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उत्तर प्रदेश: करोड़ों खर्च के बावजूद क्यों साफ नहीं हो सकी गोमती?

गोमती पुनरुद्धार मिशन पर करोड़ों खर्च के बावजूद नदी में घुलित ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक रूप से कम है, जबकि अधूरे एसटीपी और नाले अब भी नदी में गंदगी उगल रहे हैं

लखनऊ के कुड़िया घाट के किनारे गोमती का काला पानी
अपडेटेड 12 नवंबर , 2025

लखनऊ के हजरतगंज से महज पांच किलोमीटर दूर पुराने इलाके में मौजूद कुड़िया घाट पर शाम उतर रही है. हवा में हल्की-सी ठंडक है, लेकिन उसके साथ एक अजीब-सी गंध भी घुली हुई है.

नदी किनारे टहलने वाले लोग शिकायत करते हैं कि पानी में झाग और बदबू बनी रहती है. एक बुजुर्ग मछुआरे, रामेश्वर निषाद कहते हैं, ''कभी इसी गोमती में हम नहा लेते थे, अब पैर डालो तो फफोले पड़ जाएं. सरकार हर साल सफाई की बात करती है, लेकिन नदी जस की तस है.''

गोमती नदी लखनऊ की पहचान है. लेकिन आज यह पहचान शर्मिंदगी में बदल रही है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब इसे 'निर्मल, अविरल और स्वच्छ' बनाने के मिशन में जुटे हैं.

उन्होंने 12 अक्तूबर को 'गोमती पुनरुद्धार मिशन' की घोषणा करते हुए कहा, ''पीलीभीत से गाजीपुर तक बहने वाली गोमती महज एक नदी नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक चेतना और जीवन की धारा है.'' यह मिशन सिर्फ एक प्रशासनिक योजना नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का हिस्सा भी है. लेकिन क्या जमीनी हकीकत इस विजन का साथ दे पाएगी?

प्रदूषण की गहराई में नदी
गोमती नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के माधोटांडा में होता है और लगभग 960 किलोमीटर की यात्रा तय करते हुए यह गाजीपुर में गंगा में मिलती है. बीच में लखनऊ इस नदी के किनारे पला-बढ़ा शहर है, जो अब उसी नदी को दमघोंटू बना चुका है. लखनऊ के लगभग 20 लाख लोग इसी नदी से पेयजल पाते हैं. रोजाना 320 एमएलडी कच्चा पानी गोमती से खींचा जाता है, 200 एमएलडी ऐशबाग जलकल को और 120 एमएलडी बालागंज जलकल को. पर यह पानी किस हालत में है?

बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ में पर्यावरण विभाग के प्रमुख प्रो. वेंकटेश दत्ता के मुताबिक, गोमती का पानी अब 'ई' श्रेणी में है, यानी इतना प्रदूषित कि न स्नान योग्य है, न सिंचाई के लिए उपयुक्त. अगस्त 2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गोमती नदी का पानी कई जगहों पर खतरनाक रूप से प्रदूषित पाया गया था. पानी में घुली ऑक्सीजन (डीओ) का स्तर बहुत कम था, जो जलीय जीवन के लिए बेहद जरूरी होती है.

पिछले साल 5 नवंबर को छठ पूजा के समय डीओ का स्तर सिर्फ 2.32 मिलीग्राम प्रति लीटर था, जबकि सामान्य रूप से यह कम से कम 4 मिलीग्राम होना चाहिए. इससे पहले 30 अक्तूबर को गोमती बैराज पर डीओ सिर्फ 1.63 मिलीग्राम प्रति लीटर और 31 अक्तूबर को 1.90 मिलीग्राम प्रति लीटर मापा गया था. इसका मतलब है कि नदी में मछलियों और दूसरे जीवों के लिए सांस लेना भी मुश्किल हो गया था. नदी की पानी की गुणवत्ता को पांच श्रेणियों—'ए' से 'ई'—में बांटा गया है. 'ए' श्रेणी का पानी पीने योग्य होता है, जबकि 'ई' सबसे प्रदूषित माना जाता है. गोमती का पानी ज्यादातर हिस्सों में 'ई' श्रेणी में पाया गया, यानी यह केवल औद्योगिक उपयोग या सिंचाई के लिए ही उपयुक्त है.

