
- कलीम जीलानी
जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले के बानी से विधायक रामेश्वर सिंह का लहजा गोपनीयता भरा था. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, ''मैं छुपा हुआ हूं, किसी को भी नहीं बता रहा कि मैं कहां हूं. इस तरह की तवज्जो कभी-कभार ही मिलती है, मैं इसका मजा ले रहा हूं. मैं बिना शर्त और अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए किसी प्रतिबद्धता के बिना अपना वोट इतनी आसानी से नहीं देने वाला.''
एक साल पुरानी विधानसभा में अन्य विधायकों की तरह ही अचानक अपनी अहमियत बढ़ जाने से जम्मू के एकमात्र निर्दलीय विधायक रामेश्वर सिंह उत्साहित थे. फरवरी 2021 से खाली पड़ी राज्य की चार राज्यसभा सीटों के लिए 24 अक्तूबर को चुनाव के साथ सूबे में सियासी गतिविधियों का नया दौर शुरू हुआ. दोनों पक्ष उन्हें अपने पाले में लाने में जुटे रहे. ऐसे में अब तक जिन विधायकों की पूछ नहीं थी, उनके भी भाव बढ़ गए.
आखिरकार, सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस को केवल तीन सीटें मिलीं. विपक्षी दल भाजपा ने चौथी सीट पर कब्जा करके क्लीन स्वीप की उसकी योजना धराशायी कर दी. नेशनल कॉन्फ्रेंस की तरफ से जीते चौधरी मोहम्मद रमजान जान और सज्जाद अहमद किचलू पहली बार संसद पहुंचे हैं, जो विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के शानदार प्रदर्शन के बावजूद चुनाव जीतने में नाकाम रहे थे.
उलझे पेच, क्रॉस वोटिंग
तीसरे दौर के मतदान में अप्रत्याशित मोड़ आया और इसने दो सीटों के नतीजे तय किए. नेशनल कॉन्फ्रेंस के कोषाध्यक्ष और उमर के सहयोगी गुरविंदर सिंह ओबेरॉय जीत गए, मगर प्रवक्ता इमरान नबी डार हार गए. भाजपा की राज्य इकाई प्रमुख और वरिष्ठ नेता सतपाल शर्मा को सदन में पार्टी की संख्या से ज्यादा वोट मिले और उन्हें जीत हासिल हुई.
इसने गैर भाजपा खेमे का पारा चढ़ा दिया. 41 विधायकों वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस को कांग्रेस (6), पीडीपी (3), माकपा, आप और अवामी इत्तेहाद पार्टी के एक-एक विधायक के अलावा छह में से पांच निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल था. सज्जाद लोन मतदान से बाहर रहे. ऐसे में 87 मतदाताओं में से 58 के साथ उसकी जीत आसान होनी चाहिए थी. मगर चार विधायकों ने क्रॉस-वोटिंग कर दी और शर्मा जीत गए.

नाराज मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने 24 अक्तूबर की शाम इसे दूसरे दलों का धोखा करार दिया और दावा किया कि उनकी पार्टी में कोई सेंधमारी नहीं हुई है. उन्होंने तीखे लहजे में कहा, ''क्या भाजपा की गोपनीय टीम में इतनी हिम्मत है कि वे सामने आएं और स्वीकार करें कि हमसे वादा करने के बाद उन्होंने अपना जमीर किसी और को बेच दिया?'' उन्होंने यह दावा भी कर डाला कि उन्हें उन विधायकों के बारे में जानकारी है.
यह बात खुद नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं को हजम नहीं हुई. इसने उनके दबे असंतोष को उभार दिया. श्रीनगर के मुखर सांसद आगा रूहुल्लाह मेहदी ने उमर को नाम उजागर करने की चुनौती दी और कहा कि ऐसा न करना 'जनता के साथ विश्वासघात' है. उन्होंने दो टूक कहा, ''यह किसी की निजी दुकान नहीं है, जहां ऐसी बातें छिपाई जाएं. यह जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए.'' अनंतनाग-राजौरी से गुज्जर सांसद मियां अल्ताफ अहमद लार्वी ने भी उमर पर निशाना साधा. उन्होंने भर्ती प्रक्रिया के परवान नहीं चढ़ने और स्मार्ट बिजली मीटर पर उमर के यूटर्न सरीखे मामले उठाए.
दोस्त और दुश्मन
उमर का यूं आक्रोश जताना उस सियासी राह से मेल खाता है जिस पर वे बीते एक साल से चल रहे हैं और जिसमें दोस्ती में दरार आने का खतरा बना रहता है. इंडिया ब्लॉक का हिस्सा रही नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 2024 का विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ने के तुरंत बाद कांग्रेस के प्रति रुखा रवैया अपनाना शुरू कर दिया था. उसे केंद्र को खुश करने की कोशिश के तौर पर देखा गया. दरअसल, उमर राज्य के दर्जे के बड़े लक्ष्य को पाने में में कोई बाधा नहीं आने देना चाहते और यही उनकी सियासी चुनौती का एक प्रमुख कारण है.
राहुल गांधी के साथ गहरे रिश्तों के दौरान तैयार हुआ नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन अब नाममात्र को बचा है. उमर मंत्रिमंडल में किसी भी कांग्रेस विधायक को जगह नहीं मिली. संवादहीनता बहुत बढ़ चुकी है. सभी जरूरी संवाद उनके पिता और नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला के जरिए होते हैं जो दिल्ली में सोनिया गांधी से संपर्क बनाए हुए हैं. राज्यसभा प्रकरण ने कौन दोस्त-कौन दुश्मन की इस स्थिति को और विकट बना दिया है. नाराजगी दूर करने की जिम्मेदारी फारूक पर आ गई है, जिन्होंने इस घटना को राजनीति में सामान्य बात मानकर नजरअंदाज कर दिया और कांग्रेस से लेकर निर्दलीयों तक सभी को धन्यवाद दिया.
खास बातें
> राज्यसभा चुनाव में क्रॉस-वोटिंग से नाराज मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अन्य दलों पर भड़ास निकाली. भाजपा ने एक सीट जीतकर सबको हैरान कर दिया.
> पार्टी के दो सांसदों ने उमर पर सवाल उठाए. सीएम ने कांग्रेस के प्रति रुखा रवैया अपना रखा है.

