वैसे अब भी खुली जंग जैसा कुछ नहीं लेकिन दक्कन के इस किले के चारों तरफ खुदी असंतोष की गहरी खाइयों में जब तब गोलाबारी की बौछार नजर आ ही जाती है. कुछ तो इसे दोस्ताना जंग का नाम देते हैं.
सत्तारूढ़ महायुति कभी पूरी तरह खुशहाल परिवार की तरह नहीं रहा. 2024 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जनादेश के बाद हनीमून की स्थिति जरूर बनी लेकिन एकनाथ शिंदे रूठे ही रहे. उनके इर्द-गिर्द केंद्रित नाराजगी अब एक बार फिर खुलकर सामने आ रही है.
यह संकेत एक गैर-मौजूदगी से साफ तौर पर नजर आया. दरअसल, अगस्त मध्य में उप-मुख्यमंत्री शिंदे और उनके सहयोगी भरतसेठ गोगावाले राज्य कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं हुए. जैसे-जैसे महीना बीता माहौल गर्म होता गया, और इस बार वजह किसी और की मौजूदगी रही. ये थे मनोज जरांगे पाटील, जिन्होंने मुंबई के आजाद मैदान में अनशन शुरू किया. यह पहला मौका नहीं है जब मराठा कार्यकर्ता का जब-तब चलने वाला आंदोलन महत्वपूर्ण क्षणों में रहस्यमय तरीके से सामने आया हो. उनकी यह घेराबंदी 2 सितंबर को एक जीत के साथ खत्म तो हो गई पर दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि यह उनका आखिरी आंदोलन होगा.
गोगावाले के तेवरों का रहस्य किसी से छिपा नहीं. चार बार महाड से विधायक, रोजगार गारंटी मंत्री गोगावाले और उनके साथी शिवसैनिक और शिक्षा मंत्री दादाजी भुसे लंबे समय से क्रमश: रायगढ़ और नासिक जिलों के संरक्षक मंत्री पद की लालसा पाले हैं. इसी साल जनवरी में जब अजित पवार की एनसीपी से महिला और बाल विकास मंत्री अदिति तटकरे और जल संसाधन मंत्री गिरीश महाजन (भाजपा) की इन पदों पर नियुक्ति हुई तो शिवसेना के जोरदार विरोध के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा. ये पद तब से खाली पड़े हैं.
बहरहाल, राज्य सरकार ने स्वतंत्रता दिवस पर रायगढ़ और नासिक में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए अदिति और महाजन को चुना. खटकना स्वाभाविक था. कैबिनेट बैठक से शिंदे की गैरमौजूदगी की वजह उनके जम्मू-कश्मीर के 'पहले से तय' दौरे को बताया गया. पर वे महीने भर में तीन बार दिल्ली का भी दौरा कर चुके हैं. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ उनकी मुलाकातों को तनावपूर्ण रिश्तों से ही जोड़कर देखा जा रहा है. शिंदे हमेशा से इस बात से खफा रहे हैं कि नए शासन में उन्हें दोयम दर्जे की भूमिका निभाने को बाध्य किया जा रहा है. अब उनकी नाराजगी इस बात को लेकर ज्यादा बढ़ गई है कि राज्य भाजपा आलाकमान उनके पर कतरने में लगा है.
विवाद की वजहें
साफ दिखता है कि शिंदे के मुख्यमंत्री रहते तय की गई नीतियों को कैसे बदला जा रहा है. इसमें महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) के लिए 1,310 बसें किराए पर लेने का फैसला भी शामिल है. फडणवीस के किराए की जांच संबंधी आदेश से पूर्व सीएम का खीझना स्वाभाविक है. शिंदे तब परिवहन मंत्री भी थे और गोगावाले एमएसआरटीसी के अध्यक्ष. फडणवीस ने एक और जांच शुरू करके उनके जख्मों पर नमक और छिड़क दिया—शिवसेना के सामाजिक न्याय मंत्री संजय शिरसाट के बेटे पर आरोप है कि उसने कम दामों पर एक आलीशान होटल हड़प लिया. सौदा रद्द होने के बाद शिवसेना का आरोप है कि जांच को हथियार बनाया जा रहा.
शिवसेना के एक सूत्र बताते हैं, ''भाजपा का यहां दबदबा है पर दिल्ली की नजर में शिंदे की खास उपयोगिता है. वे भी हिंदुत्व के ताने-बाने में ढले हैं—टीडीपी या जेडी-यू से ज्यादा भरोसेमंद.'' भाजपा के एक वरिष्ठ नेता मानते हैं कि उन्हें हाशिए पर धकेलने से गलत संदेश जाएगा और 'इस्तेमाल करके किनारे करो की राजनीति' के आरोप को बढ़ावा मिलेगा.
तनातनी के इस मोड़ पर मराठा आंदोलन के अचानक फिर जोर पकड़ने के कई निहितार्थ निकाले गए. कुछ लोगों ने इसके पीछे शिंदे का हाथ बताया. फडणवीस समर्थकों के मुखर होने से यह विवाद और भी भड़क गया. मुख्यमंत्री बड़ी चतुराई के साथ समझौता करने में सफल रहे लेकिन मूल विवाद अब भी जीवित है. और इससे हवा देने वाली राजनीति भी थमी नहीं है. क्या सभी मराठा कुनबी कहलाते हैं? खैर, शिंदे ने एक बार पहले भी इस हलचल का इस्तेमाल खुद को 'मराठा रक्षक' साबित करने के लिए किया था. जाहिर है, वे एक लंबे युद्ध की तैयारी के साथ हर साजो-सामान से लैस हैं.
खास बातें
> शिंदे और उनकी सेना के एक मंत्री कैबिनेट की बैठक में नहीं आए.
> मराठा आंदोलन ने फिर से जोर पकड़ा तो फडणवीस समर्थकों ने इसे डिप्टी सीएम की नाराजगी से जोड़ा.
> फडणवीस ने शिंदे की नीतियों की समीक्षा करते हुए उनके मंत्रियों के खिलाफ जांच शुरू कराई.
> दिल्ली में भाजपा के आला नेताओं से शिंदे लगातार बात कर रहे.