सत्ताइस मई को सीबीआइ की ओर से दायर दो आरोप-पत्रों की मानें तो पिछले साल असम के बोडोलैंड क्षेत्रीय स्वायत्त जिला (बीटीएडी) और धुबरी दो जिलों में भड़की जातीय हिंसा के जिम्मेदार नेशनल डेमोक्रेटिक फंड आफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के उग्रवादी थे. आरोप-पत्र में कहा गया है कि एक प्राइमरी स्कूल से 9,000 रु. वसूलने की कोशिश नाकाम होने पर यह हिंसा भड़की.
सीबीआइ की दो विशेष जांच टीमें 2012 में असम में भड़के इन दंगों से जुड़े सात मामलों की जांच कर रही थीं. चार मामले कोकराझार के, दो चिरांग के और एक धुबरी जिले का था. पहला आरोपपत्र कोकराझार के जॉयपुर में 20 जुलाई को चार बोडो युवाओं की हत्या से जुड़ा है. दूसरे में 22 जुलाई को चिरांग जिले में मंगोलिया के पास दो समूहों के बीच हुए टकराव का जिक्र है.
दोनों ही आरोपपत्रों को ध्यान से पढऩे पर पता चलता है कि एक महीने तक चली जिस हिंसा में कोकराझार, बक्सा, चिरांग और धुबरी जिलों के सौ से ज्यादा लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और साढ़े चार लाख से ज्यादा बेघर हुए, उसकी वजह थी भलाताल के प्राइमरी स्कूल नंबर 800 में हुई जबरन वसूली. भलातल हिंसा का केंद्र रहे कोकराझार से महज 45 किलोमीटर दूर है.
21 फरवरी को चिरांग जिले के एक प्राइमरी स्कूल को सर्व शिक्षा अभियान के तहत मिलने वाली कुल 3.28 लाख रु. की ग्रांट में से 1.64 लाख रु. की पहली किस्त मिली. अगले महीने एनडीएफबी के उग्रवादियों ने स्कूल के हेडमास्टर कांतेश्वर रे को वसूली नोटिस भेजकर कुल रकम का तीन फीसदी यानी यही कोई 9,000 रु. चुकाने को कहा. लगातार धमकियां मिलने के बाद स्कूल प्रबंधन समिति के अध्यक्ष जैनुद्दीन शेख ने अप्रैल में बिजनी कस्बे से करीब पांच किमी दूर मंगोलिया बाजार में एनडीएफबी को पैसे चुका दिए.
चार जुलाई को 1.64 लाख रु. के रूप में स्कूल को ग्रांट की दूसरी किस्त जारी होने पर एनडीएफबी ने फिर नोटिस भेजकर 9,000 रु. मांगे. 19 जुलाई को एनडीएफबी के दो उग्रवादी भलाताल में शेख के घर आ धमके, लेकिन उन्होंने कुछ गांव वालों की मदद से दोनों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया. उस समय कोकराझार में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अफसर कहते हैं, ''सारी मुसीबत इसी के बाद शुरू हुई. शेख के ऑल बोडोलैंड माइनॉरिटी स्टुडेंट्स यूनियन (एबीएमएसयू) के साथ करीबी रिश्ते थे और यह यूनियन बोडो उग्रवादियों के खिलाफ बहुत मुखर है. इस घटना के बाद सशस्त्र उग्रवादी इस संघर्ष में शामिल हो गए, इसके बाद बोडो और अप्रवासी मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ गया.”
अगली शाम कोकराझार के भाटीपारा इलाके में दो शरारती तत्वों ने हवाई फायरिंग की. प्रतिक्रिया में पास के जॉयपुर बाजार में करीब 500 लोग जमा हो गए और बोडो विरोधी नारे लगाने लगे. गुस्साई भीड़ ने मोटरसाइकिल सवार चार बोडो युवकों को पकड़ा और पुलिस के पहुंचने के बावजूद युवकों को फायरिंग का जिम्मेदार बताते हुए मार डाला. दो दिन बाद 22 जुलाई को उन दो लोगों को मंगोलिया बाजार में मार डाला गया, जिन्होंने एनडीएफबी के उग्रवादियों को पकडऩे में शेख की मदद की थी. दो घंटे के भीतर ही भलाताल के 40 लोगों ने पास के बोडो बहुल इलाके हशरावारी पर हमला बोल दिया. इसी के बाद बीटीएडी और धुबरी जिलों में हिंसा फैल गई.
चार्जशीट में इस बात का जिक्र नहीं है कि एनडीएफबी के किस धड़े ने वसूली की मांग की थी, प्रगतिशील रंजन दैमारी धड़े ने या संगविजित धड़े ने? सीबीआइ जांच के केंद्र में जॉयपुर और हशरावारी में हुई घटनाएं रही हैं, लेकिन दंगे फैलने के साथ हिंसा की चपेट में आने वाली कई दूसरी घटनाओं को जांच से बाहर रखा गया. मसलन, 6 जुलाई को कोकराझर जिले के मुसलमानपाड़ा में दो मुस्लिम नौजवानों की हत्या और 19 जुलाई को कोकराझर के पास हुई गोलीबारी की घटना, जिसमें एबीएमएसयू के पूर्व अध्यक्ष मोइनुल हक और उनके एक भाई घायल हो गए थे. 8 जनवरी को सीबीआइ ने हक को दो अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार करते हुए उन्हें जॉयपुर में हुई हिंसा का मास्टरमाइंड बताया.
