सांगली के बाबूराव देशपांडे का चार एकड़ में करीब 42-44 टन अंगूर तैयार हुआ. अंगूर की खेती बढ़िया होने की वजह से इस बार उन्हें अच्छे मुनाफे का अनुमान था. लेकिन कोरोना संकट के चलते लगाए गए लॉकडाउन ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. मजदूर न मिलने की वजह से बेलों से अंगूर की तुड़ाई हो नहीं पा रही. अब तक 10-12 टन अंगूर सड़ भी चुका है. बाबूराव बताते हैं कि 20-मार्च से लेकर 20 अप्रैल तक का समय अंगूर किसानों के लिए बेहद अहम है. लेकिन यही समय लॉकडाउन में गुजर गया.
भारतीय किसान यूनियन के सदस्य शंकर दारेकर कहते हैं, ''देश में कोरोना वायरस (corona virus) का प्रभाव आते-आते उपलब्ध उत्पाद से लगभग 75 से 80 प्रतिशत अंगूर की तुड़ाई हो चुकी थी और अनुमानत: 20-25% फसल बागों में बाकी थी. लॉकडाउन की वजह से घरेलू बाजार में अंगूर की मांग में भारी कमी आने के साथ ही सप्लाई सिस्टम बुरी तरह से प्रभावित हो गया है. अंगूर बागों में काम करने वाले मजदूरों में से लगभग 50% मजदूर अन्य राज्यों के होते हैं और लॉकडाउन के डर से यह मजदूर भी अपने अपने क्षेत्रों को लौटने लगे. ऐसे में अंगूर किसानों के सामने विकट संकट खड़ा हो गया है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप-महानिदेशक (बागवानी) आनंद कुमार सिंह कहते हैं, '' किसानों को इस संकट से उबारने के लिए हमने अपनी चार साल पहले खोजी कई टेक्निक का इस्तेमाल करना शुरू किया है. लॉकडाउन की अवधि बढ़ चुकी है. आगे भी कुछ महीनों तक तो बाजार उस तरह से नहीं चल पाएंगे जैसे चलते थे. ऐसे में हमने अंगूर से किशमिश बनाने की टेक्निक किसानों तक पहुंचानी शुरू की. राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र, पुणे ने इस काम को बखूबी किया. इसका नतीजा यह निकला की कई किसान इस टेक्नोलोजी का इस्तेमाल कर किशमिश बना रहे हैं. आपदा प्रबंधन के लिए समाधान बनकर आई यह तरकीब भविष्य में भी अंगूर किसानों के लिए एक मजबूत विकल्प बनकर उभरेगी.''
आनंद सिंह कहते हैं कि इस समय अंगूर की कीमत 10-15 रु. प्रति किलो बड़ी मुश्किल से किसानों को मिल रही जबकि सामान्य समय में यही कीमत 50-60 रु. प्रति किलो होती है.लेकिन किशमिश की कीतम 200 रु. 250 रु. और 350 प्रति किग्रा. तक होती है. एक किलो किशमिश बनाने में तकरीबन चार किग्रा. अंगूर तक बिकती है. अगर अंगूर किसान इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना सीख जाते हैं तो फिर भविष्य में भी उनके लिए मुनाफेदार विकल्प के दरवाजे खुल जाएंगे.
तासगांव, सांगली में माहाराष्ट्र राज्य द्राक्ष उत्पादक संघ के पूर्व अध्यक्ष सुभाष आर्वे ने ने राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों से इस विधि के बारे में जानकारी लेकर अंगूर की दो किस्मों तास-ए-गणेश तथा माणिक चमन के निर्यात योग्य अंगूर के 3 एकड़ पर फैले बागों पर सुझाई गई विधि का प्रयोग कर किशमिश बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. सुभाष आर्वे जी कहते हैं, वे अन्य किसानों को लगातार इसकी जानकारी दे रहे हैं. किसानों के बीच उम्मीद जागी है कि यह नई टेक्नोलॉजी इस समय हताश किसानों के नुक्सान को कम करने में मददगार साबित होगी.
