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क्यों हथियार डालने को मजबूर हो रहे हैं नक्सली?

हाल में देश के दो बड़े माओवादी विद्रोहियों ने हथियार डाले. इस तरह आत्मसमर्पण की नीति से सरकार को शांति बहाल करने में मदद मिल रही है

सीएम फडणवीस के सामने वरिष्ठ माओवादी नेता भूपति (दाएं से दूसरा) ने हथियार डाले
अपडेटेड 12 नवंबर , 2025

यह दीवाली के बोनस की तरह था. दो शीर्ष माओवादियों ने हथियार डाल दिए. दोनों के पीछे कॉडर और हथियारों के विशाल जखीरे भी आए. वैसे तो यह महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में अलग-अलग हुआ मगर था एक ही लहर का हिस्सा.

मानो कमजोर हो चुका पहाड़ टुकड़ों में दरक रहा हो. जो जंगलों से निकलकर आए, वे इसे आत्मसमर्पण नहीं बल्कि दबे-कुचलों के लिए अपने काम को जारी रहना कहते हैं, बस अब हथियारों के बिना.

राज्य सत्ता इसका स्वागत कर रही है. छत्तीसगढ़ में तो इसे पुनर्वास बताने के लिए 'पुना मार्गम' (नया जीवन) नाम तक दे दिया गया.

आप इसे चाहे जो कहें, इन इलाकों में यह उग्रवाद की सबसे बड़ी ढलान है. महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में 14 अक्तूबर को पोलितब्यूरो और सेंट्रल कमेटी के सदस्य एम. वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति या सोनू ने घुटने टेक दिए, उनके पीछे 60 कॉडर और 54 हथियारों का जखीरा भी आया. एक दिन बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के सामने औपचारिक समारोह हुआ. फिर, 17 अक्तूबर को जगदलपुर में सेंट्रल कमेटी के सदस्य सतीश उर्फ रूपेश की अगुआई में 210 कॉडर ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया.

शांति की ओर वापसी की वजह क्या है? अंदाज लगाना मुश्किल नहीं. दिसंबर 2023 से चल रहे सुरक्षाबलों के ताबड़तोड़ हमलों में उग्रवाद को भारी क्षति पहुंची है. हताहत माओवादियों की संख्या 470 से ज्यादा बताई जा रही. महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू जैसे बेहद अहम अगुआ को अबूझमाड़ में इसी मई में मौत की नींद सुला दिया गया.

कुछ महीने पहले माओवादी शिक्षा शाखा के प्रमुख और प्रवक्ता की जिम्मेदारी निभा रहे सोनू ने एक नोट जारी करके संघर्ष विराम की मांग की ताकि वह आत्मसमर्पण पर अपने साथियों से मशविरा कर सके. पोलितब्यूरो के अकेले जीवित बचे सदस्य देवजी ने इसे वीटो कर दिया. 'गद्दार' करार दिए गए सोनू ने जोर देकर कहा कि मुठभेड़ में मारे जाने से पहले बसवराजू ने भी ऐसी ही अपील की थी. तिस पर भी सरकार ने मना कर दिया और कहा कि कोई युद्ध नहीं चल रहा, मगर आत्मसमर्पण का रास्ता खुला है.

इसके लिए सोनू ने महाराष्ट्र को क्यों चुना, और अपने कार्यक्षेत्र छत्तीसगढ़ को क्यों नहीं? सूत्र उसकी पत्नी तारक्का की तरफ इशारा करते हैं, जिसने जनवरी में महाराष्ट्र में हथियार डाले थे. महाराष्ट्र हिंसा छोड़ रहे गुरिल्लों को बेहतर पैकेज की पेशकश करता है. सोनू जिन राज्यों में वांछित था, सभी को मिलाकर उस पर कुल 6 करोड़ रुपए का इनाम था. सेंट्रल कमेटी के सदस्य को महाराष्ट्र 50 लाख रुपए की पेशकश करता है, जबकि छत्तीसगढ़ सिर्फ 40 लाख रुपए की.

छत्तीसगढ़ में सामूहिक आत्मसमर्पण को भी सोनू से जोड़ा जा रहा क्योंकि उसके साय के सामने कतार में खड़े सतीश और कई अन्य माओवादियों के साथ करीबी रिश्ते थे. बस्तर के आइजी सुंदरराज पी. का कहना है कि ''आंध्र प्रदेश में 2004 में हुई वार्ता की तरह छत्तीसगढ़ में माओवादियों के साथ कोई शांति वार्ता'' नहीं हुई. फिर भी संदेशों का आदान-प्रदान तो चल ही रहा था.