हैरत नहीं कि सीबीआइ ने आरोपपत्र में सारा दोष अल्पसंख्यक समुदाय पर मढ़ दिया है. मुख्यमंत्री तरुण गोगोई खुद दंगों के दौरान बोडो लैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ खड़े नजर आए थे. बोडो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ ) फिलहाल स्वायत्त जिले में सत्ता में है और 2006 से ही राज्य में सत्ता पर काबिज कांग्रेस का सहयोगी रहा है.
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआइयूडीएफ) के महासचिव अमीनुल इस्लाम कहते हैं, ''आरोपपत्र से साफ है कि इसमें केवल मुसलमानों को दोषी दिखाने की कोशिश की गई है. सीबीआइ राज्य सरकार के इशारे पर काम कर रही है क्योंकि बीपीएफ उसका सहयोगी दल है.” एबीएमएसयू के अध्यक्ष शहाबुद्दीन अली अहमद भी कहते हैं, ''रिपोर्ट सीधे तौर पर बोडो के पक्ष में तैयार की गई है.
हम असली दोषियों को पकड़वाने के लिए उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हैं.” ऑल असम माइनॉरिटी स्टुडेंट्स यूनियन को बीपीएफ के दो नेताओं प्रदीप कुमार ब्रह्मा और मोनो कुमार ब्रह्मा पर शक है. दोनों को पिछले साल क्रमश: अगस्त और नवंबर में हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की राज्य इकाई ने कहा है कि वह सीबीआइ के आरोपपत्र को गुवाहाटी हाइकोर्ट में चुनौती देगी. संगठन के राज्य सचिव और एआइयूडीएफ के महासचिव हाफिज बशीर अहमद कहते हैं, ''सीबीआइ का आरोपपत्र केवल कुछ मामलों पर आधारित है.” इस घटना के बारे में कुछ मामलों के आधार पर और एक बड़ी तस्वीर को नजरअंदाज करते हुए किसी निष्कर्ष पर पहुंचना गलत है.
बीपीएफ नेतृत्व फिलहाल किसी भी तरह के विवाद में पडऩे से बचने के लिए कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. बीपीएफ नेता और असम के परिवहन मंत्री चंदन ब्रह्मा कहते हैं, ''मैं इस पर उस वक्त टिप्पणी करूंगा जब सभी आरोपपत्र दाखिल हो जाएंगे.” मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने इंडिया टुडे की तमाम कोशिशों के बावजूद मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की.
सीबीआइ की दो विशेष जांच टीमें 2012 में असम में भड़के इन दंगों से जुड़े सात मामलों की जांच कर रही थीं. चार मामले कोकराझार के, दो चिरांग के और एक धुबरी जिले का था. पहला आरोपपत्र कोकराझार के जॉयपुर में 20 जुलाई को चार बोडो युवाओं की हत्या से जुड़ा है. दूसरे में 22 जुलाई को चिरांग जिले में मंगोलिया के पास दो समूहों के बीच हुए टकराव का जिक्र है.
दोनों ही आरोपपत्रों को ध्यान से पढऩे पर पता चलता है कि एक महीने तक चली जिस हिंसा में कोकराझार, बक्सा, चिरांग और धुबरी जिलों के सौ से ज्यादा लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और साढ़े चार लाख से ज्यादा बेघर हुए, उसकी वजह थी भलाताल के प्राइमरी स्कूल नंबर 800 में हुई जबरन वसूली. भलातल हिंसा का केंद्र रहे कोकराझार से महज 45 किलोमीटर दूर है.
21 फरवरी को चिरांग जिले के एक प्राइमरी स्कूल को सर्व शिक्षा अभियान के तहत मिलने वाली कुल 3.28 लाख रु. की ग्रांट में से 1.64 लाख रु. की पहली किस्त मिली. अगले महीने एनडीएफबी के उग्रवादियों ने स्कूल के हेडमास्टर कांतेश्वर रे को वसूली नोटिस भेजकर कुल रकम का तीन फीसदी यानी यही कोई 9,000 रु. चुकाने को कहा. लगातार धमकियां मिलने के बाद स्कूल प्रबंधन समिति के अध्यक्ष जैनुद्दीन शेख ने अप्रैल में बिजनी कस्बे से करीब पांच किमी दूर मंगोलिया बाजार में एनडीएफबी को पैसे चुका दिए.
