राजस्थान में हर माह 15-20 नवजात बच्चे ऐसे मिल रहे हैं जो पैदा तो होते हैं मगर उन्हें मां की गोद नसीब नहीं होती. जन्म के साथ ही इन नवजातों को नालों, कंटीली झाड़ियों, अस्पतालों के बाहर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है.
महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, राजस्थान में पिछले पांच साल में (2020 से 2024) तक 915 बच्चों को अनाथ और परित्यक्त अवस्था में छोड़ दिया गया.
वहीं, यूनिसेफ और चाइल्डलाइन इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 से 2024 की अवधि में अनाथ, परित्यक्त और समर्पण किए गए बच्चों की संख्या 1,332 है.
नवजात शिशुओं को लावारिस हालत में फेंकने के मामलों में बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के बाद राजस्थान देश में सबसे ऊपर है. बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं की मानें तो राजस्थान में फेंके गए नवजातों की तादाद सरकार और यूनिसेफ के आंकड़ों से कहीं ज्यादा है क्योंकि बहुत सारे मामले दर्ज ही नहीं हो पाते.
सिरोही के जटियावास में 13 सितंबर को एक ऐसा ही मामला सामने आया जिसमें प्लास्टिक की थैली में फेंके गए पांच माह के भ्रूण को कुत्ता मुंह में दबोचकर ले जाता हुआ मिला. एक युवती ने बड़ी मुश्किल से इस भ्रूण को कुत्ते से छुड़वाया मगर तब तक बच्चे की मौत हो चुकी थी. जोधपुर में 19 अगस्त को रेलवे लाइन के पास दो जुड़वां भ्रूण कपड़े की थैली में लिपटे हुए मृत मिले.
दौसा जिल में लालसोट स्थित राजकीय महिला चिकित्सालय में भी 11 मार्च को एक मामला सामने आया था जिसमें एक नवजात भ्रूण को कुत्ते खा गए. 50 वर्षीया एक विधवा ने इस नवजात को जन्म दिया था. बदनामी के डर से उसने नवजात बच्चे को अस्पताल के पीछे फेंक दिया. जिला प्रशासन ने महिला को चिन्हित कर लिया मगर उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया.
बांसवाड़ा के सज्जनगढ़ ब्लॉक के तांबेसरा गांव में 2 सितंबर को एक नवजात शिशु नाले में पड़ा मिला. नवजात के चेहरे और शरीर को कई जगह से कीड़े-मकोड़ों ने काट खाया था. झुंझुनूं के नयाबास में 17 मार्च को एक मां ने 17 दिन की बेटी को पानी के कुंड में डुबोकर मार डाला. डीडवाना के बोरावड़ में 26 जुलाई को एक नवजात शिशु को कपड़े और पॉलीथीन की थैली में लपेटकर ऊपर से पत्थर से ढक दिया गया. लेकिन कुछ समय बाद ही इस शिशु का पता लग गया और उसे अजमेर के सरकारी अस्पताल में रेफर कर बचाया लिया गया.
जन्म के तुरंत बाद मरने के लिए छोड़ दिए गए इन नवजात शिशुओं में 90 फीसद बेटियां हैं. पांच साल में जो 1,332 बच्चे फेंक दिए गए उनमें से 376 के ही माता-पिता का पता लगा जिनमें से 200 के खिलाफ किशोर न्याय अधिनियम 2015 और बच्चों के परित्याग को लेकर मुकदमा दर्ज किया गया. चाइल्डलाइन इंडिया और यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि नवजात शिशुओं को जंगल, नालों और सड़क पर फेंकने से बचाने के लिए सरकार ने आश्रय पालना योजना के तहत प्रदेश 67 आश्रय पालना केंद्र बनाए हैं मगर इनमें से 20 फीसद ही कार्यशील और प्रभावी हैं.
