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बिहार: आधे-अधूरे ढंग से शुरू हुआ पूर्णिया एयरपोर्ट, किसानों को अब तक क्यों नहीं मिला मुआवजा?

आखिरकार पूर्णिया एयरपोर्ट चालू हो गया आधे-अधूरे ढंग से. अभी सिर्फ अहमदाबाद और कोलकाता के लिए उड़ान. जमीन देने वाले गांव के किसान मुआवजे को लेकर अदालत में

पूर्णिया एयरपोर्ट के उद्घाटन के बाद हवाई-अड्डे के भीतर दौरा करते PM मोदी
अपडेटेड 16 अक्टूबर , 2025

मोहम्मद तनवीर दस किमी दूर मधेली गांव से सिर्फ पूर्णिया एयरपोर्ट को देखने आए हैं. हालांकि सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें मुख्यद्वार पर ही रोक लिया है. वे वहीं से फेसबुक लाइव करके फॉलोवर्स को बताने लगते हैं:

एयरपोर्ट कैसा दिख रहा है और इसके शुरू होने के बाद पूर्णिया और उसके आसपास की दुनिया कैसे बदल जाएगी. वहीं मौजूद स्थानीय युवा समाजससेवी विकास आदित्य बताने लगते हैं, ''बात हंड्रेड परसेंट सही है.

देखिए ना! एयरपोर्ट शुरू होने की घोषणा होते ही हमारे इस छोटे से शहर से रैपिडो ने सर्विस शुरू कर दी है.'' विकास पूर्णिया के नागरिक समाज की उस टीम का हिस्सा रहे हैं, जिसने एयरपोर्ट के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है.

वे बताते हैं, ''पीएम नरेंद्र मोदी ने 2015 वाले पैकेज में ही इस एयरपोर्ट की घोषणा कर दी थी. पर इसका बनना बार-बार टलता रहा. हमने इसके लिए आंदोलन किया. सोशल मीडिया कैंपेन और पूरे सीमांचल में घूमकर अभियान चलाया. तब यह शुरू हुआ है.''

एयरपोर्ट गेट के सामने उस रोज कई लोग जमा थे. कोई सेल्फी तो कोई वीडियो बना रहा था. हवाई उड़ान को लेकर इन लोगों के कौतूहल और उत्साह को देखकर 1934 में बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म विंग्स ओवर एवरेस्ट की याद आ गई, जिसे उस साल ऑस्कर मिला था. हवाई जहाज के जरिए एवरेस्ट एक्सपेडिशन करने वाले ब्रिटिश दल के उस अभियान पर बनी फिल्म का ज्यादातर हिस्सा इसी पूर्णिया में शूट हुआ था. उसमें भी पूर्णिया के लोग विमान को उड़ता देखने के लिए इसी तरह एयरोड्रोम के चारों तरफ खड़े नजर आते हैं.

कमर्शियल एयरपोर्ट टर्मिनल भले यहां आज शुरू हो रहा हो मगर इस शहर के लोग 1933 से ही हवाई जहाज को देखते आए हैं. उस वक्त अविभाजित बिहार में एयर सर्विसेज के बारे में सोचा भी नहीं गया था. आजादी के बाद भी 1956 में बालुरघाट एयरवेज ने पूर्णिया से कोलकाता के बीच हवाई सेवा चलाई थी जो दो साल चली. 1974-75 में जैम एयरवेज ने फिर से पूर्णिया-कोलकाता एयर सर्विस शुरू की, वह भी नहीं चल सकी.

पूर्णिया एयरफोर्स स्टेशन के पूर्व स्टेशन डॉयरेक्टर कैप्टन विश्वजीत सिंह के शब्दों में, ''1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान यहां एयरफोर्स स्टेशन शुरू हुआ जो आज तक चल रहा है. उसी की एयर स्ट्रिप पर नए एयरपोर्ट का परिचालन भी हो रहा है. जब मैं यहां स्टेशन डायरेक्टर बनकर आया तो 2012 में स्प्रिंट एयरवेज के जरिए छह सीटर विमान का परिचालन शुरू करवाया. वह भी नहीं चला.

उसी दौरान मुझे समझ आ गया कि बिना सिविल एयरपोर्ट के यहां विमान का परिचालन मुश्किल है. मैंने प्रस्ताव बनाया और जिला प्रशासन को सौंप दिया. फिर वह बिहार सरकार के जरिए भारत सरकार को भेजा गया. केंद्रीय कैबिनेट ने इसे स्वीकृति दी और 2015 के पीएम पैकेज का यह हिस्सा बना.''

मगर इसके बाद इस हवाई अड्डे की गाड़ी अटकने लगी. इसके लिए आंदोलन करने वाले नागरिक समाज के प्रतिनिधि विजय कुमार श्रीवास्तव कहते हैं, ''हमारे एयरपोर्ट को स्वीकृति मनमोहन सिंह सरकार के जमाने में ही मिल गई थी. बाद में इसके पीएम पैकेज का हिस्सा बनने पर हम आश्वस्त हो गए. मगर उसके बाद साजिशें शुरू हो गईं. मिथिलांचल के एक बड़े नेता ने काम अटकाना शुरू कर दिया. जमीन अधिग्रहण में साजिश हुई. उत्तर दिशा में जमीन लेनी थी, दक्षिण दिशा में एक्वायर कर ली गई. मामला हाइकोर्ट चला गया.''

