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मोदी सरकार ने मदुरै और कोयंबटूर में मेट्रो रेल परियोजनाओं को क्यों खारिज किया?

मदुरै और कोयंबत्तूर में मेट्रो रेल बनाने के प्रस्ताव जब केंद्र सरकार ने खारिज किए तो दोनों शहरों के बाशिंदों और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे राज्य के साथ नाइंसाफी बताया

मदुरै और कोयंबत्तूर मेट्रो प्रोजेक्ट खारिज होने पर नाइंसाफी का आरोप
अपडेटेड 11 दिसंबर , 2025

अगर गौर से नहीं देखें तो केंद्रीय महकमे की तरफ से दो मेट्रो परियोजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) लौटा दिया जाना साधारण-सी प्रशासनिक घटना लगेगी. किसी किस्म के तकनीकी सुधार के लिए लौटा दिया गया हो? मगर, नहीं. जब आप तमिलनाडु और नई दिल्ली की बात कर रहे हों, तो नामंजूरी की हर कार्रवाई बेचैनी और मतलबों से भरी होती है.

मेट्रो रेल को आधुनिक शहरीपन की उस बानगी की तरह देखिए जो जबरदस्त वृद्धि दर्ज कर रहे शहरों के लिए काम के लिहाज से बेहद जरूरी है. इस मामले में तो दो शहर हैं: कोयंबत्तूर और मदुरै. तो क्या केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने ऊंची प्रतिष्ठा वाले प्रस्तावों पर 'प्रेषक को लौटाएं' लिख दिया.

वह भी उस दक्षिणी राज्य के लिए जो कई मोर्चों पर पहले ही खिन्न और परेशान है. ऐसे में यह आक्रोश और गुस्से की एक पूरी रेल के आने के लिए सही प्लेटफॉर्म था.

चुनाव का नया मुद्दा
फिर यह तो होना ही था कि कुछ ही दिनों के भीतर यह केंद्र और राज्य के बीच हाल के दिनों के सबसे तीखे टकरावों में से एक में बदल गया. तमिलनाडु में यह विभिन्न किस्म के विषयों पर जनमत संग्रह बन गया. इसमें अमूर्त से भौतिक तक सिलसिलेवार संघीय रिश्तों का भविष्य, चुनावी मौसम में क्षेत्रीय पहचान की राजनीति और उद्योगों से समृद्ध राज्य में दूसरे दर्जे के शहरीकरण की रफ्तार शामिल थी.

कोयंबत्तूर और मदुरै महज 'उभरते' शहरी केंद्र भर नहीं रह गए हैं. एक विश्लेषक कहते हैं, ''दोनों शहर बदलाव के मुहाने पर हैं. कोयंबत्तूर दक्षिण का मैन्युफैक्चरिंग-टेक्नोलॉजी इंजन है. मदुरै सांस्कृतिक-चिकित्सा-पर्यटन केंद्र है, जहां रोज आने वालों के आगे जनगणना में गिनी गई इसकी आबादी बौनी पड़ जाती है.'' कोयंबत्तूर का औद्योगिक गलियारा और मदुरै के मेडिकल कैंपस रोज दसियों हजारों लोगों को खींच लाते हैं, जो अहम अस्थायी आबादियां हैं और उनके लिए मेट्रो बिल्कुल सही साधन होगी.

जनगणना इस बहस का हिस्सा क्यों है? दरअसल, केंद्र का इनकार भारतीय नियोजन को परेशान कर रहे सबसे जड़ और पुराने पड़ चुके डेटासेट—यानी 2011 की जनगणना के आंकड़ों—पर टिका है. डेढ़ दशक पहले कोयंबत्तूर की आबादी 15.8 लाख दर्ज की गई थी तो मदुरै की आबादी 15 लाख से भी कम थी. उन आंकड़ों का हवाला देते हुए केंद्रीय मंत्रालय ने कहा कि दोनों शहर 2017 की मेट्रो रेल नीति के खंड डी(II)(ए) के तहत किसी शहर को मेट्रो से नवाजने के लिए जरूरी 20 लाख की आबादी की पात्रता से नीचे आते हैं.

तमिलनाडु का कहना है कि इस दलील के साथ दो दिक्कतें हैं. एक, आबादी स्वाभाविक रूप से बढ़ गई है. कोयंबत्तूर महानगर क्षेत्र के लिए मौजूदा अंदाज 31.5 लाख है, वहीं मदुरै के लिए यह 19,12,000 है. मदुरै के शहरी फैलाव को बढ़ते देख इसी साल राज्य ने मदुरै जिले की 15 पंचायतों और एक नगरीय पंचायत को औपचारिक रूप से निगम में मिला दिया. इस कदम से आबादी के 20 लाख के निशान को पार कर जाने की उम्मीद थी.

तमिलनाडु ने इसे भेदभाव कहा
हमेशा की तरह पूर्वाग्रह और पक्षपात का आरोप लगाया जाने लगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी एक चिट्ठी में मुख्यमंत्री ए.के. स्टालिन ने नियम के 'चुनिंदा' इस्तेमाल पर सवाल उठाया. उन्होंने लिखा, ''अगर यह 20 लाख की कसौटी एक समान लागू की गई होती तो आगरा, इंदौर और पटना जैसे कई टियर-II शहरों में मेट्रो शायद नहीं बन पातीं.'' उन्होंने लिखा कि शहरी विकास जनगणना सरीखे बोझिल दशकीय कागजी काम का इंतजार नहीं कर सकता. यहां तो उसमें भी आधे दशक की और देरी हो चुकी है. इस तरह उन्होंने इनकार के लिए बताए गए कारणों को 'नामुनासिब' करार दिया. मदुरै के माकपा सांसद एस. वेंकटेशन भी इसे पक्षपातपूर्ण बताते हैं क्योंकि ''छोटे शहरों को मंजूरी मिल चुकी है.'' व्यापारियों के संघ ने हताशा जाहिर करते हुए कहा कि बुनियादी ढांचे की सच्ची जरूरतों को अनदेखा कर दिया गया है.

क्या भारत का जटिल संघवाद अपनी अगली पीढ़ी के शहरीकरण के साथ इंसाफ कर सकता है? तमिलनाडु ज्यों-ज्यों चुनावी अंदाज में आ रहा है, इस कुंद सवाल ने तीखी धार अख्तियार कर ली है. इसे अब इस तरह पूछा जा रहा है: यह कौन तय करेगा कि तमिलनाडु के शहरों को कैसे बढ़ना चाहिए?

खास बातें

> केंद्र ने कहा है कि कोयंबत्तूर और मदुरै 20 लाख की आबादी की पात्रता से अभी नीचे हैं

> स्टालिन ने कहा कि आगरा, इंदौर, और पटना सरीखे छोटे शहरों को भी मेट्रो सुविधा दे दी गई है

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