
गोरखपुर के पिपराइच क्षेत्र के महुआचाफी गांव में 15 सितंबर की रात हुई वारदात ने पूरे उत्तर प्रदेश को हिला दिया है. यह सिर्फ एक हत्या की घटना नहीं थी बल्कि उसने पूरे तंत्र की कमजोरियों और पशु तस्करी के संगठित नेटवर्क की परतें खोलकर रख दीं. इस गांव के रहने वाले दुर्गेश गुप्ता का 16 वर्षीय बेटा दीपक पशु तस्करों के दुस्साहस का शिकार हो गया. 15 सितंबर की देर रात दुकान की ऊपरी मंजिल पर चल रही ट्रैवल एजेंसी में सो रहे भानजे मोनू ने दुर्गेश को फोन कर बताया कि बोलेरो और पिकअप में सवार 10-12 संदिग्ध लोग गांव में घूम रहे हैं और पशु लादने की कोशिश कर रहे हैं. दुर्गेश फौरन बेटे दीपक और भाई वीरेंद्र के साथ बाइक से वहां पहुंचे. दीपक ने शोर मचाते हुए तस्करों का पीछा किया तो वे पथराव करने लगे. पथराव में दुर्गेश और वीरेंद्र घायल हो गए. तभी तस्करों ने दीपक को पकड़ कर बोलेरो में डाल लिया. रास्ते में उसे लोहे की रॉड और डंडों से पीटा गया और हत्या के बाद गुलरिहा क्षेत्र में सड़क पर फेंककर तस्कर फरार हो गए.
गांव में इस बीच दूसरी पिकअप को ग्रामीणों ने घेर लिया. गाड़ी फंस जाने पर तस्कर भागने लगे. ग्रामीणों ने बिहार के गोपालगंज निवासी तस्कर अजहर हुसैन को पकड़ लिया और मंदिर में बंधक बना लिया. गुस्साई भीड़ ने पिकअप को फूंक दिया. जब पुलिस मौके पर पहुंची और तस्कर को कब्जे में लेने की कोशिश की तो गांव वाले दीपक को खोजने की मांग पर अड़े रहे. विवाद इतना बढ़ा कि आसपास के थानों की फोर्स बुलानी पड़ी. रात करीब ढाई बजे यह जानकारी मिली कि तस्करों ने दीपक की हत्या कर दी है और शव को सरैया गांव में फेंक दिया था. गुलरिहा पुलिस ने शव को बीआरडी मेडिकल कॉलेज की मोर्च्युरी में रखवाया. अगले दिन पहचान होने के बाद गांव में कोहराम मच गया. दीपक की मां सीमा देवी दहाड़ मारकर बार-बार यही कहती रहीं, ''मेरे बेटे ने क्या बिगाड़ा था? उसे क्यों मार डाला? हत्यारों को फांसी दो.'' पिता दुर्गेश गुप्ता ने आंसुओं के बीच कहा, ''दीपक पढ़ाई में इतना अच्छा था. हमें तो डॉक्टर बनता नजर आ रहा था. लेकिन इन दरिंदों ने उसकी जिंदगी खत्म कर दी. पुलिस पहले से सक्रिय रहती तो ये हालात नहीं बनते.''
पुलिस ने बंधक बनाए गए तस्कर अजहर हुसैन को अपने कब्जे में लेना चाहा तो गांववाले भड़क उठे और पुलिस पर हमला कर दिया. धक्का-मुक्की और पथराव में एसपी उत्तरी जितेंद्र श्रीवास्तव घायल हो गए. थानेदार पुरुषोत्तम सिंह के दाहिने हाथ में फ्रैक्चर हो गया. चिलुआताल थानेदार अतुल श्रीवास्तव समेत कई सिपाही भी चोटिल हुए.
