scorecardresearch

लद्दाख में खोई हुई राजनीतिक जमीन को पाने के लिए BJP ने कौन सा रास्ता अपनाया?

केंद्र के साथ बातचीत फिर शुरू होने के साथ लेह और करगिल के निकायों ने नई दिल्ली के सामने अपने अधिकतम मंसूबे रखे तो BJP ने अपनाया बीच का रास्ता

लेह में 25 सितंबर को हिंसक प्रदर्शन के बाद जली हुई एक पुलिस बस
अपडेटेड 9 दिसंबर , 2025

लद्दाख में वैसे तो सर्दी का मौसम है, मगर इस केंद्रशासित प्रदेश के भविष्य को लेकर प्रतिस्पर्धी इरादे और मंसूबे तपिश पैदा कर रहे हैं. इनमें केंद्र के साथ बातचीत सरीखे कदम कुछ सुहाने लग रहे हैं. तब तो और भी जब अभी सितंबर के आखिर में ही यह सूबा चार दशकों में पहली बार हिंसा के उस दौर से गुजरा जिसमें चार लोग मारे गए और करीब 100 घायल हुए.

उसके बाद सम्मानित जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. अंदरूनी बहसों में कुछ बहुत तीखी हैं, खासकर जहां स्थानीय भाजपा इकाई प्रदर्शनकारियों के अधिकतम रुख के सामने जवाबी नजरिया रख रही है.

यह रुख 20 नवंबर को औपचारिक तौर पर बताया गया जब लद्दाख में भड़की आग के पीछे सक्रिय दो धड़ों—लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (केडीए)—ने 29 पन्नों का प्रस्ताव केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपा.

एलएबी-केडीए छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे की मांगों पर अड़े हैं. इनमें हिंसा मामले में जिन लोगों पर मुकदमे दर्ज हुए हैं, उन्हें आम माफी की मांग भी जुड़ गई है. एलएबी के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरूक ने कहा, ''सोनम वांगचुक समेत गिरफ्तार सभी लोगों को रिहा किया जाना चाहिए. गिरफ्तारियां अभी भी हो रही हैं. इसे रोकने की जरूरत है.'' बातचीत के लिए गृह मंत्रालय का तैयार होना और प्रस्तावों पर विचार की स्वीकृति इस बार ज्यादा अच्छे नतीजों की उम्मीद जगा रहा है.

मगर भाजपा की लद्दाख इकाई ने बीच का रुख अपनाया है, जो एलएबी-केडीए के रुख से अलग है. फिलहाल उपराज्यपाल के सचिवालय को सर्वशक्तिमान की तरह देखा जाता है, जिसने लेह और करगिल की पर्वतीय विकास परिषदों को अपनी छाया से ढक लिया है. स्थानीय लोगों को नुमाइंदगी देने की खातिर स्थानीय भाजपा उच्चस्तरीय क्षेत्रीय परिषद या यहां तक कि विधानसभा बनाने या मौजूदा परिषदों को जमीन, संस्कृति और स्थानीय कानून बनाने की शक्ति और अधिकार देने पर जोर दे रही है.

लद्दाख भाजपा के पूर्व प्रमुख फुनचोक स्टेनजिन ने कहा, ''छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा नासमझ मांगें हैं. हमारे यहां वैसी वन भूमि नहीं हैं जैसी उत्तरपूर्व में हैं. यहां हमें ज्यादा सांसदों की जरूरत है और विधानसभा की भी, जो राज्यसभा के लिए लोगों को चुनेगी.'' फिलहाल लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश है जहां विधानसभा नहीं है और सिर्फ एक सांसद है.

अधिकतम बनाम बीच का रास्ता
केंद्र ने अगस्त 2024 में लद्दाख में पांच नए जिले बनाए, जिससे कुल जिले सात हो गए. इससे दो मौजूदा पर्वतीय परिषदें नाकाफी पड़ गईं और इसकी वजह से सभी इलाकों को नुमांइदगी देने वाले विधायी निकाय की मांग सिर उठाने लगी. एलएबी-केडीए 30 सदस्यों की विधानसभा की मांग कर रहे हैं, जिसमें 28 सीट अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हों. वे साझा जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाइकोर्ट की तर्ज पर जम्मू-कश्मीर के साथ सुगठित लोक सेवा आयोग भी चाहते हैं. हाल में चलाए गए भर्ती अभियानों को स्थानीय लोगों ने पूरी तरह गैर-स्थानीय अफसरशाहों के हाथों चलाए गए अभियानों की तरह देखा, जिससे बहुत ज्यादा बेरोजगारी की मार झेल रहे इस इलाके में आक्रोश भड़क उठा.

कलीम गीलानी

Advertisement
Advertisement