
साल 2023 की ठेठ सर्दियों वाले दिन थे, जब 20 दिसंबर को राजस्थान पुलिस ने ड्रग तस्करों की निर्भीकता की वह तपिश महसूस की जो पुलिस की कल्पना से भी परे थी. राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में अरनोद थाने से कुछेक किलोमीटर दूर 90 घरों वाला देवल्दी सिर्फ कागजों में गांव है. बड़े-बड़े फार्म हाउसों, बड़ी गाड़ियों और बड़ी कोठियों वाले देवल्दी में अफीम तस्कर भी बड़े ही रहते हैं.
अंतरराष्ट्रीय ड्रग सिंडिकेट का हिस्सा कहे जाने वाले इस गांव में पुलिस दशकों तक घुसने से बचती आई थी. 20 दिसंबर को जब पहली बार वो यहां पहुंची तो तस्करों के बेखौफ और बुलंद इरादों के साथ ही उसे उनकी गोलियों का भी सामना करना पड़ा. तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अमित कुमार कहते हैं, ''मैंने अपराधियों को इतना बेखौफ कभी नहीं देखा था. उसी दिन हमने तय कर लिया था कि अब देवल्दी गांव ही नहीं बल्कि पूरे जिले को ड्रग तस्करों से मुक्त कराना है.’’
कमोबेश हो भी गए पर उसके बाद अब देवल्दी जैसे गांव मेथिलीन डाइऑक्सी मेथाम्फेटामीन (एमडीएम) ड्रग का अड्डा बन चुके हैं. पिछले साल 17 दिसंबर को कई थानों की पुलिस ने इस गांव पर संगठित तौर पर कार्रवाई करते हुए एक फार्म हाउस पर चल रही 40 करोड़ रुपए की एमडीएम ड्रग फैक्ट्री पकड़ी. 6 अक्तूबर, 2024 को मध्य प्रदेश के भोपाल में पकड़े गए 1,814 करोड़ रु. के एमडीएमए ड्रग मामले में इसी गांव के शोएब लाला का नाम मुख्य सरगना के तौर पर सामने आया.
सके बाद पुलिस ने इस गांव पर छापा मारा. हालांकि, लाला अभी भी गिरफ्त से बाहर है मगर पुलिस ने ड्रग तस्करी के पैसे से कमाई गई उसकी करोड़ों रुपए की संपत्ति को बेनामी संपत्ति निषेध अधिनियम 1988 की धारा 24 के तहत फ्रीज कर सरकारी घोषित कर दिया है.
बीते 12 सितंबर को प्रतापगढ़ के पीपलखूंट थाना इलाके में घने जंगल के बीच बनी एक झोंपड़ी में 50 करोड़ रुपए की एमडीएम ड्रग बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई. पुलिस ने यहां ड्रग बनाते हुए देवल्दी गांव के जमेशद उर्फ जम्मू लाला को गिरफ्तार किया जो 25,000 रुपए का इनामी बदमाश था. उस झोंपड़ी तक जाने का रास्ता इतना दुर्गम था कि पुलिस भी पैदल और मोटरसाइकिलों पर सवार होकर वहां तक पहुंची.
पुलिस को यहां कच्ची झोंपड़ी में 70 किलो केमिकल, 17 किलो एमडी पाउडर, कई रूम हीटर, दही बिलोने की मशीनें और अन्य उपकरण मिले जिनसे एमडीएम तैयार की जा रही थी. जमशेद देवल्दी गांव में 17 दिसंबर, 2024 को पकड़ी गई 40 करोड़ रुपए की एमडी फैक्ट्री का भी वांछित था.

जम्मू लाला ने तस्करी के पैसों से राजस्थान और मध्य प्रदेश में बड़ा साम्राज्य खड़ा कर रखा था. जमशेद ने पिछले साल तस्करी के पैसों से अपनी भाभी फातिमा के नाम पर मध्य प्रदेश के हुसैन टेकरी जावरा में दो करोड़ रुपए की कीमत का एक होटल खरीदा था, जिसे पुलिस ने 28 अगस्त, 2025 को नारकोटिक्स ड्रग्स ऐंड साइकोट्रोपिक सबस्टांसेज (एनडीपीएस) ऐक्ट की धारा 68 एफ(1) के तहत फ्रीज कर दिया.
राजस्थान में प्रतापगढ़ से मंदसौर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 113 पर सड़क के दोनों तरफ कई बड़े-बडे आलीशान होटल नजर आते हैं. इनमें से अधिकांश ड्रग तस्करी के पैसों से खड़े किए गए हैं. अब इन होटलों के बाहर पुलिस के लाल-नीले बोर्ड टंगे हैं. पुलिस ने ये बोर्ड एनडीपीएस ऐक्ट के तहत लगाए हैं, जिसके जरिए तस्करों की अवैध तरीके से कमाई गई संपत्ति को जब्त और फ्रीज किया जा रहा है.