इस घटना के बाद पुलिस पर जबरदस्त दबाव बना. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सख्त निर्देश दिए और एडीजी कानून-व्यवस्था अमिताभ यश 16 सितंबर की शाम गोरखपुर पहुंचे. उनके नेतृत्व में कार्रवाई तेज हुई. 17 सितंबर को पिपराइच और कुशीनगर पुलिस की संयुक्त टीम ने कुशीनगर के रामकोला क्षेत्र के मिश्रौली गांव के पास एक लाख रुपए के इनामी पशु तस्कर रहीम को मुठभेड़ में दबोच लिया. रहीम को महुआचाफी कांड का मुख्य आरोपी माना जा रहा है. इससे पहले छोटू और राजू नामक तस्कर भी हिरासत में लिए जा चुके थे. अजहर हुसैन पहले ही ग्रामीणों के हत्थे चढ़ गया था. पुलिस अब कुख्यात मन्नू सेठ की तलाश में है जिसे इस नेटवर्क का सरगना माना जाता है.
गोरखपुर रेंज के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ''यह महज अपराधियों का गिरोह नहीं. इसके पीछे पूरा नेटवर्क है जो हर स्तर पर फैला है. जब तक सरगना पकड़ में नहीं आएंगे और पुलिस की आंतरिक सफाई नहीं होगी, तब तक यह धंधा चलता रहेगा.'' रहीम की गिरफ्तारी ने यूपी-बिहार सीमा पर सक्रिय इस नेटवर्क के बारे में कई जानकारियां दीं. मूल रूप से पटहेरवा क्षेत्र के कूचिया गांव का रहने वाला रहीम लंबे समय से पशु तस्करी में सक्रिय था. अजहर हुसैन भी गोपालगंज के कटेया इलाके का निवासी है और मन्नू सेठ के गिरोह से जुड़ा हुआ था. मन्नू सेठ का नेटवर्क बिहार से लेकर यूपी और पश्चिम बंगाल तक फैला है.
महुआचाफी कांड के बाद पुलिस महकमे में बड़ी कार्रवाई हुई. 18 सितंबर की रात एडीजी जोन अशोक जैन ने गोरखपुर से लौटते ही कुशीनगर जिले के दो थाना प्रभारी, पांच दारोगा, सात मुख्य आरक्षी और 11 सिपाहियों को लाइन हाजिर कर दिया. ये सभी पुलिसकर्मी हाइवे से जुड़े थानों और चौकियों पर लंबे समय से तैनात थे और उन पर तस्करों से मिलीभगत के आरोप थे. 18 सितंबर को ही डीजीपी ने कुशीनगर के एसपी संतोष मिश्र और देवरिया के एसपी विक्रांत वीर को भी हटा दिया. गोरखपुर जोन के एडीजी अशोक मुथा जैन ने बताया, ''कुशीनगर जिले में विभागीय निर्णय के बाद 33 पुलिसकर्मियों को हटा दिया गया है. स्थानांतरित किए गए ज्यादातर पुलिसकर्मी कसया और तमकुहीराज थानों में तैनात थे.'' अधिकारियों ने बताया कि इस फेरबदल का उद्देश्य सीमा पर निगरानी को मजबूत करना और पशु तस्करी नेटवर्क के लिए संवेदनशील माने जाने वाले थानों में जवाबदेही सुनिश्चित करना है.

दरअसल, पूर्वी यूपी से लेकर पश्चिम यूपी और बंगाल तक तस्करों का नेटवर्क फैला हुआ है. गोरखपुर, देवरिया और कुशीनगर के युवाओं को तस्कर थोड़े पैसों के लालच में करिअर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. गोरखपुर शहर के शाहपुर, शिवपुर सहबाजगंज, आवास विकास और संगम चौराहे से पशु उठाए जाते हैं और इन्हें ट्रकों तथा पिकअप गाड़ियों में लादकर कुशीनगर के रास्ते बिहार भेजा जाता है. बिहार पहुंचने के बाद यही खेप पश्चिम बंगाल तक जाती है. खोराबार थाने के एक दारोगा ने माना, ''युवाओं को 4,000-5,000 रुपए देकर यह काम कराना आसान है. उन्हें लगता है बस ट्रक चलाना है, असलियत में वे संगठित अपराध का हिस्सा बन जाते हैं.''