चार जुलाई को 1.64 लाख रु. के रूप में स्कूल को ग्रांट की दूसरी किस्त जारी होने पर एनडीएफबी ने फिर नोटिस भेजकर 9,000 रु. मांगे. 19 जुलाई को एनडीएफबी के दो उग्रवादी भलाताल में शेख के घर आ धमके, लेकिन उन्होंने कुछ गांव वालों की मदद से दोनों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया. उस समय कोकराझार में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अफसर कहते हैं, ''सारी मुसीबत इसी के बाद शुरू हुई. शेख के ऑल बोडोलैंड माइनॉरिटी स्टुडेंट्स यूनियन (एबीएमएसयू) के साथ करीबी रिश्ते थे और यह यूनियन बोडो उग्रवादियों के खिलाफ बहुत मुखर है. इस घटना के बाद सशस्त्र उग्रवादी इस संघर्ष में शामिल हो गए, इसके बाद बोडो और अप्रवासी मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ गया.”
अगली शाम कोकराझार के भाटीपारा इलाके में दो शरारती तत्वों ने हवाई फायरिंग की. प्रतिक्रिया में पास के जॉयपुर बाजार में करीब 500 लोग जमा हो गए और बोडो विरोधी नारे लगाने लगे. गुस्साई भीड़ ने मोटरसाइकिल सवार चार बोडो युवकों को पकड़ा और पुलिस के पहुंचने के बावजूद युवकों को फायरिंग का जिम्मेदार बताते हुए मार डाला. दो दिन बाद 22 जुलाई को उन दो लोगों को मंगोलिया बाजार में मार डाला गया, जिन्होंने एनडीएफबी के उग्रवादियों को पकडऩे में शेख की मदद की थी. दो घंटे के भीतर ही भलाताल के 40 लोगों ने पास के बोडो बहुल इलाके हशरावारी पर हमला बोल दिया. इसी के बाद बीटीएडी और धुबरी जिलों में हिंसा फैल गई.
चार्जशीट में इस बात का जिक्र नहीं है कि एनडीएफबी के किस धड़े ने वसूली की मांग की थी, प्रगतिशील रंजन दैमारी धड़े ने या संगविजित धड़े ने? सीबीआइ जांच के केंद्र में जॉयपुर और हशरावारी में हुई घटनाएं रही हैं, लेकिन दंगे फैलने के साथ हिंसा की चपेट में आने वाली कई दूसरी घटनाओं को जांच से बाहर रखा गया. मसलन, 6 जुलाई को कोकराझर जिले के मुसलमानपाड़ा में दो मुस्लिम नौजवानों की हत्या और 19 जुलाई को कोकराझर के पास हुई गोलीबारी की घटना, जिसमें एबीएमएसयू के पूर्व अध्यक्ष मोइनुल हक और उनके एक भाई घायल हो गए थे. 8 जनवरी को सीबीआइ ने हक को दो अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार करते हुए उन्हें जॉयपुर में हुई हिंसा का मास्टरमाइंड बताया.
हैरत नहीं कि सीबीआइ ने आरोपपत्र में सारा दोष अल्पसंख्यक समुदाय पर मढ़ दिया है. मुख्यमंत्री तरुण गोगोई खुद दंगों के दौरान बोडो लैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ खड़े नजर आए थे. बोडो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ ) फिलहाल स्वायत्त जिले में सत्ता में है और 2006 से ही राज्य में सत्ता पर काबिज कांग्रेस का सहयोगी रहा है.
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआइयूडीएफ) के महासचिव अमीनुल इस्लाम कहते हैं, ''आरोपपत्र से साफ है कि इसमें केवल मुसलमानों को दोषी दिखाने की कोशिश की गई है. सीबीआइ राज्य सरकार के इशारे पर काम कर रही है क्योंकि बीपीएफ उसका सहयोगी दल है.” एबीएमएसयू के अध्यक्ष शहाबुद्दीन अली अहमद भी कहते हैं, ''रिपोर्ट सीधे तौर पर बोडो के पक्ष में तैयार की गई है.
हम असली दोषियों को पकड़वाने के लिए उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हैं.” ऑल असम माइनॉरिटी स्टुडेंट्स यूनियन को बीपीएफ के दो नेताओं प्रदीप कुमार ब्रह्मा और मोनो कुमार ब्रह्मा पर शक है. दोनों को पिछले साल क्रमश: अगस्त और नवंबर में हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की राज्य इकाई ने कहा है कि वह सीबीआइ के आरोपपत्र को गुवाहाटी हाइकोर्ट में चुनौती देगी. संगठन के राज्य सचिव और एआइयूडीएफ के महासचिव हाफिज बशीर अहमद कहते हैं, ''सीबीआइ का आरोपपत्र केवल कुछ मामलों पर आधारित है.” इस घटना के बारे में कुछ मामलों के आधार पर और एक बड़ी तस्वीर को नजरअंदाज करते हुए किसी निष्कर्ष पर पहुंचना गलत है.
बीपीएफ नेतृत्व फिलहाल किसी भी तरह के विवाद में पडऩे से बचने के लिए कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. बीपीएफ नेता और असम के परिवहन मंत्री चंदन ब्रह्मा कहते हैं, ''मैं इस पर उस वक्त टिप्पणी करूंगा जब सभी आरोपपत्र दाखिल हो जाएंगे.” मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने इंडिया टुडे की तमाम कोशिशों के बावजूद मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की.