माओवादी हर कुछ हफ्तों में प्रेस नोट के जरिए शांति की संभावनाओं की टोह लेते रहते. उप-मुख्यमंत्री विजय शर्मा इसका जवाब बिना शर्त आत्मसमर्पण के आह्वान से देते. बहरहाल 15 अक्तूबर को 50 कॉडर कांकेर के कोयलीबेड़ा में जंगलों से बाहर आ गए. एक दिन बाद दंतेवाड़ा-बीजापुर सरहद पर सतीश की अगुआई में 160 माओवादियों की टुकड़ी निकल आई. गढ़चिरौली से मिलते-जुलते एक समारोह में 17 अक्तूबर को वे जगदलपुर में मुख्यमंत्री के सामने नमूदार हुए.

पूछताछ के लिए ट्रांजिट कैंप में रखे गए पूर्व उग्रवादियों को उनकी शिक्षा और योग्यता के हिसाब से, मसलन पुलिस में, नौकरियां दी जाएंगी. इस बीच सतीश ने मीडिया से कहा कि उसे डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड में शामिल होने का कोई दबाव नहीं डाले जाने का भरोसा दिलाया गया है. यह पुलिस की ही शाखा है जो आदिवासियों को लेकर बनाई गई है और उनमें जहां-तहां हथियार डालने वाले कुछ माओवादी भी हैं. आत्मसमर्पण के इनाम के तौर पर, तत्काल तो बस 50,000 रुपए और गुजर-बसर के लिए 10,000 रुपए दिए जाएंगे, जबकि बड़ा हिस्सा तीन साल यानी अर्ध-परिवीक्षा अवधि के लिए बैंक में जमा कर दिया जाएगा.

बागियों को ओहदे
पूछताछ के लिए ट्रांजिट कैंप में रखे गए पूर्व उग्रवादियों को उनकी शिक्षा और योग्यता के हिसाब से, मसलन पुलिस में, नौकरियां दी जाएंगी. इस बीच सतीश ने मीडिया से कहा कि उसे डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड में शामिल होने का कोई दबाव नहीं डाले जाने का भरोसा दिलाया गया है. यह पुलिस की ही शाखा है जो आदिवासियों को लेकर बनाई गई है और उनमें जहां-तहां हथियार डालने वाले कुछ माओवादी भी हैं. आत्मसमर्पण के इनाम के तौर पर, तत्काल तो बस 50,000 रुपए और गुजर-बसर के लिए 10,000 रुपए दिए जाएंगे, जबकि बड़ा हिस्सा तीन साल यानी अर्ध-परिवीक्षा अवधि के लिए बैंक में जमा कर दिया जाएगा.

इसके साथ ही दंडकारण्य की 'नॉर्थ सब जोनल कमेटी' का ज्यादातर बोरिया-बिस्तर सिमट गया. आइजी सुंदरराज कहते हैं, ''आंदोलन उत्तर बस्तर के कांकेर और अबूझमाड़ के हिस्से में काफी कमजोर हो चुका है.'' वाकई पूरा माओवादी किला मरणासन्न है. 2025 के प्रारंभ में पोलितब्यूरो में पांच सदस्य थे. वे घटकर तीन रह गए हैं: गणपति, देवजी, मिसिर बेसरा. गणपति बूढ़े और बीमार हैं, बेसरा झारखंड के प्रभारी हैं. 2025 की शुरुआत में सेंट्रल कमेटी में 18 सदस्य थे, अब महज पांच बचे हैं.

वैसे बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर जिले अब भी छत्तीसगढ़ की पकड़ से बाहर हैं, जहां प्रतिबद्ध कॉडर घटकर 250 के आसपास रह गए हैं. इनमें 'बटालियन नंबर 1' के करीब 120 कॉडर शामिल हैं, जिसकी अगुआई कभी माडवी हिडमा करती थी. केंद्र की 31 मार्च 2026 की समय सीमा अब ज्यादा दूर नहीं.

खास बातें

पोलितब्यूरो के सदस्य भूपति उर्फ सोनू ने महाराष्ट्र में हथियार डाल दिए, तो शीर्ष माओवादी सतीश ने छत्तीसगढ़ में वही काम किया. कुल 270 उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है.

दोनों राज्यों ने आत्मसमर्पण के लिए लुभावनी शर्तों को पेश किया है.

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