वर्ष 2016 में तत्कालीन डीआइजी ने गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महराजगंज के 33 थानों के अंतर्गत आने वाले 17 मार्ग चिन्हित किए थे जिन पर पशु तस्करी सबसे ज्यादा होती थी. दावा था कि हर मार्ग पर बैरियर लगाया जाएगा और सघन चेकिंग होगी. शुरुआत में अभियान चला लेकिन बाद में सब ठंडा पड़ गया. अब हालत यह है कि वही मार्ग तस्करों के लिए सुरक्षित गलियारे बन चुके हैं. तस्कर गाड़ियों में फर्जी नंबर प्लेट लगाते हैं. कई बार इंजन और चेसिस तक बदल दिए जाते हैं. तस्करी के लिए ऐसे युवकों को साथ में लिया जाता है जो न केवल स्थानीय रास्तों से वाकिफ हों बल्कि तेज रफ्तार से पिकअप दौड़ाकर पुलिस की नाकाबंदी तोड़कर निकल जाएं. पुलिस को मिली जानकारी के मुताबिक इन युवकों को प्रति चक्कर 2,000 रुपए मिलते हैं. रेकी करने वाले युवकों को 1,000 से 1,500 रुपए दिए जाते हैं. ये लोग बाइक पर आगे चलते हैं और पुलिस की मौजूदगी की खबर देते हैं. तस्कर आमतौर पर सड़कों या गलियों में घूम रहे आवारा पशुओं को रात में उठाते हैं.
पुलिस को मिली जानकारी के मुताबिक, बिहार के गोपालगंज और सीवान में तस्करों ने किराए के कमरे और बाड़े बना रखे हैं. वहां रात के अंधेरे में मवेशियों को उतारा जाता है और फिर बड़े ट्रक तथा कंटेनरों में भरकर पश्चिम बंगाल भेज दिया जाता है. पश्चिम बंगाल इसका सबसे बड़ा बाजार है जहां से यह तस्करी अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जाती है.
महुआचाफी कांड के बाद एसटीएफ को बिहार के एक तस्कर के पास से एक डायरी मिली. बताते हैं उसमें पुलिस और तस्करों की सांठगांठ का पूरा ब्योरा है. कई चौकी इंचार्ज और थानेदारों के नाम सामने आए हैं जो हाइवे पर पशु लदी गाड़ियों को ग्रीन सिग्नल देते थे. हालांकि पुलिस आधिकारिक तौर पर डायरी मिलने से इनकार कर रही है.

योगी सरकार ने पिछले वर्षों में कई बार पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर किया, तस्करों पर गैंगस्टर ऐक्ट लगाया और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी की. अगस्त 2022 में ही बहादुरपुर चौकी और समउर चौकी के कई पुलिसकर्मी लाइन हाजिर किए गए थे. पटहेरवा थाने के पांच पुलिसकर्मियों को भी हटाया गया था. इसके बावजूद तस्करी नहीं थमी. पशु तस्करी पर नजर रखने वाले और कुशीनगर से तीन बार के पूर्व विधायक तथा पूर्व मंत्री राधेश्याम सिंह कहते हैं, ''अगर इस पर अंकुश लगाना है तो सबसे पहले पुलिस-तस्कर गठजोड़ को तोड़ना होगा.'' सिंह के मुताबिक, गाय के मांस को विदेश निर्यात करने से रोकना ही पशु तस्करी का एक बड़ा समाधान है. वे कहते हैं, ''गाय के मांस को विदेश निर्यात करने वाली फैक्ट्रियों तथा उनके मालिकों के नाम सार्वजनिक किए जाएं जिससे जनता को गो तस्करी की असल वजह और उसे संरक्षण देने वालों के नाम पता चल सकें. साथ ही उनके लाइसेंस निरस्त किए जाएं.''
गोरखपुर के महुआचाफी गांव में हुई घटना ने सरकार और पुलिस को झकझोरा है. असली चुनौती यह है कि क्या इस बार कार्रवाई कुछ पुलिसकर्मियों की लाइन हाजिरी और कुछ तस्करों की गिरफ्तारी तक सीमित रहेगी या फिर इस संगठित नेटवर्क को तोड़ने का ठोस प्रयास होगा? दीपक की मौत ने एक परिवार को तोड़ दिया लेकिन उसने पूरे प्रदेश को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर अब भी व्यवस्था नहीं चेती तो न जाने कितने और दीपक इस अंधेरे का शिकार हो जाएंगे.

