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क्या है आर्टिकल 240, जिसको लेकर पंजाब में बेचैनी की लहर दौड़ गई?

एक प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन ने पंजाब में सियासी तूफान खड़ा कर दिया, जिससे चंडीगढ़ के दर्जे और प्रतीकात्मकता को लेकर पुराने जख्म हरे हो गए

चंडीगढ़ पर अपने अधिकार कमजोर किए जाने के विरोध में पंजाब.
अपडेटेड 8 दिसंबर , 2025

नवंबर की 21 तारीख को लोकसभा बुलेटिन में जब ''चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के तहत लाने के लिए संविधान में संशोधन'' संबंधी एक प्रस्तावित विधेयक की खबर सामने आई, तो पंजाब में बेचैनी की लहर दौड़ गई.

आगामी शीतकालीन सत्र के लिए प्रस्तावित संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025 अगर पारित हो जाता तो राष्ट्रपति को इस केंद्रशासित प्रदेश (यूटी) के लिए एक अलग उपराज्यपाल नियुक्त करने और संबंधी कानूनी विनियमावली जारी करने का अधिकार मिल जाता.

आजादी के बाद से चंडीगढ़ पंजाब की पहचान से गहरे तौर पर जुड़ा है तथा पंजाब के बहुत सारे लोगों को यह कदम शहर पर केंद्र के नियंत्रण को और मजबूत करने की कवायद दिख रहा है. 

इस पर तुरंत प्रतिक्रिया मिली. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र पर ''पंजाब की राजधानी को छीनने कोशिश करने'' का आरोप लगाया. शिरोमणि अकाली दल ने इसे ''पंजाब के अधिकारों पर सीधा हमला'' करार दिया, जबकि कांग्रेस ने इसे ''भड़काऊ और अनावश्यक'' कदम बताय. भाजपा की पंजाब इकाई भी सियासी नुक्सान को भांपते हुए इससे खुद को अलग दिखाने में जुट गई. प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा कि चंडीगढ़ ''पंजाब का अभिन्न हिस्सा'' है और वह केंद्र को इस बारे में फिर से विचार करने का आग्रह करेंगे.

शुरू में, केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने इस संशोधन को शासन को सुचारू बनाने के लिए महज एक प्रक्रियागत अपडेट के रूप में पेश किया. मगर पंजाब में इसने 1966 के उस पुराने जख्म को हरा कर दिया, जब इसके पुनर्गठन से हरियाणा बना और चंडीगढ़ को एक केंद्रशासित प्रदेश तथा दोनों राज्यों की साझा राजधानी घोषित किया गया था. अब दो दिनों के भीतर तीखे विरोध को देखते हुए मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को रोक दिया और कहा कि यह विधेयक शीतकालीन सत्र में पेश नहीं किया जाएगा.

क्यों है यह संवेदनशील मामला 
इसकी संवेदनशीलता चंडीगढ़ के असाधारण उभार और बदलाव से जुड़ी है. 1966 के पंजाब पुनर्गठन अधिनियम ने चंडीगढ़ पर वे सभी कानून लागू कर दिए जो उस समय अविभाजित पंजाब में लागू थे. मगर, प्रशासनिक तौर पर चंडीगढ़ का संचालन राष्ट्रपति की ओर से एक प्रशासक के मार्फत किया जाता है, जिसकी अनुमति संविधान का अनुच्छेद 239 देता है. इस प्रशासक का पद 1984 से पंजाब के राज्यपाल के पास अतिरिक्त जिम्मेदारी के रूप में है और यह राज्य कैबिनेट से स्वतंत्र रूप से काम करता है.

चंडीगढ़ को अगर अनुच्छेद 240 के तहत लाया जाता है तो वह उन अन्य केंद्रशासित प्रदेशों की तरह हो जाएगा जिनके पास अपनी विधानसभाएं नहीं, और इससे राष्ट्रपति को अधिक प्रत्यक्ष नियामक शक्तियां मिल जाएंगी. कानूनी तौर पर यह एक संवैधानिक विसंगति को दूर करने जैसा है. मगर इससे चंडीगढ़ पर पंजाब के प्रतीकात्मक अधिकार भी कमजोर होंगे. एक महीने पहले केंद्र ने पंजाब विश्वविद्यालय के शासी निकायों में बदलाव किए जिसका खूब विरोध हुआ. उस बदलाव को भी रोका गया. मगर उसको देखते हुए चंडीगढ़ मसले पर भी विरोध तेज हुआ.

