भारत में चुनावी राजनीति से जुड़ी बयानबाजी के एक नए दौर में पहुंचने के बीच तमिलनाडु ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए एक अजीबोगरीब द्वंद्व की स्थिति उत्पन्न कर दी है: यह एक ऐसा नाम, एक ऐसा विचार और एक ऐसी इकाई है, जिसे जितना पसंद किया जाता है, उतनी ही आलोचना भी होती है.
और, गहराई से देखें तो तमिलनाडु का अपनी सीमाओं के बाहर उपहास उड़ाया जाता है, और राज्य में उसकी खुशामद की जाती है. भगवा राजनैतिक कल्पना का यह द्वंद्व सत्तारूढ़ DMK की नजरों से छिपा नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया चुनावी भाषण तस्वीर को और साफ कर रहे हैं.
हालांकि, उनके निशाने पर मुख्य रूप से द्रविड़ पार्टी ही है लेकिन सियासी हमले को तीखी धार देने के लिए ऐसे बयानों को चुना जा रहा है, जो सामान्यीकृत लगें. मोदी लगातार तीखे हमले करते रहे हैं. बतौर उदाहरण, बिहार में उन्होंने DMK सरकार पर बिहार के प्रवासी मजदूरों के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाया. पिछले साल ओडिशा में चुनाव के दौरान मोदी ने एक रैली में कहा था कि जगन्नाथ मंदिर के खजाने की खोई चाबियां ''तमिलनाडु चली गई हैं.''
उन्होंने यह बात परोक्ष रूप से तत्कालीन सत्तारूढ़ दल के करीबी माने जाने वाले एक तमिल नौकरशाह के संदर्भ में कही थी. पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री ने कहा था कि कांग्रेस के दक्षिणी सहयोगियों ने सनातन धर्म का अपमान किया है.
DMK ने इन सभी आरोपों पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है. मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने तो यह सवाल तक पूछा डाला कि क्या मोदी में तमिलनाडु के भीतर यही बात कहने का 'साहस' है. दूसरी तरफ, स्टालिन अपनी प्रतिक्रिया को ''संघीय एकता के सम्मान'' के विचार के भीतर रखते हैं. उनके मुताबिक, इसमें व्यापक विपक्षी एकता की जरूरतों का भी ध्यान रखा जाता है.
अब एक ऐसी ताकत, एक ऐसा साझा मुद्दा सामने है जो सभी राज्यों को समान रूप से प्रभावित करता है, और ये मुद्दा है—मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर), जो उन्हें अलग करने के बजाए एक सूत्र में पिरोता है. अगस्त में, स्टालिन इंडिया ब्लॉक रैली में शामिल होने बिहार पहुंचे थे, जहां उन्होंने बिहार में एसआइआर का मुखर विरोध किया. जैसा कि एक वरिष्ठ DMK नेता कहते हैं, यह संघीय-भावना के अनुरूप उस रणनीति का सबसे बेहतर समाधान है जो ''भाषाई और क्षेत्रीय विविधता के आधार पर बांटकर मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने'' पर निर्भर करती है.
BJP तमिलनाडु के भीतर कुछ ऐसा ही संतुलन साधने में जुटी है. यहां, पार्टी का लहजा बिल्कुल अलग है. तमिल भाषा, विरासत और गौरव का बार-बार जिक्र किया जाता है; प्रधानमंत्री तमिल कवियों के उद्धरण पेश करते हैं और राष्ट्रीय संस्कृति में राज्य के योगदान की जमकर सराहना भी करते हैं. लेकिन सीमा से बाहर ये एक परेशान करने वाला राज्य बन जाता है. द्रविड़ का डर दिखाया जाता—जो एकदम अलग, आक्रामक और सांस्कृतिक स्तर पर पराया है.
संभवत: यही द्वंद्व BJP के दक्षिणी प्रयोग को सफल नहीं होने दे रहा. अपने बचाव में तमिलनाडु के BJP नेता तर्क देते हैं कि प्रधानमंत्री की टिप्पणियां DMK पर लक्षित हैं, न कि राज्य या उसके लोगों पर. फिर भी सवाल यह है कि क्या बाहर होने पर तमिलनाडु का एक व्यंग्यात्मक चित्रण करने या उसके खिलाफ आक्रामक बयानबाजी को हथियार बनाने के साथ वहां के लोगों को अपने पाले में लाने के प्रयास सफल हो सकते हैं?

