यह अब छुपा नहीं है कि महाराष्ट्र में काबिज महायुति सरकार नाखुशी का त्रिकोण है. इसका कोई न कोई कोण हमेशा उसकी केंद्रीय धुरी भाजपा के खिलाफ बागी तेवर लिए रहता है. इसका ताजा सबूत 18 नवंबर को उभरा, जब शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के सभी मंत्रियों ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता वाली कैबिनेट मीटिंग का बॉयकॉट किया. विरोध के इस अनोखे तरीके में, सिर्फ उपमुख्यमंत्री शिंदे ही वहां पहुंचे.
आखिरी उबाल तब आया जब भाजपा ने राज्य में अहम स्थानीय निकाय चुनावों से पहले शिंदे शिवसेना के ठाणे और पालघर जैसे मजबूत गढ़ों से नेताओं और पुराने कॉर्पोरेटर को अपनी तरफ खींचना शुरू कर दिया. दोनों जिलों में पहले चरण में 2 दिसंबर को वोटिंग होनी है. इसके अलावा भाजपा उन दूसरी पार्टियों के उम्मीदवारों को भी तोड़ लाई, जो शिंदे शिवसेना के मंत्रियों और नेताओं के खिलाफ चुनाव लड़े थे.
शिंदे शिवसेना को यह भी लगता है कि भाजपा ने सरकारी स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर आगे बढ़ाने का कदम उठाकर चचेरे भाइयों—शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के मुखिया राज ठाकरे को फिर से एक होने का आसान मौका दे दिया. अप्रैल में उठाए गए इस कदम को विरोध के बाद जून में वापस ले लिया गया था. उससे इस कदर नाराजगी फैली कि लंबे समय से अलग-थलग पड़े चचेरे भाइयों के बीच की दूरी पट गई. इससे शिंदे और उनकी पार्टी के किनारे लग जाने का खतरा पैदा हो सकता है.
अगर यह सीधे तौर पर सोची-समझी चाल न मानी जाए, तो 16 नवंबर को लगभग सीधा इशारा मिला. राज्य सरकार ने उद्धव ठाकरे, उनके बेटे आदित्य और करीबी सहयोगी सुभाष देसाई को बालासाहेब ठाकरे राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट में फिर से नियुक्त कर दिया. इसे आम तौर पर भाजपा की तरफ से ठाकरे शिवसेना के साथ अपने विकल्प खुले रखने की चाल के तौर पर देखा गया.
पहले किसने तोड़ा?
शिंदे शिवसेना के मंत्री और विधायक भी अपने विभाग और चुनाव क्षेत्रों के लिए फंड के बंटवारे को लेकर परेशान हैं. काम को लेकर नाराजगी तो सही है, मगर जिस बात ने खतरे की घंटी बजाई, वह भविष्य से जुड़ी थी. भाजपा के राज्य प्रमुख तथा डोंबिवली के एमएलए रवींद्र चव्हाण असरदार पुराने पार्षदों और अनमोल म्हात्रे जैसे नेताओं को पार्टी में ले आए हैं. वहां जनवरी में नगर निगम चुनाव होने वाले हैं. कल्याण-डोंबिवली नगर निगम कल्याण संसदीय क्षेत्र में हैं जहां से शिंदे के पुत्र श्रीकांत तीन बार से सांसद हैं.
आपसी तकरार
मनमुटाव इतना बढ़ गया है कि शिंदे 19 नवंबर को महायुति के अंदर के रिश्तों पर बात करने के लिए नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले. बाद में, दहानू में एक सभा में शिंदे ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि वे 'अहंकार' से लड़ रहे हैं और चेतावनी दी कि घमंड ने ही राक्षस राजा रावण और उसकी लंका को खत्म कर दिया था. वहां म्युनिसिपल काउंसिल चुनावों में शिंदे शिवसेना भाजपा के खिलाफ खड़ी है.
राज्य की राजनीति के जानकार संदीप प्रधान कहते हैं, ''भाजपा शिंदे के गढ़ ठाणे में पैठ बनाने में जुटी है. भाजपा ने विपक्ष को कमजोर कर दिया है और अब अपने साथियों को खत्म करके उनकी सियासी जगह पर कब्जाने की कोशिश कर रही है. इस सबका साफ संकेत है कि भाजपा अगला विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ेगी.''
खास बातें
> आक्रोश बढ़ा है क्योंकि भाजपा शिंदे शिवसेना के ठाणे और पालघर जैसे मजबूत गढ़ों के नेताओं को अपने पाले में ला रही
> उद्धव और उनके बेटे ठाकरे ट्रस्ट में फिर से शामिल किए गए, इससे फडणवीस से नाराज शिंदे
> भाजपा के हिंदी-समर्थक रुख से चचेरे ठाकरे भाइयों की दूरी मिटी, इससे भी शिंदे गुट नाराज

