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भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पर क्यों छिड़ा विवाद?

पुरी के प्रशासन ने कभी भी रथ यात्राएं निकाल देने पर इस्कॉन को आड़े हाथ लिया है. इसके अलावा, भगवान जगन्नाथ के स्नान और पूजा को लेकर भी पुरोहितों के बीच विवाद है

पुरी की रथ यात्रा
अपडेटेड 21 अक्टूबर , 2025

पूरे ब्रह्मांड के स्वामी कहलाने वाले भगवान सबके संकटहर्ता माने जाते हैं लेकिन उनके भक्तों की भीड़ एक सांसारिक समस्या से जूझ रही है. और यह समस्या उनकी जन्मतिथि पर आयोजित अनुष्ठानों से जुड़ी है.

वैसे अधिक स्पष्ट तरीके से कहें तो जन्मदिन को लेकर यह जंग भगवान के स्नान, ध्यान और दैनिक पूजा-अर्चना से जुड़े पुरोहितों के बीच छिड़ी है. भगवान जगन्नाथ को कब स्नान कराया जाना चाहिए,

कब उनकी रथयात्रा को गर्भगृह से बाहर लाया जाना चाहिए, और कब उन्हें फिर से घर में प्रतिष्ठापित करना चाहिए?...बेहद साधारण-से लगने वाले यही सवाल पुजारियों के दो वर्गों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का कारण बन गए हैं.

एक तरफ पुरी श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) में विराजमान पारंपरिक संरक्षक हैं, जिनके तर्क धर्मग्रंथ, पवित्र तिथि पंचांग और सदियों पुराने आनुष्ठानिक अधिकारों पर आधारित हैं. 6 सितंबर को उनकी तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में नाराजगी के साथ दूसरे पक्ष यानी अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) को एक नए और पथ से भटके संत की तरह मानकर फटकार लगाई गई. इसमें कहा गया कि यह आध्यात्मिक संगठन अपनी सुविधा से चुनी तिथियों पर भगवान की यात्राएं निकालकर ''पवित्र शास्त्रों और परंपराओं का उल्लंघन'' कर रहा है.

सवालों का जंजाल
अटूट परंपरा का हवाला देते हुए इसमें यह भी बताया गया कि सही तरीका क्या है—ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ के 'जन्मदिन' के मौके पर स्नान यात्रा निकाली जाती है; उनकी रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष से शुरू होती है. इसमें गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए यह भी कहा गया कि इससे हटकर आयोजन करना मार्च में दीवाली या जून में क्रिसमस मनाने जैसा है. जब जन्माष्टमी, रामनवमी, गणेश चतुर्थी और गैर-हिंदू त्योहार भी दुनियाभर में निर्धारित तिथियों पर मनाए जाते हैं, तो भगवान जगन्नाथ का जन्मदिन 'साल के किसी भी दिन' मनाने का क्या तुक है?

प्रेस नोट में बाकायदा आंकड़े भी दिए गए. इसके मुताबिक, अकेले इस साल भारत में कम से कम 40 और विदेशों में 68 इस्कॉन मंदिरों ने शास्त्रीय पंचांग का उल्लंघन किया है. सबसे खराब बात यह है कि इस्कॉन ने 2021 में सुधार का वादा किया था लेकिन खासकर विदेशों में उसने अपनी गतिविधियां उसी तरह से जारी रखीं. 2 दिसंबर 2024 को पुरी में एक बैठक भी हुई थी जिसमें पुरी मंदिर के मुख्य प्रशासक गजपति महाराज ने इस्कॉन शासी निकाय आयोग के प्रमुख से आग्रह किया कि सभी इस्कॉन मंदिर अनुष्ठान की तिथियां पंचांग के मुताबिक रखना सुनिश्चित करें. 20 मार्च, 2025 को एसजेटीए ने एक और चेतावनी दी. भुवनेश्वर में दोनों पक्षों के प्रतिनिधि विद्वानों की एक बड़ी मंडली के साथ बैठक में एसजेटीए दिग्गजों ने इस्कॉन के तर्कों को ''पूरी तरह से निराधार, गलत और शास्त्रों-परंपराओं के विपरीत होने के कारण खारिज करने योग्य'' करार दिया.

संतों का फरमान
प्रेस नोट के मुताबिक, 'उपरोक्त राय' को औपचारिक तौर पर अनुमोदित करके पश्चिम बंगाल के मायापुर स्थित इस्कॉन अधिकारियों को भेज दिया गया है. इसका मतलब यह फरमान इतना ज्यादा मायने रखता है कि इसमें कोई भी बदलाव पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती समेत सभी संतों की निंदा के समान होगा.

इस्कॉन पूरे मामले में व्यावहारिक रुख अपनाने की दलील दे रहा. इस्कॉन कोलकाता के वाइस प्रेसिडेंट राधारमण दास कहते हैं कि उन्होंने भारत में एसजेटीए के सुझावों पर अमल शुरू किया लेकिन इसमें एक अलग ही तरह की दुविधा का सामना करना पड़ रहा है. प्रशासन अक्सर पुरी की तरफ से निर्धारित तिथियों पर त्योहार मनाने की अनुमति नहीं देता. मसलन, इसी वर्ष लखनऊ में इस्कॉन ने निर्धारित तिथि पर वापसी रथयात्रा की अनुमति मांगी गई लेकिन 'अधिकारियों ने अनुमति देने में असमर्थता जताई' क्योंकि उस दिन कोई सार्वजनिक अवकाश या रविवारनहीं था. वे कहते हैं, ''जब भगवान जगन्नाथ की भूमि भारत में ही अनुमति पाना इतना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, तो सहज कल्पना की जा सकती है कि विदेशों में भक्तों को कितनी बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता होगा.''

इस्कॉन का कहना है कि ऐसे समायोजन के पीछे उसका उद्देश्य दरअसल जैसे भी संभव हो, लोगों को आनंद की अनुभूति कराना है. न्यूयॉर्क में 1976 से ही इस्कॉन 18 जुलाई को रथयात्रा आयोजित करता आ रहा है. ऑस्ट्रेलिया में जुलाई की कड़ाके वाली सर्दी में रथ खींचने में होने वाली दिक्कतों से बचने के लिए इसे दिसंबर में आयोजित किया जाता है. परंपरा को नियम नहीं सहजता के साथ अपनाया जाता है.

इस्कॉन का कहना है कि यह बेअदबी नहीं बल्कि रणनीति है—महाद्वीपों में जगन्नाथ की रथयात्रा को जारी रखने का यही तरीका है. इसके अलावा, यह दो विश्वदृष्टियों का टकराव भी है. पुरी क्योंकि सिर्फ कर्मकांड के प्रति निष्ठा को ही प्रामाणिक मानता है तो इस्कॉन भक्ति भाव पर जोर देता है जिसमें कठोर नियमों की कोई जगह नहीं होती. दास ने दो टूक सवाल किया, ''हम चैतन्य महाप्रभु की सुनें या फिर श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन की?'' इस पूरे प्रकरण को एक और आध्यात्मिक विवाद के संदर्भ में रखकर देखना होगा और वह है दीघा में जगन्नाथ धाम के उद्घाटन को लेकर ओडिशा और बंगाल के बीच उभरी दरार.

खास बातें

> श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने किसी भी तारीख पर जगन्नाथ यात्रा आयोजित करने पर इस्कॉन की आलोचना की.

> इस्कॉन का कहना है कि अंध कर्मकांड के बजाए भक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण है. उसने भारतीय तारीखों में दुनिया के अन्य शहरों में इंतजाम की दिक्कतों का हवाला दिया.

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