क्या कोई व्यक्ति एक ही समय में एक ही विभाग में छह स्थानों पर काम कर सकता है? उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे में ऐसा ही हुआ है. यहां 2016 की एक्स-रे टेक्नीशियन भर्ती में सामने आए फर्जीवाड़े ने पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया है.
नौ साल तक छह लोग एक ही नाम से सरकारी नौकरी करते रहे और विभाग को भनक तक नहीं लगी. यह नाम था अर्पित सिंह, पुत्र अनिल कुमार सिंह. उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने 2016 में एक्स-रे टेक्नीशियन पदों पर 403 उम्मीदवारों की चयन सूची जारी की थी.
उसमें 80वें स्थान पर दर्ज था आगरा के अर्पित सिंह का नाम. वे हाथरस जिले के मुरसान सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पर लगभग 35,000 रुपए मासिक वेतन पर नियुक्त हुए. दस्तावेजों की जांच के बाद स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि ये वही अर्पित हैं जो असली चयनित उम्मीदवार हैं.
लेकिन अर्पित नाम और पिता के नाम का इस्तेमाल करते हुए छह और लोग विभिन्न जिलों में नौकरी करने लगे. शामली, बांदा, अमरोहा, बलरामपुर, फर्रुखाबाद और रामपुर में तैनात इन छह अर्पितों ने वही नियुक्ति-पत्र और अन्य दस्तावेज का इस्तेमाल किया जिनमें मामूली बदलाव किए गए थे. कहीं पिता का नाम अनिल कुमार, कहीं अनिल कुमार सिंह, कहीं पते में प्रतापनगर, शाहगंज, आगरा लिखा गया तो कहीं केवल शाहगंज या मैनपुरी का नया पता दर्ज कर दिया गया. इतने मामूली बदलाव को सतही जांच में पकड़ना मुश्किल था. इन फर्जी अर्पितों ने अपनी पहचान साबित करने के लिए अलग-अलग शैक्षिक और तकनीकी प्रमाणपत्र भी लगाए.
हाथरस की मुरसान सीएचसी में तैनात असल अर्पित का कहना है कि वे 2017 में भी इस फर्जीवाड़े की आंच देख चुके हैं. उस समय अलीगढ़ की अकराबाद सीएचसी में उनके नाम से एक और टेक्नीशियन तैनात हुआ था. जांच शुरू होते ही वह फरार हो गया. हाथरस के तत्कालीन मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) ने उनका सत्यापन कराया था. लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ा और धीरे-धीरे वही फर्जीवाड़ा बड़े पैमाने पर फैल गया.
पिछले साल से जब राज्य सरकार ने मानव संपदा पोर्टल पर कर्मचारियों की जानकारी को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सत्यापित करने का अभियान चलाया तो धीरे धीरे यह खेल सामने आया. पोर्टल पर एक ही नाम, एक ही पिता का नाम और एक ही जन्मतिथि वाले सात अलग-अलग कर्मचारी पंजीकृत पाए गए. विभागीय जांच ने साफ कर दिया कि इनमें से छह फर्जी हैं और केवल हाथरस के अर्पित असली हैं. इसके बाद विभाग हरकत में आया. निदेशक पैरामेडिकल डॉ. रंजना खरे ने 7 सितंबर, 2025 को लखनऊ के वजीरगंज थाने में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने आरोपियों पर धोखाधड़ी, बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी, मूल्यवान सुरक्षा की जालसाजी, धोखाधड़ी के लिए जालसाजी, और जाली दस्तावेजों का वास्तविक के रूप में उपयोग करने के तहत मामला दर्ज किया है.
जांच में सामने आया कि फर्जी अर्पितों में से हरेक को औसतन 69,595 रुपए मासिक वेतन दिया जा रहा था. यानी साल में लगभग 8,35,000 रुपए. नौ साल में एक फर्जी अर्पित ने 75 लाख रुपए से ज्यादा की रकम हड़प ली. छह जिलों को मिलाकर यह आंकड़ा लगभग साढ़े चार करोड़ रुपए तक पहुंच गया. सवाल है कि यह रकम वापस कैसे आएगी? सभी फर्जी अर्पित तो अपने घरों पर ताला लगाकर और मोबाइल बंद करके फरार हो चुके हैं.
