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महाराष्ट्र: निकाय चुनाव से पहले महायुति की फूट कैसे उजागर हुई?

बेटे पार्थ से जुड़े विवादित जमीन के सौदे के मामले को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया और उपमुख्यमंत्री अजित पवार बचाव की मुद्रा में नजर आ रहे हैं, लेकिन महायुति की फूट उजागर हो गई

CM देवेंद्र फडणवीस के साथ अजित पवार मुंबई में एक बैठक में.
अपडेटेड 5 दिसंबर , 2025

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार का राजनैतिक करियर विरले ही कभी विवादों से मुक्त रहा हो, चाहे वह सिंचाई के ठेकों में भ्रष्टाचार के आरोप हों, या महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक में अनियमितताओं के, गठबंधन की उछलकूद की बात हो, या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को तोड़ना का वाकया. सबसे नई चुनौती करोड़ों रुपए के उस विवादित जमीन सौदे से पैदा हुई है जो अजित के बेटे पार्थ पवार से जुड़ा है.

राज्य के मंत्रियों-नेताओं से जुड़े विवादों की कड़ी में यह सबसे ताजातरीन विवाद है, जो अगले महीने होने वाले स्थानीय निकायों के चुनाव से पहले अजित की एनसीपी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिवसेना से मिलकर बने सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति के भीतर राजनैतिक जगह और सत्ता के लिए तीखी होती खींचतान के बीच सामने आया है.

मई में अमाडिया एंटरप्राइजेज एलएलपी ने पुणे के मुंडवा-कोरेगांव पार्क में करीब 40 एकड़ जमीन खरीदी. अजित के बेटे पार्थ और उनके ममेरे भाई दिग्विजय अमरसिंह पाटील इस फर्म में डायरेक्टर हैं. कंपनी ने बिक्री का 300 करोड़ रुपए का सौदा किया, जबकि जमीन की बाजार कीमत करीब 1,800 करोड़ रुपए हो सकती है. स्टाम्प ड्यूटी 21 करोड़ के बजाए महज 500 रुपए दी गई, जिससे सरकारी खजाने को राजस्व का चूना लगा. यह सरकारी जमीन भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण को 2038 तक के लिए लीज पर दी गई है (देखें बॉक्स).

इस महीने की शुरुआत में विवाद सामने आने के बाद पाटील सहित तीन लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई, लेकिन जिस बात को लेकर भौंहें तन गईं वह यह कि इसमें पार्थ का नाम नहीं था, बावजूद इसके कि उनकी कंपनी में बड़ी हिस्सेदारी है. तहसीलदार सूर्यकांत येवले और उपपंजीयक आर.बी. तारू (एफआइआर में नामजद) को निलंबित कर दिया गया. शीतल तेजवानी के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया, जिनके पास महार (बौद्ध दलित) समुदाय के उन मूल जमीन मालिकों के 272 वंशजों की पावर ऑफ एटॉर्नी है जिन्हें अंग्रेजों ने गांव के समुदाय को उनकी खानदानी सेवाओं के बदले वतन या अनुदान के तौर पर यह जमीन दी थी. 

पहले अजित ने अपनी तरफ से ऐलान किया कि बिक्री का सौदा रद्द कर दिया गया है और लेनदेन में 'एक रुपए का भी निवेश नहीं हुआ' है. सौदे से किसी भी तरह जुड़े होने से इनकार करते हुए उन्होंने अलबत्ता यह स्वीकार किया कि उन्हें अंदेशा था कि यह सौदा होने वाला है. उन्होंने रिपोर्टरों से कहा, ''करीब तीन या चार महीने पहले मुझे पता चला कि कुछ चल रहा है. मैंने कहा कि मैं ऐसे गलत काम बर्दाश्त नहीं करूंगा... और इस आशय के साफ निर्देश दिए.'' मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने माना कि ''जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वे पहली नजर में गंभीर हैं'' और कहा कि सौदे पर दस्तखत करने वालों और बेचने वालों के नाम एफआइआर में हैं. उन्होंने यह भी कहा, ''हमारे पास किसी को बचाने की कोई वजह नहीं है.'' मगर 18 नवंबर को संयुक्त पंजीयक महानिरीक्षक की अध्यक्षता में एक समिति ने एफआइआर में नामजद केवल तीन लोगों पर ही अभियोग लगाया. हालांकि अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) की अगुआई में एक समिति एक और समानांतर जांच कर रही है.

शिवसेना (उबाठा) के नेता और पूर्व नेता विपक्ष अंबादास दानवे ने दावा किया कि मुख्यमंत्री फडणवीस के सरकारी निवास पर हुई एक बैठक में आगबबूला अजित ने सरकार से बाहर निकलने और बाहर से समर्थन देने की धमकी दी. हालांकि राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने इसका खंडन किया. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव सचिन सावंत ने आरोप लगाया है कि पार्थ को बचाया जा रहा है. सावंत ने अजित के इस्तीफे की मांग करते हुए कहा, ''यह सत्ता का घोर दुरुपयोग है.''

