुंहे बच्चों के लिए दूध तक नहीं मिल रहा, हमें न सही कम से कम सरकार हमारे बच्चों को तो बचाए.'' दिल्ली की जीबी रोड में रहने वाली रुनझुन (बदला हुआ नाम) 3 महीने के बच्चे की मां हैं. उनकी जमा पूंजी अब खत्म हो रही है. घर मालकिन यानी जहां वह रहती हैं उस कमरे की मालकिन भी उन पर बार-बार किराया देने का दबाव बना रही है. रुनझुन कहती हैं, हमारा धंधा तो मार्च से ही ठप है, आखिर हम पैसा लाएं तो कहां से ? इसी इलाके में रहने वाली चंद्रमुखी (बदला हुआ नाम ) कहती हैं, दिल्ली सरकार स्कूलों में खाना बांट रही है, लेकिन हम वहां पहुंचे तो कैसे? यहां पुलिस का पहरा बहुत सख्त है. और हमें निकलने की इजाजद नहीं. इस इलाके में तो कोई दानदाता भी नजर नहीं डालता. शायद इन दानताओं की दया इन बदनाम गलियों तक पहुंचने में शर्मिंदगी महसूस करती होगी?
इसी गली में रहने वाली तीन साल पहले ट्रैफिकिंग के जरिए नेपाल से आई नेहा (बदला हुआ नाम) कहती हैं, सरकार इस संकट की घड़ी में भी हमारे लिए खाने के पैकिट नहीं भेज पाती. क्या यह सरकार केवल इज्जतदार लोगों की मदद के लिए है या इन अंधेरी गलियों में नेताओं और दानवीरों को आने से भी डर लगता है?
दिल्ली में सेक्स वर्कर्स का बुरा हाल
सेक्स वर्कर्स के बच्चों की एजुकेशन और उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए दिल्ली में काम करने वाली संस्था कट-कथा के अनुराग कहते हैं, कहते हैं, '' मजदूर तो लॉकडाउन के बाद अपने काम धंधे पर वापस आ भी जाएंगे लेकिन सेक्स वर्कर्स के साथ दिक्कत यह है कि लॉकडाउन के बाद भी महीनों कस्टमर नहीं आएंगे, ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती होगी इस संकट के बाद उन्हें जीवन यापन के लिए मदद करना.
हम यह भी कोशिश कर रहे हैं कि सरकार लॉकडाउन खुलने के बाद इन्हें किसी दूसरे कामधंधे के अवसर मुहैया करवाए.
वे कहते हैं, कुछ दिक्कत सबसे ज्यादा उन औरतों को है जिनके छोटे बच्चे हैं. बच्चों के लिए दूध मिलना मुश्किल हो रहा है.
हालांकि हमने कुछ हमने ऑनलाइन फंड जुटाकर सेक्स वर्कर्स के तकरीबन 750 परिवारों में राशन और कुछ सैनेटाइजर और मास्क भी बांटे, लेकिन अब जब लॉकडाउन का समय बढ़ गया है तो आगे भी इन्हें राशन की जरूरत होगी.
ऐसे में हमने अपना ऑनलाइन फंड जुटाने का का क्रार्यक्रम जारी रखा है.''
दिल्ली में अजमेरी गेट से लाहौरी गेट तक की दूरी के बीच मौजूद जीबी रोड में तकरीबन 100 वेश्यालय (brothels)हैं. यहां करीब 25,000 परिवार रहते हैं.
मुंबई में भुखमरी की कगार पर
मुंबई स्थित क्रांति संस्था लगातार सेक्स वर्कर्स की बच्चियों की शिक्षा और उनके भविष्य को बेहतर बनाने का काम कर रही है. यह संस्था इन बच्चियों को आवास भी मुहैया करवाती है. संस्था की कोफाउंडर बानी दास कहती हैं, '' 8-10 दिन पहले सेक्स वर्कर की एक बेटी के पास उसकी मां का फोन आया. उसने बताया कि उसकी तबियत ठीक नहीं है.
दरअसल उसे एचआइवी और टीवी दोनों है. अचानक तेज बुखार और दर्द से वह बेहाल थी. साथ ही उसके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं था. मैंने उसकी फाइल ली और हॉस्पिटल पहुंच गई. लेकिन हॉस्पिटल ने फिलहाल कोविड के अलावा दूसरे मरीजों के लिए स्टाफ की कमी का हवाला देकर मना कर दिया. होली फैमिली हास्पिटल, लीलावती हास्पिटल, महावीर हास्पिटल इन तीन हास्पिटल से निराश होने के बाद मैंने कई अन्य हास्पिटल्स में फोन घुमाए लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला.
बानी दास कहती हैं, '' रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा को पूरी तरह लॉक कर दिया गया है ना कोई जा सकता है और ना कोई आ सकता है. सरकार ने इन्हें चाकचौबंद लॉकडाउन में तो डाल दिया लेकिन राशन या खाने के पैकिट पहुंचाने की जरूरत नहीं समझी. कोई हाइजीन संबंधी सामाग्री भी यहां नहीं पहुंच रही.
कई औरतें ऐसी हैं जिनके पास कमरे का किराया देने का पैसा नहीं है. घर मालकिन लागातर पैसा देने का दबाव डाल रही है. 200 वर्गमीटर के एरिया में पांच-पांच औरतें रहती हैं.
