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तमिलनाडु: क्या गुफा वाले मंदिर के सहारे द्रविड़ों के वोटबैंक में सेंध लगाना चाहती है BJP?

तमिलनाडु में द्रविड़ गढ़ में अपनी पैठ बनाने के लिए BJP अपनी पुरानी रणनीति अपना रही है, जिसके तहत मदुरै का एक प्राचीन मंदिर बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देने का केंद्र बन गया

मदुरै में 3 दिसंबर को सुब्रमण्य स्वामी मंदिर में आयोजित कार्तिगई दीपम उत्सव.
अपडेटेड 23 दिसंबर , 2025

तमिलनाडु में भी एक अयोध्या? यह सुनने में भले ही थोड़ा अजीब लगे, मगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने ध्रुवीकरण वाले नैरेटिव के सहारे राज्य के सांस्कृतिक परिदृश्य को बदलने की कोशिश में कुछ भी करने को तैयार दिख रही है.

यही वजह है कि मदुरै की एक पवित्र पहाड़ी को लेकर पुराना विवाद एक बार फिर सतह पर आ गया है और राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छाया है. दरअसल, थिरुपरणकुंद्रम पहाड़ी के नीचे स्थित सुब्रमण्य स्वामी मंदिर सुब्रह्मण्यम या मुरुगन (जो यहां कार्तिकेय को कहते हैं) की पूजा से जुड़े छह स्थलों में एक है.

चट्टान को काटकर बनाए गए गुफा वाले मंदिर में कार्तिक महीने में होने वाला कार्तिगई दीपम उत्सव प्राचीन तमिल शैव परंपरा का एक अनुष्ठान है, जिसका जिक्र संगम ग्रंथों में भी मिलता है. मगर दक्षिणपंथी समूहों का वश चले तो वे पूजास्थल की जगह को बदलते हुए वे उसको पहाड़ी के ऊपर पहुंचा दें.

मगर, आखिर क्यों? वजह है पहाड़ी की चोटी पर स्थित 14वीं सदी की एक दरगाह. दरअसल, सदियों से यह दरगाह किसी तरह की हिंसा के बजाए सद्भाव और साझी संस्कृति वाली धार्मिक प्रथाओं की प्रतीक रही है.

बहरहाल, साल 1920 में जब अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति पूरे चरम पर थी, तब इस पहाड़ी का मालिकाना हक ही सांप्रदायिक और कानूनी विवाद का मुद्दा बना दिया गया. और दरगाह को छोड़कर पूरा फैसला मंदिर के पक्ष में हुआ. फिर भी, उसके बाद सब कुछ ठीक ही चल रहा था.

मगर, दरगाह के पास एक खंभा भी है, जिसे हिंदू समूह 'दीपस्तंभ' कहते हैं. अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद साल 1994 में तनावपूर्ण माहौल के बीच यह स्थानीय मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आया.

इस स्थल को भी उन हिंदू स्थलों में शुमार माना गया जिन्हें कथित तौर पर अवैध कब्जे से मुक्त कराने का इंतजार था. एक याचिकाकर्ता ने मद्रास हाइकोर्ट में याचिका दायर कर दी और अनुष्ठान को मंदिर से दीपस्तंभ में स्थानांतरित करने की मांग की, और उसने दावा किया कि पूजा का मूल स्थान वही है.

फिर उठा विवाद
उस दावे की पुष्टि करता कोई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद नहीं है. इसके विपरीत, आधिकारिक दस्तावेज इस संरचना को एक थियोडोलाइट स्तंभ के तौर पर दर्शाते हैं जो ब्रिटिशकाल में ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे के लिए मैपिंग स्टेशन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. दावा किया जा रहा है कि इसका खोखला ऊपरी हिस्सा तेल भरने के लिए है, जबकि असल में उसे सर्वे के दौरान उपकरण स्थिर रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था.

बहरहाल, साल 1996 में, अदालत ने वह याचिका खारिज कर दी और मंदिर को पूजा की ''पारंपरिक जगह'' माना, जबकि भक्तों को दरगाह से दूर पहाड़ी पर दीये जलाने की इजाजत दे दी. और बाद में दाखिल याचिकाओं पर अदालत ने यथास्थिति को बदलने से साफ मना कर दिया दिया.

अब एक याचिकाकर्ता ने विवाद का पिटारा फिर से खोल दिया है, और उसे इसमें अच्छी-खासी सफलता भी मिली है. दरअसल, 1 दिसंबर को जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने स्तंभ पर दीये जलाने की इजाजत दे दी है. 3 दिसंबर को जब त्योहार मनाया जाना था, राज्य ने फैसले पर अमल करने से मना कर दिया. फिर तो अवमानना याचिकाएं, अपीलें और जवाबी हलफनामों की झड़ी लग गई. सियासत भी गरम हो गई है.

9 दिसंबर को विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के सांसदों के एक समूह ने न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया. उन्होंने जस्टिस स्वामीनाथन के आचरण को पक्षपातपूर्ण और एक खास विचारधारा से प्रेरित बताया है. 

वहीं, 10 दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में विपक्ष के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि वे लोग यह महाभियोग प्रस्ताव ''अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए ले आए हैं.'' इस बीच, तमिलनाडु की भाजपा इकाई को लग रहा है कि राज्य में 'अयोध्या' सरीखा मुद्दा बनना अगले साल के चुनाव में उसके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.

खास बातें

> हाइकोर्ट की एक एकल पीठ ने पहाड़ी पर स्थित दरगाह के पास स्तंभ पर दीये जलाने की इजाजत दे दी है 

> परंपरा, अदालती आदेश और दर्ज इतिहास, ये सभी मंदिर को ही कार्तिगई दीपम का वास्तविक स्थल मानते हैं

> विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के सांसदों के एक समूह ने न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया है

> वहीं, भाजपा को यह मुद्दा अगले साल के चुनाव के मद्देनजर फायदेमंद नजर आ रहा

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