वर्ष 1870 में स्थापित इंदौर के ऐतिहासिक डेली कॉलेज में प्रदेश के राजनैतिक-व्यावसायिक घरानों का काफी दखल रहा है. इसके पूर्व छात्रों में मंत्री, विधायक, नौकरशाह तक रहे हैं.
इसका सर्वोच्च निकाय बोर्ड ऑफ गवर्नर्स है, जो एक बार फिर विवादों में है. 1979 बैच के पूर्व छात्र और बोर्ड सदस्य संदीप पारेख सहायक फर्म एवं सोसाइटी रजिस्ट्रार, इंदौर से एक आदेश ले आए हैं जिसमें स्कूल के अधिकारियों को उपनियमों में संशोधन का निर्देश दिया गया है.
इससे नौ सदस्यों वाले बोर्ड में से पांच को चुनने वाले निर्वाचक मंडल के प्रति बोर्ड की जवाबदेही सुनिश्चित हो जाएगी.
बोर्ड का चुनाव दिसंबर में है और जंग कब्जे की है. पुराने दानदाता, पूर्व छात्र, नए दानदाता, सरकार नामित और अभिभावक नामित सदस्यों से मिलकर नौ का क्लब पूरा होता है. प्रिंसिपल पदेन सचिव होते हैं.
वर्तमान अध्यक्ष विक्रम सिंह पुआर और उपाध्यक्ष राजवर्धन सिंह, राजघरानों से और सरकार नामित हैं. इधर पूर्व छात्र सदस्यों, पारेख और धीरज लुल्ला, के बीच तलवारें खिंची हैं.
सूत्रों का कहना है कि अध्यक्ष कोई भी हो, बैठकों में फैसले लुल्ला ही लेते हैं और उन्हें पारेख से असहमति ही मिलती है. स्कूल की आमदनी करीब 95 करोड़ रुपए है और करीब इतना ही रिजर्व फंड है.
अपारदर्शिता और मनमाने संचालन के आरोप भी लगे. हाल में स्कूल की हेड गर्ल ने प्रशासन के खिलाफ तीखे आरोप लगाते हुए इस्तीफा दिया था. फिर उसके सहपाठियों ने जवाबी हमले किए. इस सबके बीच बोर्ड सदस्य सुमीत चंडोक ने बोर्ड छोड़ दिया.
नई व्यवस्था में डेली की सोसाइटी में व्यापक नुमाइंदगी और ज्यादा दोटूक निगरानी की अनिर्वायता है.