छोटे बच्चे भी वहीं पर. वहीं खाना बनाना और ऊपर एक छोटे से स्टोरनुमा कमरे में अपना बिजनेस भी करना होता है. पानी बेहद सीमित मात्रा में आता है.
अब सोचिए यहां क्या सोशल डिस्टेंसिंग होगी और क्या हाइजिन?'' वे कहती हैं, मैं 200 पैकिट खाने के लेकर कुछ दिन पहले इस इलाके में गई तो इतनी लंबी कतार औरतों की थी कि मैं समझ ही नहीं पा रही थी किसे दूं और किसे नहीं.
कोरोना संकट के बीच सेक्स वर्कर्स की व्यथा कथा बताते हुए बानी दास कहती हैं, समझ नहीं आता कि तकरीबन 5,000 परिवार वाले यह मोहल्ले सरकार को नजर क्यों नहीं आते? यकीन मानिए यह औरतें भुखमरी की कगार पर हैं. इनके छोटे-छोटे बच्चों तक दूध भी नहीं पहुंच रहा.
गुलजार रहने वाले सोनागाछी में भी पसरा सन्नाटा
कस्टमर्स की आवाजाही और सेक्स वर्कर्स की कतारों से हमेशा गुलजार रहने वाले सोनागाछी इलाके में इन दिनों भूतिया सन्नाटा छाया हुआ है. एशिया के सबसे बड़े सेक्स मार्केट में से एक सोनागाछी इलाके में 11,000 सेक्स वर्कर्स रहती हैं. कोरोना संकट के बाद बेहद छोटे अंधेरे कमरों में रहने वाली यह औरतें बिल बचाने के लिए बिजली तक जलाने से कतरा रही हैं. इनमें से एक सेक्स वर्कर कहती है, ''घर का किराया बाकी है, इसलिए जैसे भी हो हम पैसा बचाने की कोशिश कर रहे हैं. इस कमरे का प्रति माह किराया 70,000 है जबकि एक हाई क्लास सेक्स वर्कर हफ्ते में इतना पैसा कमा लेती है.
कोरोना संकट की वजह से यह सेक्स बाजार बंद है. धंधा ठप है. यहां अब कस्टमर्स की आवाजाही बंद है. पुलिस इन लोगों को बाहर आने से लगातार रोक रही है तो दूसरी तरफ यहां कुछ राजनीतिक गुंडे लगातार कोविड-19 के प्रचार प्रसार का हवाला देकर यह तय कर रहे हैं कि यहां कोई धंधा न हो.
सेक्स वर्कर पूर्णिमा (बदला हुआ नाम) कहती हैं, '' लॉकडाउन के बाद भी कुछ दिनों तक कुछ कस्टमर आते रहे. दरबार (Durbar) नाम की एक महिला समन्वय कमेटी ने इस बीच सेक्स वर्कर्स को सुरक्षित सेक्स, हाइजीन के बारे में सजग करने के लिए वर्कशॉप भी की थी. इसमें मास्क लगाने से लेकर सैनेटाइजेशन तक की सारी जानकारी सेक्स वर्कर्स को दी गई थी. लेकिन पार्टी के नेताओं ने यह सब बंद करा दिया. कमा धंधा ठप होने से झल्लाई पूर्णिमा गुस्साकर कहती हैं कि वैसे भी यह माना जाता है कि बुराई या किसी भी तरह का वायरस तो हम ही फैलाते हैं.
सोनागाछी रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर समरजीत जना (Smarajit Jana)के मुताबिक 7,000 से 10,000 कस्टमर हर शनिवार और रविवार को यहां आते हैं. इन दोनों दिनों में मिलाकर कई करोड़ की कमाई होती है. लेकिन इन दिनों न तो सेक्स वर्कर्स की कतारें हैं और न कस्टमर की आवाजाही.
इससे पहले डिमोनेटाइजेशन के वक्त तकरीबन 70 फीसद बिजनेस का नुक्सान हुआ था. पूर्णिमा कहती हैं कि लॉकडाउन के वक्त तो हमारी बुरी हालत है ही लेकिन लॉकडाउन के बाद भी महीनों साफ-सफाई के चलते कस्टमर यहां नहीं आएंगे. यानी जब देश में सारे उद्योग धंधे चल पड़ेंगे तब भी यह सेक्स मार्केट ठप ही रहेगा.
ज्याादार औरतों के पास रखी नकदी खतम हो चुकी है. यहां कई औरतों ने दरबार संस्था द्वारा चलाए जा रहे बैंक में अपना खाता खुलवा रखा लेकिन दिक्कत यह है कि वे अपना पैसा अब निकाल नहीं सकतीं. मदद के नाम पर रामकृष्ण मिशन और कुछेक सैलिब्रिटीज ने राशन और कुछ हाइजिन की चीजें इन तक पहुंचाई हैं.
राज्य महिला एवं बाल विकास मंत्री शशि पंजा ने भी यहां अपनी संसदीय सीट और वोट बैंक होने के नाते कुछ सामान वितरण किया है. हालांकि 11 अप्रैल को यहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पुलिस को ट्रांसजेंडर और सेक्स वर्कर्स को राशन पहुंचाने का निर्देश दिया था. लेकिन यह सब मदद जमीनी स्तर पर बेहद सीमित ही साबित हो रही है.
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