पवार के पर कतरना
पार्थ पवार से जुड़ा यह विवाद ऐसे वक्त सामने आया जब भाजपा के एक बड़े नेता पुणे में जमीन सौदे के मिलते-जुलते विवाद से घिरे हैं. केंद्रीय राज्यमंत्री और पुणे से लोकसभा सांसद मुरलीधर मोहोल मॉडल कॉलोनी में सेठ हीराचंद नेमचंद स्मारक ट्रस्ट की तरफ से सेठ हीराचंद नेमचंद दिगंबर जैन बोर्डिंग को एक निर्माण कंपनी को बेचे जाने को लेकर मुश्किल में पड़ गए हैं. आरोप लगाए गए कि मोहोल के डेवलपर के साथ संबंध थे, जबकि उन्होंने दावा किया कि वे सौदे से पहले ही फर्म से निकल गए थे. इस सौदे को अब स्थानीय अदालत ने रद्द कर दिया है. करीब 3.5 एकड़ की इस जमीन पर एक जैन मंदिर भी है और जैन समुदाय इसकी बिक्री को लेकर बहुत गुस्से में था. संयोग से मोहोल के खिलाफ आरोप लगाने वालों में पूर्व विधायक रवींद्र धंगेकर भी थे, जो अब शिवसेना में हैं.

उड़ती चर्चा यह है कि मोहोल के मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने के अलावा भाजपा इस विवाद का इस्तेमाल अजित के पर कतरने के लिए भी कर रही है, खासकर पुणे जिले और उसके आसपास और पश्चिमी महाराष्ट्र के उनके मजबूत गढ़ों में, जहां पार्टी पारंपरिक तौर पर कमजोर रही है. इसके पीछे इरादा एनसीपी के दोनों प्रतिद्वंद्वी धड़ों में एकता की हर मुमकिन कोशिश को नाकाम करना भी है, जिसकी वजह से राष्ट्रीय मंच पर उपमुख्यमंत्री का वजन कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा. भाजपा ने धीरे-धीरे लेकिन लगातार एनसीपी के उपक्षेत्रीय क्षत्रपों—पूर्व विधायक राजन पाटील अंगारकर और यशवंत माने (सोलापुर), और दीपक सालुंखे पाटील और डॉ. योगेश क्षीरसागर (बीड)—को लुभाकर अपने पाले में लाना शुरू कर दिया है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुंबई में भाजपा के नए दफ्तर का शिलान्यास करते हुए अक्तूबर में कहा कि पार्टी महाराष्ट्र में अपने दम पर खड़ी हो गई है और उसे 'बैसाखियों' की जरूरत नहीं है. उनके इस बयान से एनसीपी और शिवसेना में खलबली मच गई. आने वाले कल के संकेतों से पता चलता है कि भाजपा अपने गठबंधन के साझेदारों के भीतर विधायकों के गुट बना रही हो सकती है.

मंत्रिमंडल से बाहर रखे जाने से नाराज शिवसेना के नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तानाजी सावंत ने कहा है कि 2022 की घटनाएं (उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुआई में शिवसेना को तोड़ना) दोहराई जा सकती हैं. एनसीपी के एक बड़े नेता बताते हैं, ''यह विवाद पक्का कोई इत्तेफाक नहीं है. यह स्थानीय निकायों के चुनावों को ध्यान में रखकर खड़ा किया गया है.'' वे यह भी बताते हैं कि भाजपा और एनसीपी पुणे और पिंपरी चिंचवाड़ सरीखे उन शहरी केंद्रों में सत्ता हथियाने की होड़ में हैं जहां जमीन की कीमतों और बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के निवेश में उछाल देखा जा रहा है.

जमीन सौदे का विवाद संयोग से ऐसे वक्त भी आया है जब अजित एनसीपी के दूसरे धड़े की अगुआई कर रहे अपने चाचा शरद पवार के साथ सुलह का हो-हल्ला मचाते हुए अपने करियर में बड़े पवार की भूमिका को स्वीकार कर रहे हैं. उन्होंने यहां तक कहा कि ''मैं भी उन्हें प्यार करता हूं.'' उनकी चचेरी बहन और बारामती से एनसीपी (एससीपी) की लोकसभा सांसद सुप्रिया सुले ने भरोसा जताया कि भतीजा पार्थ कुछ भी गलत नहीं करेगा. यह पूछे जाने पर कि उनके पोते पार्थ का नाम एफआइआर में क्यों नहीं है, बड़े पवार ने फडणवीस से इस पर सफाई देने को कहा, जो गृह मंत्री भी हैं. फिर उन्होंने कहा, ''अगर मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि यह गंभीर मामला है, तो इसकी जांच होनी चाहिए और तथ्य सबके सामने रखे जाने चाहिए.''

उन्होंने पार्थ के बारे में बेटी सुप्रिया के बयान को उनकी निजी राय बताया. बड़े पवार ने साथ ही यह भी कहा कि स्थानीय निकायों के चुनावों में गठबंधन बनाने के लिए पार्टी की स्थानीय इकाइयां स्थानीय कारकों पर विचार कर सकती हैं. दोनों एनसीपी पिंपरी चिंचवाड़ सरीखे इलाकों में बातचीत कर रही बताई जाती हैं, जो पहले उनका गढ़ था और जहां भाजपा ने अपनी पैठ बना ली है.