संपत्ति फ्रीज मामले में राजस्थान का प्रतापगढ़ जिला देश में सबसे अव्वल है. अकेले इसी जिले में ड्रग तस्करों की 100 करोड़ रुपए मूल्य की अवैध संपत्ति फ्रीज की गई है. प्रतापगढ़ मॉडल की तर्ज पर अब पूरे राजस्थान में मादक पदार्थों की तस्करी में लिप्त बदमाशों की करीब 500 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति फ्रीज की जा चुकी है.
20 सितंबर, 2023 को राजस्थान में पहली बार कुख्यात ड्रग तस्करों की आर्थिक कमर तोड़ने के इस अभियान की शुरुआत हुई थी. प्रतापगढ़ के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अमित कुमार ने महाराष्ट्र के शिरडी में पकड़े गए 70,000 रुपए के इनामी ड्रग तस्कर कमल राणा, कमलेश बैरागी, विष्णु बैरागी और शैलेष बैरागी की 13 करोड़ रुपए की संपत्ति फ्रीज की.
कमल राणा मध्य प्रदेश के मालवा और राजस्थान के मेवाड़ का कुख्यात ड्रग तस्कर था. उसके खिलाफ विभिन्न राज्यों में हत्या, डकैती, लूट, मादक पदार्थों की तस्करी के 40 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं. पुलिस जब उसे गिरफ्तार कर जांच कर रही थी तब यह सामने आया कि राणा ने तस्करी के जरिए कमाए गए पैसों से मध्य प्रदेश के मंदसौर, नीमच, राजस्थान के प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, पाली और जालौर जिलों में करोड़ों रुपए की अवैध संपत्ति खड़ी कर ली है.
इस संपत्ति को जब्त करने के लिए केंद्र सरकार की कॉम्पिटेंट अथॉरिटी ऐंड एडमिनिस्ट्रेटर, एसएएफईएमए और एनडीपीएसए को प्रस्ताव भेजा गया और वहां से मंजूरी मिलने के बाद राणा और उसके सहयोगियों की संपत्ति को फ्रीज कर दिया गया.
प्रतापगढ़ में तस्करों की अवैध संपत्ति को फ्रीज करने में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर प्रताप सिंह की अहम भूमिका रही है. प्रताप सिंह अकेले अब तक 13 कुख्यात तस्करों की 50 करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत की संपत्ति फ्रीज कर चुके हैं. इस काम के लिए उन्हें राजस्थान पुलिस में एएसआइ से एसआइ पद पर गैलेंट्री प्रमोशन (विशेष पदोन्नति) प्रदान किया गया है.
तौर-तरीके बदले पर रूट वही
पिछले कुछ सालों में अफीम की तस्करी के तौर-तरीकों में बदलाव आया है मगर तस्करी का रूट अभी भी राजस्थान के प्रतापगढ़ और झालावाड़ के रास्तों से ही गुजरता है. अंग्रेजों के वक्त से ही झालावाड़ का भवानीमंडी रेलवे स्टेशन मुंबई और कोलकाता तक व्यापार का केंद्र रहा है. मध्य प्रदेश और राजस्थान के बॉर्डर पर स्थित यह रेलवे स्टेशन ड्रग तस्करी का भी प्रमुख अड्डा है.
अकेले झालावाड़ जिले में ही 292 ऐसे लोग हैं जिनके खिलाफ एनडीपीएस ऐक्ट के तहत तीन या तीन से ज्यादा मामले दर्ज हैं. झालावाड़ के पुलिस अधीक्षक अमित कुमार कहते हैं, ''पुलिस से बचने के लिए अफीम तस्कर आमतौर पर सार्वजनिक परिवहन का अधिक इस्तेमाल करते हैं.’’
मोबाइल फोन, सोशल मीडिया और नई तकनीकी ने ड्रग तस्करों की राह को और आसान बना दिया है. कुछ साल पहले तक राजस्थान के प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, कोटा और झालावाड़ जिलों से अफीम पंजाब, महाराष्ट्र, बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों में तस्करी की जाती थी मगर अब पश्चिम बंगाल, मणिपुर और पूर्वोत्तर के कई हिस्सों से नशे की खेप प्रतापगढ़ लाई जा रही है. पुलिस का मानना है कि मणिपुर और पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों समेत 20 प्रदेशों में बिना लाइसेंस के अवैध तरीके से अफीम की खेती की जाती है. इस कारण वहां से तस्करों को सस्ती कीमत पर अफीम मिल जाती है.