मामला यहीं तक सीमित नहीं है. जांच में पता चला कि कई दूसरे नामों पर भी इसी तरह की गड़बड़ियां हुईं. मैनपुरी निवासी अंकुर मिश्र और हरदोई के अंकित सिंह के नाम पर कई नियुक्तियां हो चुकी थीं. असली अंकुर मिश्र मैनपुरी में तैनात हैं लेकिन फर्जी दस्तावेजों से दूसरा अंकुर मुजफ्फरनगर के शाहपुर सीएचसी में नियुक्त हो गया. दोनों के पिता का नाम नीतू मिश्र ही है लेकिन जन्मतिथि और शैक्षिक प्रमाणपत्रों में हल्का-सा बदलाव कर दिया गया. अंकुर का हाइस्कूल प्रमाणपत्र कहीं 2006 का दिखाया गया तो कहीं 2007, इंटरमीडिएट 2009 या 2010, डिप्लोमा प्रमाणपत्र 2012 या 2014. पते भी अलग-अलग बताए गए. इस तरह मामूली अंतर दिखाकर दो लोग एक ही नाम से नौकरी कर रहे थे. हरदोई के अंकित सिंह के मामले में तो और बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया. कम से कम छह लोग एक ही नाम से अलग-अलग जिलों में तैनात पाए गए. इनमें से एक को बर्खास्त किया गया, एक ने इस्तीफा दिया और तीन फरार हैं. असली अंकित आज भी हरदोई की मलावां सीएचसी में तैनात हैं.
यह सिर्फ एक अर्पित का मामला नहीं बल्कि एक संगठित गिरोह का खेल था जिसने चयन सूची के असली उम्मीदवारों के नाम उठाए और उनके आधार पर क्लोन नियुक्ति-पत्र तैयार करके अलग-अलग जिलों में ज्वाइनिंग करा दी. जिलों के सीएमओ कार्यालयों ने गहराई से जांच किए बिना नियुक्तियां मान लीं और मानव संपदा पोर्टल पर भी डेटा अपलोड कर दिया गया. इस तरह नौ साल तक किसी को शक नहीं हुआ.
उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष और स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी जे.एन. तिवारी बताते हैं, ''इस खेल में अंदरूनी मिलीभगत के बिना ऐसा नहीं हो सकता. नियुक्ति-पत्र निदेशालय स्तर से ही जारी दिखाए गए थे और ज्वाइनिंग का आदेश सीधे जिलों को भेजा गया. जब तक निदेशालय और सीएमओ दफ्तर में कोई सहयोग नहीं करता, यह खेल इतने लंबे समय तक चल नहीं सकता था. निदेशालय में फर्जीवाड़ा करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों का गिरोह सक्रिय है. दस्तावेजों में हेरफेर करके फर्जी तैनाती की जा रही है तो कहीं तबादले भी फर्जी हुए हैं.'' तिवारी बताते हैं कि शासन को फर्जीवाड़े की जानकारी समय-समय पर दी गई है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग और उससे जुड़ी यूनिटों में एक के बाद एक फर्जी नियुक्ति के मामले खुल चुके हैं. इस महकमे की मलेरिया यूनिट में भर्ती किए गए दैनिक वेतनभोगियों को वर्ष 2000 में हटा दिया गया था. फिर 2019 में उन्हें नियमित कर दिया गया जबकि 2016 की नियमावली के तहत उनकी स्थायी नियुक्त नहीं की जा सकती. स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन निदेशक (प्रशासन) डॉ. राजा गणपति आर. ने मामले की जांच की थी. इसमें तत्कालीन स्वास्थ्य महानिदेशक समेत कई आला अधिकारियों को दोषी बताया गया था. फरवरी 2023 में जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी गई लेकिन अब तक किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
स्वास्थ्य महानिदेशालय की जांच में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति में व्यापक रूप से गड़बड़ी की पुष्टि हुई थी. इसकी रिपोर्ट भी शासन को भेजी जा चुकी है. इसमें कहा गया है कि कहीं बिना पद की नियुक्ति कर दी गई तो कहीं दस्तावेजों में हेरफेर किया गया. इसके बाद कुछ नियुक्तियां निरस्त की गईं लेकिन जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ कुछ नहीं हुआ.
बलिया के सीएमओ कार्यालय से 2009 से 2017 के बीच 352 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति की गई. जनवरी 2023 में बलिया के मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) की जांच रिपोर्ट में 2009 से 2019 के बीच 143 कर्मचारियों की नियुक्ति की बात सामने आई. पत्रावलियों की पड़ताल में यह भी पता चला कि इनके नियुक्ति-पत्र का सत्यापन ही नहीं किया गया. 2015 से पहले के 'डिस्पैच रजिस्टर' भी नहीं मिले. नियुक्ति-पत्र पर लिखे डिस्पैच नंबर फर्जी लग रहे थे. नियुक्त पत्र, सेवा वैधता संबंधित कोई प्रमाण पत्र न मिलने पर सीडीओ ने 103 कर्मचारियों को तत्काल बर्खास्त करने की सिफारिश की थी. इसी तरह सीएमओ मिर्जापुर दफ्तर में 1996 से 1998 के बीच करीब 64 फर्जी नियुक्तियां की गईं. जिला चिकित्सालय आंबेडकरनगर में 64 कर्मियों की फर्जी नियुक्ति की गई थी. स्वास्थ्य महकमे के एक निदेशक बताते हैं, ''इन नियुक्तियों में कार्रवाई शुरू होते ही कई कर्मचारी कोर्ट चले गए जहां मामला लंबित है. इस दौरान कई तो रिटायर भी हो गए हैं.''