श्रीवास्तव के ही शब्दों में, ''दो विधानसभा चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव बीत गया. इंतजार की इंतिहा हो जाने पर हमने जनांदोलन शुरू किया. पूर्णिया प्रमंडल के चारों जिले और सौ किमी के इलाके के लोगों ने धरना-प्रदर्शन, कैंडल मार्च, सोशल मीडिया कैंपेन सब किया. 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद दोनों सरकारें सक्रिय हुईं तो आनन-फानन में यह एयरपोर्ट बना. उम्मीद है अब और साजिश न होगी क्योंकि इसे पूरी तरह आकार लेने में अभी पांच साल और लगेंगे.''

एयरपोर्ट बाउंड्री के पास खड़ा संजय कुमार मेहता का परिवार, जमीन अधिग्रहण की वजह से उनका मकान बाउंड्री के अंदर चला गया है

पांच साल क्यों? वे जवाब में कहते हैं, ''एयरपोर्ट तो शुरू हो गया मगर देश की राजधानी दिल्ली जाने के लिए कोई सीधी फ्लाइट नहीं, कनेक्टिंग फ्लाइट है. उसमें काफी वक्त और पैसे लगेंगे. दस साल का इंतजार और तीन साल का संघर्ष इसी के लिए था?'' अभी यहां से सिर्फ दो जहाज उड़ान भरने जा रहे हैं. अहमदाबाद और कोलकाता के लिए जबकि ज्यादातर यात्री दिल्ली, मुंबई और बेंगलूरू के हैं. उनके साथ बैठे विकास आदित्य जोड़ते हैं, ''यह इकलौता संकट नहीं. इस एयरपोर्ट में अभी दोपहर 2.30 बजे तक की वाच आवर की सुविधा है. यानी इसके बाद जहाज उड़ान नहीं भर सकते.

समुचित लैंडिंग सिस्टम नहीं है. 16 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाना है. इसके बिना ठंड के दिनों में कोहरा होने पर विमान के उड़ान भरने और उतरने में दिक्कतें होंगी. अब तक स्थायी एयरपोर्ट टर्मिनल नहीं बना है.'' उद्घाटन के वक्त पीएम मोदी ने जिस टर्मिनल बिल्डिंग को रिकॉर्ड पांच महीने में तैयार हुआ बताया, वह दरअसल पोर्टा केबिन (अस्थाई) है.

श्रीवास्तव कहते हैं, ''पीएम मोदी के कार्यक्रम में स्थायी टर्मिनल बिल्डिंग का शिलान्यास भी होना था. इसके लिए अलग से 15 एकड़ जमीन भी अधिग्रहीत की गई थी. वह कार्यक्रम टल गया है क्योंकि बिल्डिंग के लिए इन्वायरनमेंट क्लियरेंस नहीं मिला है.''

उधर, उस गोआसी गांव के लोग काफी नाराज हैं, जहां की 67 एकड़ जमीन एयरपोर्ट के लिए ली गई. गांव के संजय कुमार मेहता कहते हैं, ''हम नहीं चाहते थे मगर सरकार ने एयरपोर्ट के लिए हमारी जमीन, घर सब ले लिया.'' मेहता और उनके भाई अब टिन के बने घरों में रहते हैं. उन्हें रहने के लिए ऐसी जगह मिली है, जहां पहुंचने का रास्ता तक नहीं है. बुजुर्ग किसान शिवपूजन मेहता कहते हैं, ''जमीन ही हमारी आजीविका का आधार थी मगर हमसे जबरदस्ती उसे ले लिया गया. विरोध करने पर सर्किल अफसर (सीओ) ने हम पर एससी-एसटी प्रताड़ना का केस कर दिया, इस बिना पर कि सीओ साहब दलित हैं. हम तो जमीन मापी का विरोध कर रहे थे. उनका व्यक्तिगत अपमान थोड़े ही कर रहे थे.''

जमीन देने वाले गांव के 75 किसानों में से ज्यादातर ने अभी तक मुआवजा नहीं लिया है. उन्होंने पटना हाइकोर्ट की शरण ली है. किसानों का आरोप है कि जमीन अधिग्रहण के वक्त किसानों के जमीन की प्रकृति भी बदल दी गई. उनकी आवासीय जमीन को खेतिहर बता दिया गया. खेतिहर जमीन का मुआवजा 17,000-18,000 रु. डिसमिल जबकि आवासीय जमीन का 2.5 लाख रु. डिसमिल है.

आरोप यह भी है कि सरकार पहले उत्तरी दिशा में बसे बनभाग और कदमपुर गांव की जमीन का अधिग्रहण करने वाली थी मगर वहां के कुछ दबंग लोगों के दबाव में फैसला बदल दिया गया. शिवपूजन मेहता कहते हैं, ''नतीजा देखिए: हम पहले गरीब थे, अब दरिद्र हो गए. 1962 में यहां एयरफोर्स स्टेशन बनने पर भी हमारे पूर्वजों ने ही उसके लिए जमीन दी थी. अब भी हमारी ही जमीन ली गई.''

खास बातें

पूर्णिया से दिल्ली जाने के लिए कनेक्टिंग फ्लाइट ही लेनी पड़ेगी. लगेगा ज्यादा समय और किराया.

समुचित लैंडिंग सिस्टम न होने से दोपहर ढाई बजे तक ही यहां से उड़ान भर और उतर सकेंगे जहाज.

हवाईअड्डे के लिए किसानों से जमीन को रिहाइशी के बजाए खेतिहर बताकर लेते हुए कम मुआवजा दिए जाने का आरोप.

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