इस बात को करीब 10 साल गुजर गए हैं जब दिल्ली से मुश्किल से 50 किलोमीटर दूर दादरी के एक गांव बिसाहड़ा में 50 साल के मोहम्मद अखलाक को कथित तौर पर पीट-पीटकर मार डाला गया था. उन्हें यह अफवाह फैलने के बाद मारा गया कि उन्होंने एक गाय को मारकर उसका मांस अपने घर में रखा था.
अब वह मामला फिर से चर्चा में है और इससे कानून के साथ-साथ न्याय पर भी सवाल उठते हैं.,विवाद खड़ा करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक स्थानीय अदालत से मामले की चार्जशीट में नामजद सभी 19 लोगों के खिलाफ आरोप वापस लेने की इजाजत मांगी है.
अपनी अर्जी में राज्य ने तीन वजहें बताई हैं. पहली यह कि अखलाक के परिवार वालों ने कथित हत्या में शामिल लोगों को नामजद करते हुए अलग-अलग बातें बताईं. दूसरी, जांचकर्ताओं को आरोपियों से कोई बंदूक या धारदार हथियार नहीं मिला, सिर्फ डंडे, लोहे की रॉड और ईंटें मिलीं. इसका मतलब है कि पहले से प्लानिंग की बात खारिज की जा रही है.
तीसरी बात, भीड़ के हाथों हत्या और एक व्यक्ति के कत्ल के बीच अंतर को धुंधलाते हुए, पुलिस को उन लोगों और मृतक के बीच पहले से कोई दुश्मनी नहीं मिली. इनके आधार पर राज्य ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की एक धारा के तहत नोले प्रोसेकी यानी पर्याप्त सबूत या गवाह की स्पष्ट जानकारी न होने पर केस को औपचारिक रूप से बंद करने की मांग की है, इस धारा के तहत अगर अदालत सहमति देती है तो ऐसा करने की इजाजत है.
कोर्ट ने अभी तक इस अनुरोध पर कोई फैसला नहीं दिया है और मामले को 12 दिसंबर के लिए टाल दिया है. जब तक कोई फैसला नहीं आता, मुकदमा बदस्तूर रहेगा.
पाप की जड़
कभी अखबारों के पहले पन्ने की सुर्खियों में रही यह हत्या 28 सितंबर, 2015 की रात को हुई. वह सोमवार आम दिनों की तरह शुरू हुआ था, उसने तब बड़ा मोड़ ले लिया जब यह खबर फैली कि हिंदू जिस गाय को पवित्र मानते हैं, उसका वध किया गया और खा लिया गया और उसके अवशेष बिजली के एक ट्रांसफॉर्मर के पास फेंक दिए गए.
टेक्स्ट मैसेजों और व्हाट्सऐप फॉरवर्डों ने अफवाहों को और सुलगा दिया. एक लोकल पुजारी को पास के बड़े मंदिर के लाउडस्पीकर से आगाह करने के लिए मनाया गया. जब तक यह शोर पूरे गांव में फैलता, तब तक एक भीड़, जिसमें अधिकतर जमीन मालिक ठाकुर थे, पहले ही निकल पड़ी थी.
केस रिकॉर्ड के मुताबिक, करीब एक हजार लोग उस संकरी गली में जमा हो गए जहां अखलाक रहते थे. गांव के उस हिस्से में कुछ ही मुस्लिम घरों में से एक उनका था. वे पहली मंजिल की छत पर सोने के लिए लेटे ही थे कि भीड़ उनके दरवाजे पर पहुंच गई. बाद में गवाहों ने बताया कि जब भीड़ अंदर घुस रही थी तो 'मारो, मारो' के नारे लग रहे थे.
कहा जाता है कि अखलाक के सिर पर सिलाई मशीन से वार किया गया, उन्हें सीढ़ियों से घसीटा गया और ट्रांसफॉर्मर के पास छोड़ दिया गया, जहां उनकी मौत हो गई. उनके 22 साल के बेटे दानिश को ईंट से पीटा गया. यह हमला गाय से जुड़ी पहली ऐसी मॉब-लिंचिंग बन गया जिसने देश को झकझोर दिया. हफ्तों तक मीडिया में छाया रहा और सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन हुए. विडंबना है कि एक दशक बाद कानूनी खामियां निकाली गई हैं.