वहीं अब एक्स-रे टेक्नीशियन की फर्जी नियुक्ति का मामला उजागर होने के बाद स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. रतन पाल सुमन ने डॉ. शुभ्रा मिश्रा (निदेशक राष्ट्रीय कार्यक्रम), डॉ. सीमा श्रीवास्तव (निदेशक नर्सिंग) और वित्त नियंत्रक शिवेंद्र मिश्र के नेतृत्व में एक जांच समिति गठित की है. इस समिति को 2016 की सभी 403 नियुक्तियों की जांच का जिम्मा दिया गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक को सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए. पाठक ने ऐलान किया कि फर्जी नियुक्तियों को रिक्त घोषित किया जाएगा और नई भर्तियों से भरा जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि उन विभागीय अधिकारियों को भी जांच के घेरे में लिया जाएगा जिन्होंने जाली कागजात को मंजूरी दी.
अब जांच का दायरा और बढ़ा दिया गया है. एक्स-रे टेक्नीशियन के अलावा लैब टेक्नीशियन, डार्क रूम असिस्टेंट, फार्मासिस्ट और ईसीजी टेक्नीशियन जैसी अन्य पैरामेडिकल भर्तियों की जानकारी भी इकट्ठा की जा रही है. प्रमुख सचिव स्वास्थ्य पार्थसारथी सेन शर्मा ने कहा है कि अगर अन्य भर्तियों में गड़बड़ी की शिकायत मिली तो उनकी भी जांच होगी और दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी.
फर्जी नियुक्तियों का यह मामला केवल अर्पित सिंह, अंकुर मिश्र या अंकित सिंह तक सीमित नहीं है. यह पूरे सिस्टम की एक तस्वीर है जहां नियुक्ति-पत्रों की क्लोनिंग, दस्तावेजों की जालसाजी और विभागीय मिलीभगत से नौ साल तक एक ही नाम वाले कई लोग सरकारी नौकरी करते रहे और किसी को पता नहीं चला. अब जब खेल उजागर हुआ है, तो लाख टके का सवाल यही है कि क्या स्वास्थ्य विभाग सचमुच दोषियों पर शिकंजा कस पाएगा या यह भी सिर्फ कागजी कार्रवाई बनकर रह जाएगा.
यूपी राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे.एन. तिवारी ने कहा कि जोड़तोड़ करके अफसर बने डॉक्टरों-कर्मचारियों का गिरोह स्वास्थ्य विभाग में फर्जी नियुक्तियों और दूसरे भ्रष्टाचार में लिप्त है.
यूं चलता है फर्जी नियुक्तियों का खेल
> असली उम्मीदवार के दस्तावेज की क्लोनिंग: चयनित अभ्यर्थी के नियुक्ति-पत्र और प्रमाणपत्रों की कॉपी बनाई जाती है.
> नाम और पिता के नाम में हल्के बदलाव: जैसे अनिल कुमार को अनिल कुमार सिंह कर देना ताकि एक जैसा भी लगे और अलग भी.
> पते में मामूली फेरबदल: कभी पूरा पता, कभी छोटा हिस्सा, अलग-अलग जिलों के पते दिखाकर फर्जी पहचान बनाई जाती है.
> शैक्षिक प्रमाणपत्रों में वर्ष बदलना: हाइस्कूल, इंटर और डिप्लोमा के 'पासिंग ईयर' थोड़ा-थोड़ा अलग दिखाए जाते हैं.
> जन्मतिथि का हेरफेर: असली उम्मीदवार से मिलती-जुलती जन्मतिथि रखी जाती है ताकि उम्र में अंतर न लगे.
> निदेशालय से आदेश जैसा पत्र बनाना: फर्जी नियुक्ति-पत्र को ऐसे तैयार किया जाता है मानो वह लखनऊ स्थित निदेशालय से जारी हुआ हो.
> जिलों में सीएमओ स्तर पर मिलीभगत: बिना गहराई से सत्यापन किए सीएमओ कार्यालय ज्वाइनिंग करवा देता है.
> मानव संपदा पोर्टल को चकमा देना: एक ही नाम पर अलग-अलग जिलों में पंजीकरण कराकर पोर्टल में गड़बड़ी पैदा की जाती है.
> ज्वाइनिंग दिखाकर ट्रांसफर का खेल: फर्जी दस्तावेजों के सहारे दूरदराज के जिलों में तैनाती कराकर बाद में दूसरी जगह ट्रांसफर कर दिया जाता है.
> विभागीय जांच को दबाना: शिकायतें आने पर भी अक्सर सत्यापन के बाद मामला ठंडा कर दिया जाता है, जिससे फर्जी कर्मचारी वर्षों तक टिके रहते हैं.
उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक ने कहा कि दूसरी सरकारों में बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य विभाग में फर्जी नियुक्तियां हुई हैं. इन सबको चिन्हित कर दोषियों पर कार्रवाई की जा रही है.