असहज गठबंधन
अपने सेक्युलर कुल का होने का दावा करने वाली एनसीपी भाजपा के हिंदुत्व के तगड़े दावों को लेकर परेशान है. मसलन, अक्तूबर में पुणे में पेशवाओं की सत्ता की गद्दी रहे शनिवारवाड़े में कुछ मुस्लिम महिलाओं के नमाज अदा करने का वीडियो वायरल होने के बाद भाजपा की राज्यसभा की सांसद मेधा कुलकर्णी ने उस जगह को 'शुद्ध किया'. जवाब में एनसीपी की नेता रूपाली पाटील थोम्ब्रे ने कुलकर्णी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. हालांकि बाद में उन्हें एनसीपी की प्रवक्ता के पद से हटा दिया गया. एक और घटना से भाजपा के बढ़ते पव्वे की झलक मिलती है. एनसीपी के दिग्गज ओबीसी नेता छगन भुजबल को जब मई में मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, तो इसे अजित की पसंद से ज्यादा भाजपा के दबाव के तौर पर देखा गया. भुजबल ने मराठों के लिए पिछड़ा आरक्षण की मांग के खिलाफ ओबीसी को एकजुट किया, जिससे एनसीपी के मूल मराठा मतदाता नाराज हो गए.

शिवसेना के एक सूत्र का कहना है कि कभी एनसीपी पर 'नेचुरली करप्ट पार्टी' (स्वाभाविक रूप से भ्रष्ट दल) होने का आरोप लगाने वाली लेकिन 2019 और 2023 में उसी के साथ बैठकर रोटियां तोड़ने वाली भाजपा अब अपनी ही दवाई का स्वाद चख रही है. वे कहते हैं, ''अजित पवार अब भाजपा के सामने नैतिक और राजनैतिक सवाल हैं. वे काफी कमजोर दिखाई दे रहे हैं. इसका मतलब है कि एनसीपी बेशर्म बनी रहेगी और भाजपा बेबस दिखती रहेगी. अब उनके लिए अपने नैतिक समझौतों की कीमत अदा करने का वक्त आ गया है.''

पुणे भूमि सौदे में गड़बड़ी

औपनिवेशिक काल का भूमि अनुदान कैसे बना अजित पवार का सिरदर्द- 

19वीं सदी में अंग्रेजों ने मुंढवा में महार समुदाय के लोगों को पारंपरिक ग्रामीण सेवाओं के बदले महार वतन लैंड के नाम से 40 एकड़ से ज्यादा जमीन दी.

महार वतन उन्मूलन कानून, 1950 इस वतन दर्जे को खत्म कर दिया और इसे बिक्री, हस्तांतरण एवं इस्तेमाल पर रोक के साथ नियमित कब्जे वाली जमीन में बदल दिया. मालिकाना हक पाने के लिए जमीन के मालिकों को सरकार को नजराना (बकाया) देना पड़ता था.

1950 के दशक के मध्य में बॉम्बे सरकार ने बकाया न चुकाने पर भूमि को अपने कब्जे में ले लिया और फिर इसे बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया (बीएसआइ) को लीज पर दे दिया. निर्धारित अंतराल पर नवीनीकृत होने वाली यह लीज 2038 तक मान्य है.

2006 में डेवलपर शीतल तेजवानी ने जमीन के 26 असल मालिकों के परिवारों के 272 वंशजों से पावर ऑफ अटॉर्नी ली, और कथित तौर पर उन्हें बिक्री या डेवलपमेंट के लिए जमीन वापस पाने में मदद करने का वादा किया. इनमें से कुछ पावर ऑफ अटॉर्नी नोटराइज हैं, रजिस्टर्ड नहीं.

मई 2025 में अमाडिया एंटरप्राइजेज एलएलपी (पार्थ पवार और उनके चचेरे भाई दिग्विजय अमरसिंह पाटील के पास क्रमश: 99 फीसद और 1 फीसद की हिस्सेदारी है) और तेजवानी के बीच एक सेल डीड साइन की गई.

डीड में जमीन की कीमत 300 करोड़ रुपए बताई गई, हालांकि इसकी मार्केट वैल्यू करीब 1,800 करोड़ रुपए आंकी गई है. आइटी पार्क और डेटा सेंटर के लिए मिली छूट का इस्तेमाल कर सिर्फ 500 रुपए स्टाम्प ड्यूटी दी गई, जबकि वैसे इस पर 21 करोड़ रुपए चुकाने होते.

जून में तहसीलदार सूर्यकांत येवाले—जो अब निलंबित है—ने एक नोटिस जारी किया जिसमें बीएसआइ से जमीन खाली करने को कहा गया.

6 नवंबर को अनियमितताओं के लिए सब-रजिस्ट्रार तारू को निलंबित किया गया; मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश दिया और सेल डीड रद्द कर दी गई.

7 नवंबर को पाटील, तेजवानी और तारू के खिलाफ एफआइआर दर्ज हुई जिसमें पार्थ का नाम नहीं था.

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