किसानों तक अंगूर से किशमिश बनाने के तरीके को व्हाट्ऐप, अखबार और यूट्यूवब से पहुंचा रहे वैज्ञानिक
मजदूरों की गैरमौजूदगी, ट्रांसपोर्टेशन की समस्या के दौरान अंगूर से किशमिश बनाने का विकल्प इस संकट की घड़ी में किसानों के हताश चेहरे खिला सकता है. यही सोचकर राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र, पुणे (ICAR-National Research Centre for grapes, Pune) के वैज्ञानिकों ने अपने अनुभवों के आधार पर अंगूर उत्पादकों को सलाह देना शुरू किया कि वह अंगूर को लता पर ही इसे सुखाना शुरु करें. इससे अंगूर उन क्षेत्रों में भी आसानी से सुखाए जा सकते हैं जहां अंगूर सुखाने के लिए अनिवार्य व्यवस्थाएं जैसे कि किशमिश शेड उपलब्ध नहीं हैं. इस विधि से अंगूर बनाने में कम मजदूरों की आवश्यकता होती है. अंगूर को ज्यादा दिनों तक रखा नहीं जा सकता है ऐसे में लॉकडाउन की वजह से बर्बाद हुए बाजार की मार भी किसानों को नहीं पड़ेगी और उन्हें जुलाई अगस्त तक तैयार किशमिश के अच्छे दाम भी मिल जाएंगे.
-अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने लता पर अंगूर सुखाने की विधि को किसानों के बीच पहुंचाने के लिए इस विधि के पीडीएफ को अलग-अलग व्हाट्सऐप ग्रुपों के जरिए किसानों के संगठनों के बीच फैलाई.
-इस विधि को अग्रोवन (एक दैनिंक कृषि समाचार पत्र) में भी प्रकाशित किया और अनुसंधान केंद्र की वेबसाइ पर भी अपलोड किया. इसके अलावा एक वीडियो बनाया गया और इस वीडयो को इस अनुसंधान केंद्र के यूट्यूब चैनल पर भी अपलोड किया तथा बहुत से व्हाट्सअप ग्रुपों में भी भेजने का कार्य किया.
कुछ किसानों से सीधे मोबाइल पर भी बात कीं और शंका समाधान किया. इस प्रकार भाकृअनुप–राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों के प्रयास रंग लाने लगे तथा बहुत से अंगूर उत्पादकों ने किशमिश बनाने का कार्य प्रारम्भ किया.
निर्यातकों की विशेष मांग पर राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र, पुणे ने दो प्रयोगशालाओं नाशिक स्थित एनएचआरडीएफ तथा मुम्बई की जिओकेम प्रयोगशाला को काम करने की अनुमति दिलाई.
भारत में अंगूर की पैदावार
भारत में अंगूर उत्पादन मुख्य रूप से महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्यों में केन्द्रित है. एक अनुमान के अनुसार इस वर्ष अंगूर लगभग 138 हजार हेक्टेयर क्षेत्र पर उपलब्ध था और अच्छी फसल का अनुमान था. कुल उत्पादन का लगभग 84% हिस्सा महाराष्ट्र राज्य में उत्पादित किया जाता है जबकि 11% कर्नाटक राज्य से आता है.
अंगूर के कुल उत्पादन का लगभग 10-12% हिस्सा विभिन्न देशों को निर्यात किया जाता है. जबकि कुल उत्पादन का लगभग 27-28 प्रतिशत किशमिश बनाने में उपयोग कर लिया जाता है. महाराष्ट्र के सांगली तथा सोलापुर जिले एवं कर्नाटक के विजयापुरा एवं बागलकोट जिलों में अंगूर का उत्पादन प्रमुख रूप से किशमिश बनाने के लिए अब तक किया जाता था.
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