हवालात से जमानत तक
शुरू में जांच तेजी से आगे बढ़ी. गौतम बुद्ध नगर पुलिस ने 2015 में 15 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया. इसमें भाजपा के एक स्थानीय नेता के बेटे विशाल राणा और उसके भतीजे शिवम को भीड़ की अगुआई करने वाले मुख्य षड्यंत्रकारी के तौर पर नामजद किया गया. बाद में चार और लोगों को जोड़ा गया, जिससे कुल 19 लोग हो गए. उनमें से एक की मौत 2016 में हो गई. आरोपी 2017 तक जमानत पर रिहा हो गए और तब से बाहर हैं.
अखलाक के घर से जब्त मांस विवाद का एक और मुद्दा बन गया. मथुरा की एक फॉरेंसिक लैब ने रिपोर्ट दी कि यह गाय या उसके बछड़े का है. अखलाक के परिवार ने इसका विरोध किया और कहा कि घटना के तुरंत बाद एक सीलबंद सैंपल एक पशु चिकित्सक को दिखाया गया था, जिसने इसे बकरे का मांस बताया था. उनका आरोप है कि बाद में सैंपल बदल दिया गया.
'बदलती गवाही'
राज्य का कहना है कि अखलाक की पत्नी और बच्चों ने भीड़ में कौन था, इस बारे में अलग-अलग बयान दिए, जबकि सभी आरोपी उसी गांव के थे. पुलिस का कहना है कि उनके शुरुआती बयानों में कोई खास नाम नहीं थे. 26 नवंबर, 2015 को अखलाक की पत्नी इकरामन ने बयान में 10 लोगों के नाम लिए. उनकी बेटी शाइस्ता ने छह और नाम जोड़े. 5 दिसंबर को अखलाक के बेटे दानिश ने तीन और लोगों की पहचान की. राज्य का कहना है कि इन अलग-अलग बयानों से गवाहों के बयान भरोसेमंद होने पर शक पैदा होता है.
अखलाक के परिवार के वकील यूसुफ सैफी का कहना है कि राज्य के इस कदम से वे 'दुखी और निराश' हैं, मगर विचलित नहीं. उन्होंने कहा, ''वे अपना काम कर रहे हैं, हम अपना काम करेंगे, और कोर्ट अपना काम करेगा. हमें यकीन है कि परिवार को इंसाफ मिलेगा.'' उन्होंने इस दावे को खारिज कर दिया कि परिवार के बयान में तारतम्यता नहीं थी और कहा कि हालात बताते हैं कि नाम अलग-अलग हिस्सों में क्यों आए.
सैफी कहते हैं, ''अगर एक ही समय में चार लोगों को अलग-अलग कोनों में पीटा जा रहा है, तो वे सिर्फ उसी को पहचान सकते हैं जो उन पर हमला कर रहा है.'' वे घबराहट, सदमे और भीड़ की बड़ी संख्या का भी जिक्र करते हैं. वे कहते हैं, ''अखलाक के परिवार ने उन्हें मारे जाते हुए देखा. उनका बेटा आइसीयू में था. उसी हालत में शुरुआती शिकायत दर्ज कराई गई थी. शाइस्ता ने उन लोगों के नाम बताए जिन्हें वह पहचानती थी. जब दानिश आइसीयू से बाहर आया तो उसने वे नाम बताए जो उसे याद थे.''
मामले की प्रतीकात्मक अहमियत को देखते हुए देश भी यह याद करना चाहेगा कि केस कैसे आगे बढ़ता है.
खास बातें
> राज्य के अभियोजकों का मुख्य दावा है कि परिवार के गवाहों के बयान एक जैसे नहीं है
> वकील भीड़ के आकार, परिवार के सभी सदस्यों पर एक साथ हुए हमलों, सदमों का जिक्र करते हैं

