
साल 1991 में पूर्ण साक्षरता हासिल करते केरल ने सुर्खियां बटोरी थीं. उसके 34 वर्षों के बाद राज्य की स्थापना दिवस के अवसर पर 1 नवंबर को केरल ने अगला मील का पत्थर छू लिया.
उसने चरम गरीबी का पूर्ण उन्मूलन कर लिया है. दरअसल, औपचारिक रूप से इस दावे का ऐलान मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने किया और इसे 'जन-कल्याणकारी राज्य' के तौर पर केरल की छवि को और मजबूत करने वाला 'ऐतिहासिक पल' करार दिया.
वैसे उनकी वाम-नेतृत्व वाली सरकार अगले साल विधानसभा चुनावों में अपने दो कार्यकाल की सत्ता का इम्तिहान देने जा रही है. ऐसे में इन दावों पर तीखी बहस होना लाजिमी है. सरकार समर्थकों को इस पर संदेह जताने वाले बयानों से जूझना पड़ रहा है और यह केवल विपक्ष की ओर से हो रही आलोचना तक सीमित नहीं है. ऐसे में इसके इर्द-गिर्द का परिदृश्य कहीं अधिक जटिल हो गया है.
साल 2021 में राज्य ने चरम गरीबी से मुक्ति को अपना सर्वोच्च लक्ष्य घोषित किया था. वैसे केरल में यह समस्या उतनी बड़ी नहीं थी. नीति आयोग के 2013 के अनुमान के मुताबिक, राज्य की कुल 3.33 करोड़ लोगों की आबादी का 0.55 फीसद इससे पीड़ित था.
केरल के खुद के सर्वेक्षण में यह आंकड़ा उससे तकरीबन 80,000 कम निकला. राज्य के 1,032 स्थानीय स्वशासन (एलएसजी) निकायों में फैले 64,006 परिवारों के कुल 1,03,099 लोग.
'अंतिम छोर के लोगों' के लिए
एलएसजी मंत्री एम.बी. राजेश कहते हैं कि ''भोजन की कमी, स्वास्थ्य सेवा की जरूरतें, आय का अभाव और आवास की कमी से जुड़े तनाव के कारक'' इसके प्रमुख मानदंड थे. उन्होंने बताया कि उन 64,006 परिवारों में से लगभग 4,421 परिवारों के एकमात्र सदस्य की मृत्यु हो गई थी और 261 घुमंतू परिवारों का पता नहीं चल पाया.
राजेश ने इंडिया टुडे को बताया कि 'हर परिवार के लिए' विशेष 'सूक्ष्म योजनाएं' तैयार की गईं. एलएसजी की विशेष सचिव टी.वी. अनुपमा ने बताया कि इन योजनाओं में भोजन, आवास, स्वास्थ्य सेवा, बीमा, जॉब कार्ड और बच्चों के लिए छात्रवृत्तियों से जुड़े अल्पकालिक से लेकर दीर्घकालिक प्रावधान शामिल थे.
मगर, कांग्रेस नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन ने इस दावे को नवंबर-दिसंबर में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों को ध्यान में रखकर रचा गया 'धोखा और पब्लिसिटी स्टंट' करार दिया. उन्होंने पूछा, ''सबसे गरीब तबके वाले अंत्योदय अन्न योजना के 5,90,174 कार्डधारकों का किसने उन्मूलन कर दिया? और केवल 60,006 परिवारों को ही क्यों चुना गया?'' कई आदिवासी एक्टिविस्ट भी इस दावे पर अविश्वास जताते हैं.
आदिवासी महिला संगठन की के. अम्मिनी कहती हैं, ''हम अब भी गरीबी में जी रहे हैं. राज्य ने इस खिताब पर दावा जताने के लिए शायद काफी रकम खर्च की हो मगर हजारों आदिवासी बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं, और हमारे सैकड़ों परिवारों के पास अब भी अच्छे आवास नहीं हैं.''
कई अन्य लोग इस दावे का जश्न मना रहे हैं. मशहूर उपन्यासकार बेंजामिन कहते हैं, ''यह गौरव का पल है. कुछ संशयवादी समाज विज्ञानी या तो विपक्ष को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं या फिर इस पूरी प्रक्रिया से बेखबर हैं.'' मुख्यमंत्री भी कह रहे हैं कि विपक्ष इस ऐतिहासिक पल पर तुच्छता दिखा रहा है.
शायद उन्हें थोड़ी तसल्ली देने के लिए भारत में चीन के राजदूत शू फेइहांग ने एक्स पर केरल को बधाई दी. मगर यह पूरी बहस का महज एक पहलू है. गरीबी खुद में एक ऐसी अवस्था है जो एक निश्चित सीमा के बाद ही नजर आती है, और केरल में अभाव के अन्य रूप मौजूद हैं.

संकट में सखियां
आशा कार्यकर्ताओं का 266 दिनों तक चला बड़ा आंदोलन इसकी मिसाल है. इन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मांग थी कि अन्य चीजों के साथ उनका 7,000 रुपए का मानदेय तीन गुना बढ़ाया जाए. कई दौर की बातचीत के बाद आखिरकार, 1 नवंबर को पिनाराई सरकार झुकी और गरीब महिलाओं के लिए 10,000 करोड़ रुपए के चुनावी पैकेज के भीतर ही उनके लिए भी 1,000 रुपए की मामूली बढ़ोतरी का ऐलान किया.
प्रदर्शनकारी उत्साहित होकर वापस लौटे और उन्होंने जिला स्तर पर भी विरोध-प्रदर्शन करने का प्रण लिया. मगर वडकारा की विधायक और मारे गए मार्क्सवादी विद्रोही टी.पी. चंद्रशेखरन की पत्नी के.के. रेमा ने घटना को केरल के आदर्श कल्याणकारी छवि पर एक 'स्थायी काला धब्बा' करार दिया. रेमा अब चंद्रशेखरन की ओर से स्थापित सीपीएम के एक अलग गुट की अगुआ हैं.
आंशिक तौर पर इसकी वजहें वित्तीय थीं. मगर, इसकी एक और वजह यह थी कि वे प्रदर्शनकारी अति-वामपंथी संगठन 'सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया' (एसयूसीआइ) से जुड़े थे.
कोविड-19 संकट के दौरान पिनाराई ने केरल की 26,125 आशा कार्यकर्ताओं को 'उम्मीद की देवदूत (ऐंजल्स ऑफ होप)' कहा था. इन विरोध-प्रदर्शनों की अहम अगुआ ए. मिनी कहती हैं, ''अब सरकार समर्थक साइबर लड़ाके हमारा मजाक उड़ा रहे थे. मगर हम किसी की दासी नहीं हैं और हमें अपने रास्ते से कोई डिगा नहीं सकता.'' जाहिर है, केरल विडंबनाओं से कभी अछूता नहीं रहा है.
खास बातें
> केरल का कहना है उसने चरम गरीबी का उन्मूलन कर दिया.
> विपक्ष को इस दावे पर संदेह है.
> आशा कार्यकर्ताओं के 266 दिन के प्रदर्शन से पिनराई की छवि खराब.