सिर्फ गऊघाट पर, जहां से नदी लखनऊ शहर में प्रवेश करती है, पानी थोड़ा बेहतर 'डी' श्रेणी में दर्ज किया गया, जो फिर भी सुरक्षित नहीं है. अगस्त 2025 की ताजा रिपोर्ट में भी हालात में कोई बड़ा सुधार नहीं दिखा. गऊघाट पर पानी की गुणवत्ता अब भी 'डी' स्तर पर है. सफाई के लिए क्लोरीन, सोडियम हाइपोक्लोराइट और पॉलीएल्युमिनियम क्लोराइड जैसे रसायनों का इस्तेमाल किया गया, लेकिन असर सीमित रहा. गोमती सफाई मिशन से जुड़े ऋद्धि गौर बताते हैं, ''गोमती की सबसे बड़ी समस्या यह है कि शहर में पर्याप्त और ठीक ढंग से चलने वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) नहीं हैं. कई एसटीपी या तो बंद हैं या आधी क्षमता पर चल रहे हैं. इसी वजह से गंदा पानी और औद्योगिक कचरा बिना उपचार के सीधे नदी में जा रहा है. नालों को नदी से जोड़ने में भी देरी हो रही है, जिससे गोमती की हालत लगातार बिगड़ती जा रही है. गोमती का पानी आज भी 5वें ग्रेड में है यानी 'अत्यधिक प्रदूषित श्रेणी'.''

सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की इस वर्ष की शुरुआत में जारी रिपोर्ट बताती है कि लखनऊ में गोमती का बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) 7 से 10 मिलीग्राम प्रति लीटर तक है, जबकि मानक सिर्फ 3 है. नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल (एनजीटी) ने 2019 में इस पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था, ''गोमती अब एक बहता हुआ नाला बन चुकी है.''

पानी में बह गया पैसा 
लखनऊ के 101 किमी क्षेत्र में गोमती बहती है और उसमें 30 किमी शहरी क्षेत्र आता है. गोमती में 39 नाले गिरते हैं और 13 तो बिना ट्रीटमेंट या आंशिक ट्रीटमेंट के गिरते हैं. एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक, 2010 से 2025 तक गोमती को स्वच्छ और निर्मल करने में करीब 2,500 करोड़ रुपए खर्च किए गए, लेकिन गोमती का पानी काला ही बना रहा. प्रदेश में सत्ता संभालने के बाद योगी सरकार ने 2018 में गोमती पुनर्जीवन के लिए 1,600 करोड़ रुपए की योजना बनाई थी. इसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी), इंटरसेप्टर ड्रेन, रिवरफ्रंट मेंटेनेंस और ठोस कचरा प्रबंधन शामिल था. लखनऊ में 13 बड़े नालों को ट्रीटमेंट से जोड़ने का काम भी तय हुआ. लखनऊ नगर निगम और जल निगम को जिम्मेदारी दी गई कि कोई भी नाला बिना ट्रीटमेंट के नदी में न गिरे. पर यह योजना भी सरकारी सुस्ती की भेंट चढ़ गई. गोमती की इस बदहाली के लिए वे सभी विभाग दोषी हैं, जिन पर नदी को साफ करने की जिम्मेदारी है.

प्रो. दत्ता और गोमती टास्क फोर्स के कंपनी कमांडर मेजर के.एस. नेगी के नेतृत्व में गोमती में गिरने वाले नालों का सर्वेक्षण किया गया. जांच दल ने पाया कि हैदर कैनाल, कुकरैल नाला, घसियारी मंडी नाले के जरिए कूड़ा-कचरा के साथ सीवेज भी सीधे गोमती में पहुंच रहा है. नालों पर पंप काम नहीं कर रहे और न ही सीवेज पंपिंग स्टेशन से सीवेज एसटीपी को भेजा जा रहा था. वर्ष 2011 में 500 करोड़ से ज्यादा धनराशि खर्च कर भरवारा में 345 एमएलडी और दौलतगंज में 56 एमएलडी क्षमता का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाया गया था. करीब 2,500 करोड़ खर्च किए गए, लेकन सीवेज अब भी गोमती में ही गिर रहा है. गोमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट, जो अखिलेश सरकार के समय शुरू हुआ था, उस पर भी कई सवाल उठे. करीब 1,500 करोड़ खर्च के बावजूद न तो नदी साफ हुई, न किनारे का विकास टिकाऊ साबित हुआ. एनआइटी और एनजीटी की जांच में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप भी सामने आए. योगी सरकार ने आते ही इसकी जांच कराई और कई इंजीनियरों पर कार्रवाई की, लेकिन परियोजना अधूरी ही रह गई.

लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट के डाउन स्ट्रीम पर नदी की सफाई का काम बेहद सुस्त गति से चल रहा

गोमती की सफाई को लेकर सरकारी एजेंसियां नई योजनाएं बना रही हैं, लेकिन कई अहम प्रोजेक्ट अब भी कागजों में अटके हैं. लखनऊ में सात नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाने का प्रस्ताव भूमि न मिलने के कारण ठप पड़ा है. ये प्लांट जियामऊ, वजीरगंज, नीलमथा, सीजीपीएस (लक्ष्मण मेला मैदान के पास), मस्तेमौ, पिपराघाट और अलीनगर नाला जैसे इलाकों में बनने थे, ताकि गंदा पानी सीधे गोमती में न गिरे. यूपी जल निगम ने इसके लिए 20.81 हेक्टेयर जमीन मांगी है, लेकिन लखनऊ नगर निगम, विकास प्राधिकरण और राज्य आवास बोर्ड ने अब तक जमीन नहीं दी है. जल निगम के एक अधिकारी ने कहा, ''भूमि नहीं मिलने से हम मृदा परीक्षण या डीपीआर तैयार करने जैसे शुरुआती काम भी शुरू नहीं कर पा रहे. हर दिन की देरी से नदी की हालत और बिगड़ रही है.''

शहर में कई एसटीपी अलग-अलग चरणों में हैं, दौलतगंज लगभग पूरा होकर चालू है, बरीकला और लोनियापुरवा निर्माणाधीन हैं, भरवारा चरण-3 बजट का इंतजार कर रहा है, जबकि बसंत कुंज विकास के शुरुआती दौर में है. जल निगम का दावा है कि ये परियोजनाएं पूरी हुईं तो गोमती का पारिस्थितिक संतुलन काफी बहाल हो सकेगा.

संस्थाओं का आपसी टकराव 
लखनऊ में रोजाना 730 एमएलडी सीवेज उत्पन्न होता है, जबकि उपचार क्षमता सिर्फ 450 एमएलडी की है. यानी लगभग 280 एमएलडी गंदा पानी सीधे गोमती में गिरता है. पर्यावरणविद् वी.के. जोशी चेतावनी देते हैं, ''हर झील, तालाब और नदी एक सुरक्षा जाल है. इसे नष्ट करेंगे तो बाढ़, सूखा और जल संकट झेलना पड़ेगा'' प्रवासी पक्षियों और भारतीय नदी डॉल्फिन जैसी प्रजातियां अब गोमती से लुप्त हो चुकी हैं. नदी किनारे रहने वाले मछुआरे अब पलायन को मजबूर हैं. गोमती की सफाई के लिए जिम्मेदार एजेंसियां, जल निगम, नगर निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, सिंचाई विभाग और एलडीए तालमेल नहीं बना पा रही हैं. नगर विकास विभाग के अधिकारी मानते हैं कि 'समन्वय की कमी' सबसे बड़ी बाधा है. विभाग एक दूसरे के क्षेत्राधिकार की बात करके पल्ला झाड़ लेते हैं नतीजा गोमती नदी सफाई का कोई ठोस एजेंडा सामने नहीं आ पाता. छठ पूजा से पहले हर साल सफाई और क्लोरीन स्प्रे जैसे 'आपात कदम' उठाए जाते हैं, लेकिन यह उपचार अस्थायी हैं.

धरातल पर उम्मीद की लौ 
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के तहत जनवरी, 2025 में गठित गोमती टास्क फोर्स सरकार और समाज के बीच एक सेतु की तरह काम कर रही है. मेजर जनरल सलिल सेठ, प्रोफेसर दत्ता और लेप्टिनेंट कर्नल देवेंद्र चौधरी (सेवानिवृत्त) जैसे विशेषज्ञ इसमें शामिल हैं. अब तक टास्क फोर्स ने 70,000 से अधिक नागरिकों को जोड़ा है, 1,000 टन जलकुंभी हटाई है और 100 से ज्यादा जागरूकता अभियान चलाए हैं. सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता मुकेश कुमार का कहना है, ''हमने नदी से गाद हटाने के लिए ड्रेजर लगाने की योजना बनाई है. इससे बहाव सुधरेगा और प्रदूषण कम होगा.'' लखनऊ में इकाना वेटलैंड और साजन झील जैसे नए वेटलैंड्स विकसित करने का प्रस्ताव भी गोमती पुनरुद्धार मिशन में शामिल है. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को हर महीने टास्क फोर्स की समीक्षा बैठक करने, तिमाही रिपोर्ट उनके कार्यालय में भेजने और मिशन की पारदर्शिता सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है.

लखनऊ में गोमती नदी के किनारे स्थित प्रतिष्ठित लेटे हुए हनुमान मंदिर से जुड़े और नदी ऐक्टिविस्ट ऋद्धि गौड़ कहते हैं, ''गोमती मर गई तो लखनऊ भी आधा मर जाएगा.'' शायद अब वक्त आ गया है कि सरकार, प्रशासन और जनता, तीनों मिलकर यह तय करें कि गोमती को बचाने की बात सिर्फ योजनाओं में नहीं, जमीन पर भी दिखे. 

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