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धर्मांतरण कानून के मामले में कैसे दूसरे राज्यों से आगे निकल गया राजस्थान?

राजस्थान का धर्मांतरण विरोधी बिल प्रावधानों की सख्ती के मामले में अन्य सभी राज्यों से आगे निकल गया है

जबरन धर्मांतरण के खिलाफ दौसा में 6 जुलाई को प्रदर्शन करते हिंदू संगठन
अपडेटेड 16 अक्टूबर , 2025

इतिहास अगर पीछे जाता तो राजस्थान के अतीत के बहुत-से राजपूत शासक राजघरानों को आधुनिक अदालतों में घसीटे जाने जैसी मानहानि और शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता.

अंतरधार्मिक विवाह उनकी सत्ता में खूब चलन में थे. मगर आज भारत में एक के बाद एक राज्य धर्म के अलहदा सिद्धांत को अपनाते दिख रहे हैं. राजस्थान न केवल धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित करने वाला नया राज्य है बल्कि उसने प्रावधानों की कठोरता में दूसरों को पीछे भी छोड़ दिया है.

राजस्थान गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध विधेयक 2025 राज्य में इस तरह का कानून बनाने की तीसरी कोशिश है. इसके 2005 और 2008 के संस्करणों को राज्यपाल या राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिल पाई. अलबत्ता पहले के उन प्रयासों के विपरीत इस विधेयक ने राष्ट्रव्यापी बहस छेड़ दी है क्योंकि यह अंतरधार्मिक विवाहों को तकरीबन आपराधिक बना देता है. ऐसा कोई भी विवाह जिसमें पति या पत्नी में से कोई एक धर्म बदल लेता है, सरकार की नजरों में अमान्य हो जाएगा. एक अपवाद भी है. वह है 'घर वापसी', जिसे मोटे तौर पर हिंदू धर्म में 'लौटना' समझा जाता है.

विधेयक—जिसे राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है—प्रलोभन, धोखाधड़ी, बलप्रयोग, अनुचित प्रभाव, गलतबयानी, या विवाह के जरिए धर्मांतरण को आपराधिक बनाता है. ये संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध होंगे. सजा 7-14 साल के बीच कारावास और 5 लाख रुपए का जुर्माना है, जिसे नाबालिगों, महिलाओं, दिव्यांगों या अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों को निशाना बनाने पर 10-20 साल की कैद और 10 लाख रुपए के जुर्माने तक बढ़ाया जा सकता है. अनुसूचित जाति/जनजाति का शुमार अप्रासंगिक नहीं है. दक्षिणी जिलों में आदिवासियों के ईसाई धर्म अपनाने और नए चर्चों के उभार की खबरें आती रही हैं.

सामूहिक अपराध और बार-बार अपराध के लिए तो सजाएं और भी कठोर हैं—20 साल का आजीवन कारावास और 50 लाख रुपए तक का जुर्माना. गैरकानूनी धर्मांतरण को बढ़ावा देती पाई जाने वाली संपत्तियों और संस्थाओं की जब्ती, विध्वंस, रद्द किए जा सकने वाले लाइसेंस को रद्द करने और एक करोड़ रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है. विदेशी फंडिंग पर भी कड़ी सजा है.

पीयूसीएल की अगुआई में नागरिक स्वतंत्रता संगठनों ने कुछ खतरनाक संकेतों की तरफ खास तौर पर ध्यान दिलाया है. एक, 'पैतृक धर्म में वापसी' को साफ तौर पर बाहर रखा गया है. दो, विधेयक में 'प्रलोभन' की व्यापक परिभाषा, और इसमें निहित अल्पसंख्यकों और अंतरधार्मिक जोड़ों को परेशान करने की स्वाभाविक संभावना. तीन, विधेयक जिन्हें 'स्वैच्छिक' धर्मांतरण कहता है, उन पर भी अच्छी-खासी तादाद में सजा के तौर पर प्रक्रियाएं थोपता है: धर्माचार्य की तरफ से की घोषणा समेत 90 दिनों की अग्रिम घोषणा, और कृत्य के 10 दिनों के भीतर प्राधिकारियों के सामने पेश होना.

कांग्रेस किधर?
अगर पार्टी अत्यंत कठोर कहकर विधेयक की भर्त्सना करती है तो भाजपा इसकी वकालत करेगी और इसे गरीबों, आदिवासियों के बीच 'जबरन' और 'उकसाए गए' धर्मांतरणों पर अंकुश के लिए अनिवार्य बताएगी. वह दावा करती है कि ऐसे धर्मांतरण अक्सर 'लालच, डर या धोखाधड़ी' का नतीजा होते हैं. कांग्रेस ने इससे अलहदा मामले में बहिष्कार का हवाला देते हुए विधेयक पर वोटिंग से कन्नी काट ली. माना जा रहा है कि इस तरह उसने अपनी बहादुरी दिखाने का यह मौका जानबूझकर गंवा दिया.

आलोचक ऐसे विधेयक की जरूरत पर ही सवाल उठाते हैं. वे कई उत्तरी राज्यों के मुकाबले राजस्थान में सामुदायिक रिश्तों के अपेक्षा शांत रिकॉर्ड का हवाला देते हैं. छिटपुट मामलों को छोड़कर राज्य में जबरन धर्मांतरण या 'लव जिहाद' के व्यवस्थागत मामले नहीं देखे गए. रुढ़िवादी समाज होने का यह मतलब है कि सब अपनी रुढ़ियों के अनुरूप जीते हैं—इसमें नौ फीसदी अल्पसंख्यक भी शामिल हैं. इसलिए अंतरधार्मिक विवाह, खासकर हिंदू-मुस्लिम, बहरहाल बिरले ही हैं.

एक मामला आइएएस अफसर टीना डाबी और अतहर आमिर खान की चर्चित शादी का था, जिसका अंत तलाक में हुआ और दोनों ने अपने-अपने समुदायों के भीतर दूसरी शादी कर ली. कुछ जाने-पहचाने अंतरधार्मिक जोड़े सार्वजनिक चर्चाओं से दूर रहते हैं. अब ऐसे लोगों को आधुनिक सेकुलर कानून का सामना करना पड़ेगा.

खास बातें

राजस्थान में नया धर्मांतरण विरोधी बिल पारित, प्रावधानों पर छिड़ी बहस.

आलोचक इस कानून की जरूरत और घर वापसी को इससे अलग रखने पर सवाल उठा रहे.

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