दरअसल, 2022 से ही पंजाब के नेताओं ने चंडीगढ़ प्रशासन में गैर-पंजाबी अधिकारियों के बढ़ते दबदबे का विरोध किया है. उनका कहना है कि पंजाब-हरियाणा कैडर के पारंपरिक 60:40 अनुपात का उल्लंघन किया जा रहा. तनाव तब बढ़ गया जब मार्च 2022 में गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान किया कि केंद्रशासित प्रदेश (यूटी) के कर्मचारी अब पंजाब के बजाए केंद्रीय सेवा के नियमों का पालन करेंगे. इस साल की शुरुआत में पंजाब सरकार ने राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर शिकायत की कि उसके आइपीएस और पीसीएस अधिकारियों को हाशिए पर डालकर एजीएमयूटी तथा हरियाणा कैडर के अधिकारियों को प्राथमिकता दी जा रही है. आज भी यूटी के 11 आइएएस पदों में से सिर्फ दो पंजाब-कैडर के अफसरों के पास हैं.

पंजाब विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर आशुतोष कुमार ने बताया कि चंडीगढ़ शहर तकरीबन 50 गांवों की भूमि को अधिग्रहीत करके बसाया गया था, ताकि विभाजन के बाद जब लाहौर पाकिस्तान में चला गया तो पंजाब को नई राजधानी मिल सके. सिख लाहौर को अपने ऐतिहासिक साम्राज्य का केंद्र मानते थे. इसे ली कार्बूजिये ने डिजाइन किया और इसका उद्घाटन 1953 में हुआ. चंडीगढ़ सिखों के लिए गौरव और प्रगति का प्रतीक बन गया.

उस स्थिति को 1966 के पुनर्गठन ने बदल दिया जबकि वह व्यवस्था अस्थायी थी. 1970 में इंदिरा गांधी सरकार ने ऐलान किया कि शहर ''पूरी तरह पंजाब को जाना चाहिए.'' 1985 के राजीव-लोंगोवाल समझौते में भी उस वादे की फिर पुष्टि की गई. पर हिंदीभाषी क्षेत्रों को हरियाणा को सौंपने जैसे क्षेत्रीय समायोजनों के विवादों ने उसके क्रियान्वयन को रोक दिया. विभिन्न आयोग इसको सुलझा नहीं सके और फिर 1986 के मध्य में केंद्र ने इस फेरबदल को ठंडे बस्ते में डाल दिया.

क्यों पलट गया गृह मंत्रालय
नए प्रस्ताव ने उन पुरानी यादों को ताजा कर दिया और पंजाब में बिखरे रहने वाले सियासी खेमों को एकजुट कर दिया. भाजपा के लिए हालात ज्यादा संवेदनशील थे. रद्द हो गए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के बाद वह अभी भी राज्य में अपनी साख दोबारा पाने की कोशिश कर रही. वहीं, राज्य में फरवरी 2027 में चुनाव होने हैं तो विपक्ष को यह बड़ा मौका नजर आ रहा. मान इसे पंजाब की प्रतिष्ठा के इम्तिहान के तौर पर पेश कर रहे हैं. अकाली दल भी इसे अपने सियासी आधार को वापस पाने का मौका मान रहा. इस उबाल से कांग्रेस को भी लाभ मिलने की संभावना है.

यह प्रकरण भारतीय संघीय ढांचे को आकार देने की प्रशासनिक दलीलों और क्षेत्रीय भावनाओं के बीच के तनावों को उजागर करता है. विभाजन की स्मृतियों और अधूरे केंद्रीय वादों से गढ़े इस राज्य में छोटा बदलाव भी पुराने प्रेतों को जगा सकता है.

संघीय हेरफेर
> पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के जरिए चंडीगढ़ को पंजाब और नवगठित हरियाणा, दोनों की साझा राजधानी बनाया गया

> संविधान के अनुच्छेद 239 के तहत प्रशासक के जरिए राष्ट्रपति संचालित केंद्रशासित प्रदेश भी बना

> 1984 से पंजाब के राज्यपाल ही चंडीगढ़ के प्रशासक का अतिरिक्त प्रभार संभालते हैं. वे राज्य मंत्रिमंडल से स्वतंत्र कार्य करते हैं

> अधिकतर केंद्रशासित प्रदेशों के विपरीत, चंडीगढ़ अनुच्छेद 240 के तहत शासित नहीं है जो राष्ट्रपति को संबंधी कानूनी विनियमावली जारी करने की शक्ति देता है 

> संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025 ने इसी विसंगति को दूर करने का प्रस्ताव रखा था

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