प्रतापगढ़ पुलिस ने 16 फरवरी, 2025 को एक ट्रक के डीजल टैंक में छिपाकर मणिपुर से लाई गई 41 करोड़ रुपए की ब्राउन शुगर के साथ प्रतापगढ़ के तिलक नगर के रहने वाले घनश्याम उर्फ लड्डू को गिरफ्तार किया. 16 सितंबर, 2025 को पुलिस ने घनश्याम के तिलक नगर स्थित डेढ़ करोड़ रुपए के मकान को एनडीपीएस ऐक्ट के तहत फ्रीज कर दिया.
पिछले कुछ साल में अफीम, हेरोइन, स्मैक या ब्राउन शुगर की जगह एमडी ड्रग का ज्यादा उपयोग होने लगा है. इसमें अफीम का प्रयोग नहीं होता. यह सिंथेटिक ड्रग केमिकल से तैयार होती है. राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में पिछले दो साल में ड्रग की तीन फैक्ट्रियां पकड़ी जा चुकी हैं. सीमावर्ती बाड़मेर, जोधपर और पाली जिलों में भी एमडी ड्रग की पांच फैक्ट्रियां पकड़ी गई हैं.
राजस्थान और मध्य प्रदेश में अफीम की सबसे ज्यादा खेती
नार्कोटिक्स ब्यूरो की ओर से हर किसान को 10 आरी यानी एक हजार वर्ग मीटर जमीन पर अफीम की खेती के लिए लाइसेंस जारी किया जाता है. केंद्र सरकार की अफीम नीति 2020-21 के तहत राजस्थान के 28,677 किसानों को अफीम गोंद उत्पादन के लिए और 13,585 किसानों को कंसंट्रेट ऑफ पॉपी स्ट्रॉ(सीपीएस) पद्धति से अफीम की खेती के लिए लाइसेंस जारी किया गया है. पिछले साल जिन किसानों के खेतों में मॉर्फीन (एमक्यूवाइ-एम) की मात्रा 4.2 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर से ज्यादा थी, वे अफीम गोंद उत्पादन के लिए अधिकृत हैं और जिन्होंने पिछले साल 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से कम मॉर्फीन जमा कराया था, उन्हें सीपीएस पद्धति से अफीम की खेती के लिए लाइसेंस दिए गए हैं.
अफीम गोंद उत्पादन करने वाले किसान सीधे मॉर्फीन जमा करवाते हैं और सीपीएस पद्धति वाले किसान अफीम के डोडे में बिना चीरा लगाए उसे नार्कोटिक्स विभाग में जमा करवाते हैं. फिलहाल मॉर्फीन की सरकारी दर 2,000 रुपए और डोडा की दर 200 रुपए प्रति किलो है जो किसानों की लागत की दृष्टि से बहुत कम है. यही कारण है कि कुछ किसान नार्कोटिक्स विभाग का तय कोटा जमा कराने के बाद बची हुई अफीम को तस्करों को बेच देते हैं. तस्कर किसानों से अफीम डेढ़ से दो लाख रुपए किलोग्राम और डोडा 5,000-10,000 रुपए प्रति किलो की दर से खरीदते हैं और उसे वे मारवाड़, पंजाब, हरियाणा और मुंबई में 8-10 लाख रुपए प्रति किलो के भाव से बेचते हैं.
भारतीय अफीम किसान विकास समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामनारायण झाझरिया कहते हैं, ''किसान को मॉर्फीन के लिए कम से कम 10,000 रुपए प्रति किलो और डोडा के लिए 1,000 रुपए प्रति किलो कीमत मिलनी चाहिए. सरकार से उचित कीमत नहीं मिलने के कारण कुछ किसान तस्करों को अफीम बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं.’’
झालावाड़ पुलिस अधीक्षक अमित कुमार कहते हैं, ''किसानों को पट्टे जीवन रक्षक दवाओं में काम आने वाले मॉर्फीन के उत्पादन के लिए जारी किए गए हैं. ऐसे में थोड़े से लालच के लिए किसान अगर तस्करों को अफीम बेच रहे हैं तो वे देश को खोखला कर रहे हैं.’’
झालावाड़ के एसपी अमित कुमार ने कहा कि किसानों को पट्टे अवैध मादक पदार्थों की तस्करी के लिए नहीं बल्कि जीवन रक्षक दवाओं में काम आने वाले मॉर्फीन के उत्पादन के लिए जारी किए गए हैं.