लावारिस फेंके गए 90 फीसद बच्चों के मामले अवैध संबंध या लिंगभेद से जुड़े हैं. सामाजिक दबाव, आर्थिक तंगी, विधवा, परित्यक्ता और अविवाहित महिला बच्चे को जन्म देने के बाद बदनामी के डर के चलते उन्हें फेंक देती हैं. थार के रेगिस्तान और आदिवासी अंचल में नवजात बच्चों को छोड़े जाने के सबसे ज्यादा प्रकरण सामने आए हैं. सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल कहते हैं, ''कोटड़ा, झाड़ोल, फलासिया जैसे आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और जागरूकता की कमी इस तरह के प्रकरणों का मुख्य कारण है, वहीं बाड़मेर, जोधपुर जैसे जिलों में अवैध संबंध इस तरह की घटनाओं को जन्म दे रहे हैं.''
यूनिसेफ के राजस्थान प्रतिनिधि संजय निराला कहते हैं, ''बच्चों को अनाथ और परित्यक्तता से बचाने के लिए सरकार को सजा के प्रावधान में सख्ती लानी होगी और लिंग आधारित भेदभाव रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाना चाहिए.''
राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष संगीता बेनीवाल कहती हैं, ''नवजात शिशुओं को इस तरह फेंक दिए जाने की यह स्थिति राजस्थान के लिए बहुत शर्मनाक और चिंताजनक है.'' पिछले पांच साल में राज्य में सबसे ज्यादा नवजात बच्चे या भ्रूण 2020-21 में फेंकने के मामले दर्ज हुए. तब 178 नवजात बच्चे फेंके गए. फिर उनकी संख्या कम होती गई लेकिन 2024-25 में उनकी संख्या में फिर से उछाल देखा गया.
कोख में कत्ल के मामलों में राजस्थान की स्थिति पहले ही देश में चिंताजनक बनी हुई है. 2011 की जनगणना के अनुसार, राजस्थान में प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 928 है. बाल लिंगानुपात की स्थिति तो इससे भी भयावह है. प्रदेश में 0-6 वर्ष के प्रति 1,000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या महज 888 है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -5) के अनुसार राजस्थान धौलपुर, करौली, भरतपुर और सवाई माधोपुर जैसे जिलों में लिंगानुपात की स्थिति ज्यादा खराब है. धौलपुर में तो 1,000 बच्चों पर लड़कियों की संख्या महज 846 ही है.
स्वास्थ्य विभाग की प्रेग्नेंसी चार्ट ट्रैकिंग ऐंड हेल्थ सर्विस मैनेजमेंट सिस्टम की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के 17 जिलों में लिंगानुपात की स्थिति चिंताजनक है. ये वे जिले हैं जो गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब की सीमा से सटे हैं. बांसवाड़ा जैसे आदिवासी जिले में जहां 2018 तक 1,000 लड़कों पर 1003 लड़कियों का जन्म हो रहा था वहां अब यह संख्या 981 ही रह गई है.
इस रिपोर्ट में बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, सिरोही और राजसमंद जैसे आदिवासी जनसंख्या बहुल जिलों में बाल लिंगानुपात काफी कम पाया गया है. इसके अलावा चूरू, दौसा, जालोर, नागौर, करौली, जोधपुर, पाली और सवाई माधोपुर जिलों में भी लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या काफी कम पाई गई है. इसकी वजह कन्याभ्रूण और नवजात बच्चियों को लावारिस फेंक दिया जाना है.
अब देश में जनगणना 2027 की शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या इस बार हालात में सुधार होगा या मासूम सपनों का यूं ही कोख और कोख के बाहर कत्ल होता रहेगा.
खास बातें
> राजस्थान में हर महीने 15-20 नवजात बच्चे या भ्रूण कूड़े के ढेर या जंगल-झाड़ी में फेंके हुए मिलते हैं.
> राज्य में कन्या भ्रूण हत्या की वजह से कई जिलों में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या काफी कम है.