राजनैतिक जोखिम वाले एक फैसले के तहत मोहन यादव सरकार उस विकेंद्रीकृत खाद्यान्न खरीद प्रणाली को छोड़ना चाहती है जो मध्य प्रदेश में 2007-08 से चली आ रही है.
केंद्र ने प्रदेश सरकार के इस अनुरोध पर अभी कोई फैसला नहीं किया है कि भारतीय खाद्य निगम (FCI) सीधे किसानों से अनाज खरीदे. कांग्रेस ने पहले ही इस मुद्दे को ताव दे दिया है.
तो आखिर हो क्या रहा है? यादव एक ऐसी व्यवस्था को क्यों तिलांजलि दे रहे हैं जो वोट दिलाने में मददगार रही है?
सूत्रों का कहना है कि इसकी वजह वित्तीय है. केंद्रीय पूल में मध्य प्रदेश के गेहूं का हिस्सा 26 फीसद और चावल का 6 फीसद है. विकेंद्रीकृत खरीद में राज्य अनाज खरीदता है, ट्रांसपोर्ट करता है और तब तक वेयरहाउस में रखता है, जब तक एफसीआइ स्टॉक को नहीं उठा लेता.
इसलिए मध्य प्रदेश को राज्य की अपनी सब्सिडी के अलावा शुरू में खुद की एजेंसियों की पूरी लॉजिस्टिक्स लागत भी उठानी पड़ती है. यह तभी वापस मिलती है जब एफसीआइ स्टॉक लेता है.
मगर, राज्य की खरीद और केंद्र के इस अनाज को उठाने के बीच अक्सर समय का अंतराल बहुत होता है, इसलिए इसमें देरी होती है. लिहाजा, राज्य को कर्ज लेना पड़ता है. मध्य प्रदेश ने 2007-08 से, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस मॉडल को अपनाया था, 7,212 करोड़ रुपए का ऋण लिया है. ब्याज का बोझ उसके खजाने को नुक्सान पहुंचा रहा है. इसलिए इसे खत्म करना वित्तीय समझदारी है. हालांकि इससे बचत तो होगी, लेकिन कृषि क्षेत्र की जोरदार वृद्धि के लंबे दौर को भी खतरा होगा.
हरे-भरे साल
चौहान के कार्यकाल में कुल फसल रकबे में लगभग 50 फीसद की बढ़ोतरी हुई थी. खरीद पर बोनस की वजह से ग्रामीण इलाकों में खरीद केंद्रों और वेयरहाउसों की भरमार हो गई. वे क्वालिटी को लेकर भी ज्यादा परेशान नहीं करते थे. किसानों के लिए फसल बेचना आसान हो गया, उन्हें दूर के सेंटर पर कई दिनों तक लाइन में नहीं लगना पड़ता था. कृषि आय में वृद्धि राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी हो गई.
मध्य प्रदेश बीमारू कैटेगरी से बाहर आ गया. 'मामा', जैसा कि शिवराज को कहा जाता है, घर-घर में जाना-पहचाना नाम बन गया. भाजपा को कई चुनावों में इसका लाभ मिला. कभी छोटे से हिस्सेदार प्रदेश ने एक साल (2020) तो अग्रणी राज्य पंजाब को भी पीछे छोड़ दिया और सबसे अधिक 129.42 लाख टन गेहूं की खरीद की. केंद्रीय खरीद से इस सबके छिन जाने की संभावना है—उस राज्य में जहां दो-तिहाई आबादी इस प्राथमिक क्षेत्र पर निर्भर है.
वैसे, जिस चीज ने खजाने पर दबाव बढ़ाया है, वह चौहान सरकार की एक और विरासत है—लाडली बहना का भुगतान अब 1,500 रुपए प्रति महीना है. तो एक हाथ उसे छीन रहा है जो दूसरा देता है.
खास बातें
> मध्य प्रदेश विकेंद्रीकृत खाद्यान्न खरीद प्रणाली को खत्म करने की ओर
> यह चौहान की विरासत है जिसने कृषि को तो लाभ पहुंचाया, मगर इससे राज्य के खजाने पर बोझ भी पड़ा

